बिना इजाजत बदल दी शाखा, विद्यार्थी ने ली कोर्ट की शरण, जानिए कोर्ट से जुड़े अन्य मामले
जूनियर कालेज की गलती का खामियाजा भुगत रहा छात्र बिना इजाजत बदल दी शाखा, विद्यार्थी ने ली कोर्ट की शरण, जानिए कोर्ट से जुड़े अन्य मामले
डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने महाराष्ट्र राज्य शिक्षा मंडल (स्टेट बोर्ड) को चंद्रपुर जिले के राजुरा स्थित एड. यादवराव धोटे जूनियर कॉलेज के छात्र जतीन घोटेकर का 12वीं बोर्ड परीक्षा का परिणाम जारी करने के आदेश दिए हैं। मामले में जूनियर कॉलेज की एक गलती पकड़ कर न्या. सुनील शुक्रे और न्या. अनिल किल्लोर की खंडपीठ ने उस पर 25 हजार की कॉस्ट लगाई है।
रोक दिया परिणाम
याचिकाकर्ता छात्र ने वर्ष 2018 में सीबीएसई बोर्ड से 33% अंकों के साथ 10वीं बोर्ड उत्तीर्ण की। 11वीं के लिए उसने स्टेट बोर्ड संलग्नित एड. यादवराव धोटे जूनियर कॉलेज राजुरा में साइंस शाखा में प्रवेश लिया। स्टेट बोर्ड के नियमानुसार 11वीं कक्षा में साइंस शाखा में प्रवेश के लिए 10वीं में 35% अंक चाहिए, जबकि सीबीएसई बोर्ड के अनुसार सिर्फ 33% अंक जरूरी होते हैं। ऐसे में स्टेट बोर्ड ने उसका 12वीं कक्षा का परिणाम रोक दिया।
बिना इजाजत बदल दी शाखा
छात्र ने हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट की सुनवाई में निकल कर आया कि 26 जुलाई 2019 को स्टेट बोर्ड ने अपने न्यूनतम अंकों की सीमा घटा कर सीबीएसई जितनी ही कर दी थी। ऐसे में हाईकोर्ट ने बोर्ड को छात्र का परिणाम जारी करने के आदेश दिए। सुनवाई में यह पता चला कि पहले कॉलेज ने छात्र को कॉमर्स शाखा में प्रवेश दिया, इसके बाद बगैर स्टेट बोर्ड की इजाजत के उसकी शाखा बदल कर साइंस कर दी। इस गलती के कारण कॉलेज पर 25 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई गई है।
दुर्गम क्षेत्रों की ली जानकारी, कहा- वरना...कोर्ट में हाजिर होना होगा
प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों के विद्यार्थियों को ऑनलाइन शिक्षा और मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने के लिए अब तक कौन-कौन से कदम उठाए गए हैं, इस पर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने राज्य सरकार से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सरकार के ठोस उत्तर प्रस्तुत नहीं करने पर केंद्रीय कैबिनेट सचिव, प्रदेश मुख्य सचिव, प्रदेश ऊर्जा और आदिवासी विकास विभागों के सचिव को कोर्ट में खुद हाजिर होकर जवाब देना होगा।
लॉकडाउन में मिड-डे मील प्रभावित, न बिजली, न इंटरनेट
लॉकडाउन में गड़चिरोली जैसे दुर्गम क्षेत्र में केवल ई-लर्निंग ही नहीं, मिड-डे मील योजना भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। कुछ माह पूर्व गड़चिरोली के करीब 10 स्कूली विद्यार्थियों ने मुख्य न्यायमूर्ति के नाम पत्र लिख कर हाईकोर्ट प्रबंधन को भेजा था। उन्होंने बताया था कि लॉकडाउन में उनके स्कूल बंद हैं। स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास लेना शुरू किया है। इसमें से कुछ बच्चे नागपुर, नागभीड़ जैसे शहरों में पढ़ते हैं और लॉकडाउन में अपने गांव चले गए हैं। इन विद्यार्थियों के पास इंटरनेट कनेक्टिविटी और पर्याप्त बिजली आपूर्ति नहीं है। ऐसी स्थिति में ऑनलाइन क्लासेस के जरिए पढ़ाई करना विद्यार्थियों के लिए मुश्किल है। विद्यार्थियों ने हाईकोर्ट से ही इस संबंध में कोई हल निकालने की विनती की थी। इस मुद्दे पर इस मुद्दे पर हाईकोर्ट ने सू-मोटो जनहित याचिका दायर की थी। मामले में एड. फिरदौस मिर्जा को न्यायालीन मित्र नियुक्त किया गया है।
गुणवत्ता के आधार पर दें फैसला
सर्वोच्च न्यायालय ने जारी अपने फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि नागपुर खंडपीठ में विचाराधीन उपभोक्ता फोरम से संबंधित याचिका पर नागपुर खंडपीठ गुणवत्ता के आधार पर फैसला सुना सकती है। सर्वोच्च न्यायालय के किसी आदेश की इस पर रोकटोक नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश याचिकाकर्ता एड. महेंद्र लिमये के प्रकरण में जारी किया है। याचिकाकर्ता ने प्रदेश और जिला उपभोक्ता फोरम पर बतौर सदस्य (जज) नियुक्ति के लिए जारी नए नियमों को नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर कर चुनौती दी है, लेकिन हाईकोर्ट ने इस मामले में यह कह कर आदेश जारी करने से इंकार कर दिया था कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में जजों के पद भरने को कहा था। ऐसे में याचिकाकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली थी।
नए नियमों को चुनौती
याचिका में केंद्र सरकार द्वारा कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 2019 के तहत गठित नए नियमों को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता के अनुसार वर्ष 2014 में मद्रास बार एसोसिएशन विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कहा था कि केवल कानून की विधिवत जानकारी वाले उम्मीदवार ही ट्रिब्यूनलों में बतौर सदस्य नियुक्ति के लिए पात्र हैं, साथ ही 10 वर्ष से अधिक के अनुभव वाले वकीलों को भी सर्वोच्च न्यायालय ने पात्र बनाने के निर्देश दिए थे, लेकिन नए नियमों में ठीक उलटा किया गया है। नियुक्ति के लिए उम्मीदवार के पास कॉमर्स, शिक्षा, इकोनॉमिक्स, बिजनेस, लॉ, एडमिनिस्ट्रेशन फील्ड में कम से कम 20 वर्ष के अनुभव की शर्त रखी गई है। कानून की डिग्री या अनुभव भी जरूरी नहीं किया है। मामला कोर्ट में विचाराधीन है। याचिकाकर्ता की ओर से एड. तुषार मंडलेकर कामकाज देख रहे हैं।