डीआरटी के पीठासीन अधिकारी को झटका , कैट के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट ने रद्द किया

डीआरटी के पीठासीन अधिकारी को झटका , कैट के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट ने रद्द किया

Bhaskar Hindi
Update: 2021-05-25 06:25 GMT
डीआरटी के पीठासीन अधिकारी को झटका , कैट के फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट ने रद्द किया

डिजिटल डेस्क, नागपुर। दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय की याचिका पर सुनवाई करते हुए सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (कैट) के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसके तहत कैट ने चिक्कम विजय मोहन को नागपुर कर्ज वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) का पीठासीन अधिकारी बने रहने का अंतरिम आदेश जारी किया था।  कैट ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय के 12 फरवरी 2020 के उस आदेश पर रोक लगाई थी, जिसमें वित्त मंत्रालय ने चिक्कम को डीआरटी नागपुर के पीठासीन अधिकारी का पद छोड़ने के आदेश दिए थे। अपने फैसले में हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की उस दलील को मान्य किया, जिसमें केंद्र का तर्क था कि केंद्रीय सिविल सेवा आचरण नियमावली 1964 के तहत डीआरटी पीठासीन अधिकारी का पद “गवर्नमेंट सर्वेंट” का पद नहीं है। ऐसे में कैट को इस मामले में सुनवाई का अधिकार नहीं है। हालांकि हाईकोर्ट ने चिक्कम को कानून में उल्लेखित अन्य स्तरों पर अपनी बात रखने के अधिकार दिए हैं।

यह है मामला : चिक्कम मूल रूप से आंध्रप्रदेश न्यायिक सेवा के अधिकारी हैं। 24 अक्टूबर 2016 को उन्हें नागपुर डीआरटी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। जून 2017 में उन्हें आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने वापस बुलाया, लेकिन उन्होंने इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के फैसले पर स्थगन लगा दिया। इस बीच, जुलाई 2017 में वित्त मंत्रालय ने भी उन्हें डीआरटी नागपुर का पद छोड़ने का आदेश दिया था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के स्थगन के कारण मंत्रालय ने अपना फैसला बदला। मंत्रालय ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया कि चिक्कम 21 अक्टूबर 2021 या नियुक्ति से आगे पांच वर्ष तक (जो भी पहले हो) तक पद पर बने रहने के लिए पात्र हैं। चिक्कम 30 सितंबर 2017 को आंध्र प्रदेश न्यायिक सेवा से सेवानिवृत्त हुए। ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी मूल याचिका का निपटारा कर दिया। ऐसे में वित्त मंत्रालय ने 12 फरवरी 2020 को नोटिफिकेशन जारी करके उन्हें डीआरटी नागपुर का पद छोड़ने के आदेश दिए। इसके खिलाफ चिक्कम ने कैट में याचिका दायर की, जहां कैट ने अंतरिम आदेश जारी करके उन्हें पद पर बने रहने की अनुमति दी थी।
 

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