जाट सिखों से अच्छी है पंजाब में दलितों की संख्या, फिर ये राजनीतिक शक्ति क्यों नहीं बन पाई?

कांग्रेस ने इतनी देर क्यों की? जाट सिखों से अच्छी है पंजाब में दलितों की संख्या, फिर ये राजनीतिक शक्ति क्यों नहीं बन पाई?

Bhaskar Hindi
Update: 2021-09-21 11:20 GMT
जाट सिखों से अच्छी है पंजाब में दलितों की संख्या, फिर ये राजनीतिक शक्ति क्यों नहीं बन पाई?

डिजिटल डेस्क, चंडीगढ़। कांग्रेस आलाकमान ने चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब राज्य का पहला दलित मुख्यमंत्री नियुक्त किया है। पंजाब की राजनीति में ऐसा फेर बदल कई तरह के सवाल खड़े कर रहा है। दरअसल राज्य में दलितों को एकजुट करने के लिए कांशी राम ने बहुत मेहनत की है, जिसका अच्छा खासा असर भी देखने को मिलता है। 1996 में मिली जीत से इनके वर्चस्व का अंदाजा भी लगाया जा सकता है। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब पंजाब में दलितों की आबादी, जाट सिखों से काफी अच्छी है और शुरू से ही ये दलितों के बीच काम करने वाली पार्टी है तो इन सब के बावजूद इसे इतने कम वोट क्यों मिले?

1996 में जब कांशी राम के दलितों को एकजुट करने के प्रयास रंग लाए तब उनकी पार्टी का गठबंधन शिरोमणि अकाली दल के साथ था। बीबीसी हिंदी के अनुसार 1997 के चुनावों में बहुजन समाज पार्टी को उस समय सिर्फ 7.5 प्रतिशत मत मिल पाए थे, जो आगे चलकर 2017 में महज 1.5 प्रतिशत ही रह गए। इस विषय पर जब तर्क वितर्क किया गया तो यह बात सामने आई कि अनुसूचित जाति की आबादी भले ही राज्य में अच्छी हो लेकिन यह पार्टी व धर्म के अनुसार बंटी हुई है। इसे हम ऐसे भी समझ सकते हैं कि यह आबादी सिख दलित और हिंदू दलितों के बीच बंटी हुई है। इतना ही नहीं पंजाब में सिख दलितों के बीच भी कई समाज ऐसे हैं, जिनकी विचारधारा एक-दूसरे से बिलकुल भी मेल नहीं खाती।

मोहाली में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार ने बीबीसी को बताया कि  ‘‘शायद यही वजह है कि इतनी मेहनत के बावजूद कांशी राम पंजाब में दलितों को एकजुट नहीं कर पाए और उन्होंने पंजाब से बाहर निकलकर उत्तर प्रदेश और अन्य क्षेत्रों में दलितों के बीच काम करना शुरू किया।’’ वहीं दूसरी ओर पंजाब विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रोंकी राम ने बताया कि ‘‘कांशी राम ने पंजाब के विभिन्न दलित समाज के लोगों के बीच सामंजस्य और गठजोड़ बनाने की कोशिश जरूर की मगर वह कामयाब नहीं हो सके जबकि उत्तर प्रदेश में उनकी उत्तराधिकारी मायावती को इसमें अभूतपूर्व कामयाबी मिली।’’

उन्होंने आगे बताया कि ‘‘बहुजन समाज पार्टी का सबसे बेहतर प्रदर्शन वर्ष 1992 में रहा है यह वही समय था जब उसे 16 प्रतिशत वोट मिले थे। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे लोगों के बीच से पार्टी का प्रभाव भी कम होता गया, और वह सिमटकर पंजाब के दोआबा क्षेत्र के कुछ इलाकों में ही रह गई।’’ लाख जतन करने के बावजूद कांशी राम पंजाब में बहुजन समाज पार्टी को दलितों की पार्टी के रूप में स्थापित करने में असमर्थ रहे क्योंकि अनुसूचित जाति के सिख और वाल्मीकि समाज के लोगों ने खुद को इस पार्टी से अलग रखा।

बीबीसी हिंदी के अनुसार पंजाब में अगर दलितों के आंकड़ों पर एक नजर डालें तो अनुसूचित जातियों में सबसे बड़ा दायरा लगभग 26.33 प्रतिशत मज़हबी सिखों का है। वहीं दूसरी ओर रामदासिया समाज की आबादी की अगर बात करें तो यह 20.73 प्रतिशत है, जबकि आधी धर्मियों की आबादी 10.17 और वाल्मीकियों की आबादी 8.66 है।

वरिष्ठ पत्रकार अतुल संगर कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी की अगर बात करें तो चरणजीत सिंह चन्नी का पंजाब का मुख्यमंत्री बनाना कांग्रेस का क्या कोई मास्टर स्ट्रोक था? इस पर पब्बी का मानना है कि राज्य में दलित पहचान कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। क्योंकि कई बड़े दलित आंदोलन यहां से शुरू हुए हैं। राज्य में समाज के सभी वर्ग के लोगों को सिख और हिन्दू के रूप में पहचाना जाता है अब चाहे वो सिख दलित हो या फिर हिन्दू दलित। ये सभी लोगों को सिर्फ सिख और हिन्दू के रूप में ही जाना जाता है।

पब्बी ने आगे बताया कि कांग्रेस द्वारा पंजाब का मुख्यमंत्री किसी सिख दलित का बनना आगे चलकर फायदा पहुंचाएगा या नहीं इस पर फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता। वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों की राय यह भी है कि कांग्रेस का ऐसा फैसला लेना कोई छोटी बात नहीं है, क्योंकि आजादी के बाद किसी सिख दलित को सीएम के रूप में चुनना पहली बार हुआ है।

ज्ञानी जैल सिंह ही ऐसे थे, जो ओबीसी वर्ग से आते थे, जिन्हें पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया गया था। इनका ये भी कहना है कि चन्नी के मुख्यमंत्री बनाए जाने का मतलब ये बिलकुल नहीं है कि अब सारे दलित कांग्रेस का ही हाथ थामेंगे। सिख दलित शुरू से ही अकाली दल और कांग्रेस को समर्थन देते हुए आए हैं। लेकिन ऐसे में जब अकाली दल ने विधानसभा चुनावों से ठीक पहले ये कहा कि जीत मिलने पर वो दलित को उप मुख्यमंत्री बनाएंगे और आम आदमी पार्टी एवं भारतीय जनता पार्टी ने भी कुछ ऐसी ही घोषणा की थी। इसलिए ये जरूर कहा जा सकता है कि कांग्रेस का यह कदम मास्टर स्ट्रोक हो सकता है।

Tags:    

Similar News