छत्तीसगढ़ में ओपीएस के असर पर सस्पेंस!
भूपेश बघेल सरकार पुरानी पेंशन योजना को जमीन पर उतारने में लगी है
ओपीएस में सरकार की ओर से कुछ शर्ते तय की गई हैं, जिसके तहत एनपीएस में सरकार की ओर से जमा किए गए अंशदान को कर्मचारी को सेवानिवृत्त होने पर सरकारी खजाने पर जमा करना होगा, वहीं उसका सेवाकाल 10 वर्ष से कम नहीं होना चाहिए। छत्तीसगढ़ टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय शर्मा कहते हैं कि राज्य में कर्मचारी नई पेंशन योजना में लगभग तीन कर्मचारी शामिल हैं, जिनकी नियुक्ति 2003 के बाद हुई है, इसमें से लगभग डेढ़ लाख शिक्षक हैं जिनका वर्ष 2018 में संविलियन हुआ है। इस तरह इन कर्मचारियों केा ओपीएस का लाभ 10 साल के सेवा काल अर्थात 2028 में सेवानिवृत्त होने पर मिलेगा। वहीं सरकार ने तय किया है कि पेंशन का लाभ उन्हीं कर्मचारियों को मिलेगा जिनकी सेवा 10 वर्ष की है और उसके बाद की सेवा के लिए आनुपातिक तौर पर पेंशन तय होगी, साथ ही 33 वर्ष की आयु पूरी होने पर ही कुल वेतन का 50 फीसदी पेंशन मिलेगी. इस स्थिति में शिक्षक संवर्ग के कर्मचारी बड़ी संख्या में ऐसे रहेंगे जिन्हें पेंशन का लाभ मिलना संदिग्ध है। वहीं केंद्र सरकार 20 साल की सेवा काल पर पूरी पेंशन देती है। इसी तरह का लाभ राज्य सरकार केा अपने कर्मचारियों को भी देना चाहिए। साथ ही षिक्षकों का सेवाकाल उनकी पहली नियुक्ति से किया जाना चाहिए।
भाजपा भी सरकार पर हमलावर है और पार्टी के मीडिया विभाग के प्रमुख अमित चिमनानी का कहना है कि पुरानी पेंशन योजना सरकार सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने के मकसद से सामने लाई है, क्योंकि जिन कर्मचारियों को पुरानी पेंशन का लाभ मिलना है, वे अब से लगभग 10 वर्ष बाद ही सेवानिवृत्त होंगे, क्योंकि 2003 से पहले जिनकी नियुक्ति है उन्हें तो ओपीएस का लाभ मिलना ही है। कुल मिलाकर सरकार को आने वाले 10 से 20 साल तक ओपीएस का लाभ कर्मचारियों को देना नहीं है, क्योंकि जिन कर्मचारियों की 2003 में नियुक्ति हुई है वे 2030 के बाद ही सेवानिवृत्त होंगे, लिहाजा वह सियासी लाभ के लिए यह सारा स्वांग रच रही है।
कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला का कहना है कि राज्य की सरकार ने कर्मचारियों के हित में ओपीएस लागू करने का फैसला किया है और कर्मचारियों को विकल्प चुनने का भी अवसर दिया। ऐसा करने की वजह है क्योंकि केंद्र सरकार के पास राज्य के कर्मचारियों का एनपीएस में 17 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि जमा है और वह केंद्र द्वारा वापस नहीं की जा रही है। यह राशि अगर राज्य को मिल जाती तो सभी कर्मचारियों को एक साथ ओपीएस का लाभ मिलता, फिर भी विकल्प चुनने वालों में 98 फीसदी कर्मचारियों ने ओपीएस के साथ जाने का विकल्प चुना है। जहां तक संविलियन वाले शिक्षकों की बात है उसमें सरकार सकारात्मक फैसला लेगी।
(आईएएनएस)
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