मप्र के पूर्व मंत्री को धनिया की खेती में 10 हजार का घाटा! सोशल मीडिया में शेयर किया सिलसिलेवार ब्यौरा
मप्र के पूर्व मंत्री को धनिया की खेती में 10 हजार का घाटा! सोशल मीडिया में शेयर किया सिलसिलेवार ब्यौरा
डिजिटल डेस्क (भोपाल)। मध्यप्रदेश के पूर्व मंत्री सुभाष कुमार सोजतिया को अपने 13 बीघा खेत में धनिया की खेती करना घाटे का सौदा साबित हुआ। सोजतिया ने धनिया उगाने पर कुल 80 हजार रुपए खर्च किए, मगर बाजार में उपज का दाम सिर्फ 70 हजार रुपए ही मिला। दिग्विजय सिंह के शासनकाल में कैबिनेट मंत्री रहे सोजतिया मंदसौर जिले के निवासी हैं और उनकी भानपुरा में खेती है। सोजतिया ने अपने 13 बीघा इलाके में धनिया की खेती की और इसमें उन्हें घाटा हुआ है। उन्होंने खेती की लागत और उपज की कीमत का सिलसिलेवार ब्यौरा सोशल मीडिया पर जारी किया है।
पूर्व मंत्री द्वारा धनिया की खेती पर आई लागत का ब्यौरा दिया गया है। उन्होंने खाद, धनिया का बीज, ट्रैक्टर का उपयोग, मजदूरी खर्च, दवाई, खाद, कटाई की मजदूरी, क्रेशर का उपयोग, बिजली का बिल और राजस्थान की रामगंज मंडी तक ले जाने में आए खर्च का ब्यौरा दिया है। इसके मुताबिक उन्होंने धनिया की खेती पर कुल 80,850 रुपए खर्च किए, वहीं जब यह फसल मंडी में बिकी तो उन्हें 70,957 रुपए ही मिले। इस तरह उन्हें धनिया की खेती में 9,893 रुपए का शुद्ध घाटा हुआ है।
सोजतिया ने धनिया की खेती के ब्यौरे के साथ सोशल मीडिया पर लिखा है, किसा की आत्मकथा, मैं भी किसान हूं, मेरे फार्म पर धनिया तैयार कर आज रामगंज मंडी बेचने के लिये भेजा! धनिये बुआई की लागत (कुल खर्च एवं आमदनी) दोनो की ब्यौरा संलग्न है! 13 बीघे मे शुद्ध घाटा 9,893 रुपए का हुआ!
किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए सोजतिया ने लिखा है, किसान आंदोलन की मुख्य वजह यही है कि अडानी, अंबानी के हाथ में पहुंचते ही वे इस धनिये को बेचकर अपनी तिजोरियां भरेंगे! यही धनिया आज भी किराना व्यापारी के यहां से आपको 100 से 140 रुपए किलो खरीदना पड़ता है! अडानी, अंबानी इसी धनिये को खुदरा मूल्य पर 250 से 300 रुपए प्रति किलो बेचेंगे!
ज्ञात हो कि इन दिनों केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का दो माह से ज्यादा समय से आंदोलन जारी है। किसान इन कानूनों को किसान विरोधी और कारोबारी हितैषी बता रहे हैं। इसी बीच पूर्व मंत्री ने धनिया की खेती में हुए घाटे का खुलासा कर यह बताने की कोशिश की है कि किसान अनिश्चितता में रहता है और फसल पर आने वाली लागत तक का दाम निकालना मुश्किल हो जाता है।