राजस्थान में ब्लैक फंगस को महामारी घोषित किया गया, जानिए कितनी खतरनाक है ये बीमारी?
राजस्थान में ब्लैक फंगस को महामारी घोषित किया गया, जानिए कितनी खतरनाक है ये बीमारी?
डिजिटल डेस्क, जयपुर। राजस्थान में म्यूकरमायकोसिस यानी ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर दिया गया है। ब्लैक फंगस कोविड-19 से उबरने वाले लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रहा है। वर्तमान में, राज्य में ब्लैक फंगस के लगभग 400 रोगी हैं और सवाई मान सिंह अस्पताल जयपुर में उनके इलाज के लिए अलग वॉर्ड बनाया गया है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक दिन पहले इसे राजस्थान की हेल्थ इंश्योरेंस चिरंजीवी योजना में शामिल किया था। इसके बाद अब यह कदम उठाया है। इस बीमारी को महामारी में शामिल करने का मकसद यह बताया जा रहा है कि ऐसा करने से इसकी प्रभावी मॉनिटरिंग हो सकेगी, साथ ही इलाज को लेकर गंभीरता बरती जा सकेगी।
क्या है म्यूकरमायकोसिस?
म्यूकरमायकोसिस एक दुर्लभ संक्रमण है। ये म्यूकर फफूंद के कारण होता है जो आमतौर पर मिट्टी, पौधों, खाद, सड़े हुए फल और सब्ज़ियों में पनपता है। ये फंगस हर जगह होती है। मिट्टी में और हवा में। यहां तक कि स्वस्थ इंसान की नाक और बलगम में भी ये फंगस पाई जाती है। ये फंगस साइनस, दिमाग़ और फेफड़ों को प्रभावित करती है और डायबिटीज़ के मरीज़ों या बेहद कमज़ोर इम्यूनिटी वाले लोगों के मरीज़ों में जानलेवा भी हो सकती है। म्यूकरमायकोसिस में मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक है।
स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल बन रही वजह
कोविड-19 के मरीजों में फफड़ों की सूजन को कम करने के लिए स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल किया जाता है।
जब शरीर का इम्यून सिस्टम कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अतिसक्रिय हो जाता है तो उस दौरान शरीर को कोई नुक़सान होने से रोकने में स्टेरॉइड्स मदद करते हैं। लेकिन इससे शरीर की इम्यूनिटी कम हो जाती है। डायबिटीज़ या बिना डायबिटीज़ वाले मरीज़ों में शुगर का स्तर बढ़ा देते हैं। यही वजह है कि कोविड-19 से रिकवर हुए मरीजों को म्यूकरमायकोसिस संक्रमण हो रहा है।
क्या है म्यूकरमायकोसिस के लक्षण?
म्यूकरमायकोसिस से संक्रमित लोगों में ये लक्षण पाए जाते हैं - नाक बंद हो जाना, नाक से ख़ून या काला तरल पदार्थ निकलना, आंखों में सूजन और दर्द, पलकों का गिरना, धुंधला दिखना और आख़िर में अंधापन होना। मरीज़ के नाक के आसपास काले धब्बे भी हो सकते हैं। कई मरीज़ डॉक्टर्स के पास देर से आते हैं, तब तक ये संक्रमण घातक हो चुका होता है और उनकी आंखों की रोशनी जा चुकी होती है। ऐसे में डॉक्टर्स को संक्रमण को दिमाग़ तक पहुंचने से रोकने के लिए उनकी आंख निकालनी पड़ती है।