नौकरी पर संकट: एडमिशन के लिए घर-घर जाकर बच्चों को ढूंढ रहे टीचर्स
नौकरी पर संकट: एडमिशन के लिए घर-घर जाकर बच्चों को ढूंढ रहे टीचर्स
डिजिटल डेस्क, वर्धा । निजी स्कूलों की स्पर्धा में सरकारी स्कूलों की कक्षाओं में विद्यार्थियों की संख्या बनाए रखने के लिए जिला परिषद सरकारी स्कूलों के शिक्षक अब गांव-गांव पहुंच रहे हैं। दिन ब दिन कक्षाओं में घटती विद्यार्थी संख्या के कारण सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को दर-दर भटकना पड़ रहा है। दूसरी ओर निजी स्कूलों के शिक्षक अपनी नौकरी बचाने विद्यार्थियों के घर-घर जाकर उनके अभिभावकों को भेंट दे रहे हैं।
पिछले 15 वर्ष में निजी स्कूलों की बढ़ती संख्या और नई शिक्षा नीति जिम्मेदार है। लगभग जिले के के हर बड़े गांव में सरकारी स्कूल होते हुए भी निजी स्कूलें खुल गईं हैं। शहर के साथ-साथ गांव में भी बच्चों की संख्या कम है। ऐसे में बच्चों को खोजना काफी मशक्कत भरा कार्य साबित हो रहा है। सरकारी स्कूलों के मुकाबले निजी स्कूलों में उपलब्ध सुविधा और शिक्षा नीति के चलते विद्यार्थियों के अभिभावकों का रुख जिला परिषद छोड़ निजी स्कूल की ओर बढ़ रहा है। वर्तमान समय में सरकारी स्कूलों की तुलना में विद्यार्थियों की संख्या बेहद कम है। कक्षा पहली, कक्षा 5 वीं और कक्षा 8 वीं के लिए न्यूनतम विद्यार्थियों को लाने के लिए शिक्षक गांव-गांव जाकर अभिभावकों से मिल रहे हैं । नौकरी बचाने शिक्षकों को ऐसा करना पड़ रहा है।
मातृभाषा में ही हो प्राथमिक शिक्षा
एक ओर जहां अंग्रेजी शिक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है। वहीं दूसरी ओर एक वर्ग ऐसा भी है जो प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में हो यह सोच रखता है। उन्हें यदि ऐसी स्थिति में पराई भाषा का ज्ञान दिया गया तो आकलन करने में समस्या निर्माण हो जाती है। परिणामस्वरूप मानसिक तनाव में छात्र आ जाते हैं। इसलिए प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही हो यह विचार छात्रों के अभिभावक कर रहे हैं।
जिले में कुल डेढ़ हजार से अधिक प्राथमिक स्कूलें
जिले में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने वाली सरकारी स्कूलों के साथ निजी शिक्षा संस्थान का कुल आंकड़ा 1 हजार 515 है। इससे सरकारी स्कूलें 927 है। प्राथमिक तथा निजी स्कूलों में शिक्षा देने वाले कुल 4 से साढ़े 4 हजार शिक्षा कर्मी विद्यार्थियों की खोज में जुटे हुए हैं।