कानून की आड़ में सूदखोरों की मनमानी, जानिए मुरैना को कैसे लूट रहा है चैक का 'मुन्ना' ?

कानून, प्रशासन और सरकार के ढीले रवैये कानून की आड़ में सूदखोरों की मनमानी, जानिए मुरैना को कैसे लूट रहा है चैक का 'मुन्ना' ?

Bhaskar Hindi
Update: 2021-11-29 11:48 GMT
कानून की आड़ में सूदखोरों की मनमानी, जानिए मुरैना को कैसे लूट रहा है चैक का 'मुन्ना' ?
हाईलाइट
  • साहूकार अधिनियम की अनदेखी सूदखोरों को देती ताकत

डिजिटल डेस्क, मुरैना।  मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में सूदखोरों की मनमुताबिक वसूली से परेशान होकर पूरे परिवार ने जहर पीकर अपने जीवन लीला समाप्त कर ली।  जीवन और मौत के बीच जंग लड़ते हुए पूरे परिवार ने दम तोड़ दिया। इस घटना के भारी विरोध के बाद सरकार नींद से जागी और सभी जिलों से साहूकारों की सूची मांगी है।

                                        

अदालतों के ऐसे कई फैसलों की समीक्षा की जा सकती है लेकिन अदालतों के फैसलों पर सवाल खड़ा करना मीडिया का पेशा नहीं है। ना ही अदालत के फैसलों की समीक्षा करना हमारी इस खबर का मकसद है बल्कि हम इस उदाहरण से केवल सरकार न्यायपालिका और प्रशासन का ध्यान खींचना चाहते है कि ऐसे मामलों में प्रशासन की अनदेखी के चलते मुन्ना जैसे सूदखोर साहूकार की आड़ में अपना गोरखधंधा कैसे  चला रहे है। सेशन कोर्ट में आमतौर पर ऐसे मामलों में इस बात को नजरअंदाज कर देता है कि रूपए देने वाले ने अपनी हैसियत से अधिक रूपए बिना टैक्स चुकाए आंख बंद करके कैसे दे दिए। आय का वास्तिवक स्त्रोत क्या है। 

साहूकारों की सूदखोरी पर सख्त सीएम शिवराज 

हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों को साहूकारों के मकड़ जाल से राहत देने के लिए कानून बनाए लेकिन अन्य वर्ग के लोगों के लिए सूदखोरों से बचाव का कोई कानून नहीं है। जिसके चलते मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एक परिवार ने साहूकारों की सूदखोरी से परेशान होकर जान दें दी। इस घटना के बाद सूबे के मुखिया  शिवराज सिंह चौहान ने सभी  जिलों से साहूकारों की सूची मंगवाई है।  हालांकि साहूकार अधिनियम कानून पहले से ही मौजूद है लेकिन ज्यादातर साहूकार अपनी आय का सही सही स्त्रोत न बताने के कारण रजिस्ट्रेशन नहीं करवाते। इसका लाभ उठाकर साहूकार सूदखोर बन जाता है और अपने मनमुताबिक ब्याज राशि वसूलते रहते है।                          

                                      

मुरैना का सूदखोर मुन्ना      

सरकार और प्रशासन के ढीले रवैए के कारण साहूकार अधिनियम सिर्फ कागजों में छिपा बैठा है। ऐसा ही एक मामला मध्यप्रदेश के मुरैना का है। जहां वेयर हाउस के सामने रहने वाले मुन्नालाल शर्मा छलकपट और धोखेबाजी से मुरैना शहर के भोले भाले लोगों को जाल में फंसाकर कानून की आड़ में लूट रहा है। वह बहुत अच्छी तरह से जानता है कि चैक के मामलों को कैसे कानून के जरिए जीता जाता है। शहरवासी आवश्यकता होने पर इससे रूपए लेते है जिसके एवज में चतुर मुन्नालाल शर्मा उनसे एक से अधिक चैक लेता है। रूपए की जरूरत के कारण लोग इसकी अपनी बनाई शर्तों के मुताबिक केवल ह्स्ताक्षर युक्त चैक देने के लिए मजबूर होते है। कुछ समय बाद ये लोगों से रूपए भी वापस ले लेता है। लेकिन टालमटोली करते हुए चैक वापस नहीं करता। और मौका मिलते ही अपने हाथों से मनमुताबिक राशि भरकर चैक को बैंक से डिसऑनर कराके उसे कोर्ट में लगा देता है। कानून से परेशान होकर लोगों को मुन्नालाल के मुताबिक समझौता करना पड़ता है या कोर्ट के न्याय के आगे झुकना पड़ता। हर कोई कोर्ट कचेरी की सीढिओं के चढ़ने से बचना चाहता है क्योंकि कोर्ट में खीचते मामले के चलते जीवन का अधिक समय वहां निकल जाता है। 

                                 

                         

         

 

                           

                                 

बिना साहूकार के चैक के दम पर  मुन्ना की सूदखोरी

मध्यप्रदेश के मुरैना का मुन्नालाल शर्मा अपने हाथों से चैक में मनमुताबिक राशि भरके शहर में खूब लूटपाट मचाए हुए है। चैक पर लिखी हस्तलिपी की जांच कराना किसी भी चैक के मामले में प्रमुख हो सकती है लेकिन ज्यादातर सेशन न्यायालय इसे प्रमुखता से नहीं लेते।  दूसरी तरफ  बैंक हस्तलिपी अलग होने के कारण चैक को डिसओनर भी नहीं  करती क्योंकि बैंक सिर्फ साइन को ही प्रमुखता से देखती है। जिसका फायदा सूदखोर खूब उठा रहे है।  साहूकार की आड़ में चैक के दम पर भोली भाली जनता को लूटना सूदखोरों का एक पेशा बन गया है।  सुरक्षात्मक गांरटी के तौर पर दिये गए हस्ताक्षर युक्त ब्लेंक चैक का कानून की लूप पोल में दुरूपयोग किया जा रहा है। क्योंकि गांरटी के तौर पर चैक प्राप्त करने वाला अपने मनमुताबिक धनराशि अपनी हैंडराइटिंग में भरकर अदालत में पेश कर देता है। अदालत में  ऐसे मामले को इकलौता समझकर चैक प्राप्त करने को फरियादी के तौर पर हस्तलिपी, साहूकार रजिस्ट्रेशन जैसे अधिनियम को ज्यादातर मामलों में दरकिनार कर दिया जाता है।  लेकिन मुन्ना जैसे चतुर सूदखोर जो सरकार को टैक्स के जरिए चूना लगा रहे है वो इस सूची में कैसे शामिल होगे। इसकी कुछ हद तक वह न्यायपालिका भी जिम्मेदार होगी जो समय पर ऐसी कार्रवाईयों को न्याय से नजरअंदाज कर देती है। कानून की यह ढील मुन्ना जैसों को शहर लूटने की इजाजत देते रहेंगे। 

 

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