संजय राउत के ट्वीट से उठे सवाल, जानिए कैसे होती है विधानसभा भंग और क्या होते हैं राज्यपाल के पास विकल्प?

भंग होगी महाराष्ट्र विधानसभा? संजय राउत के ट्वीट से उठे सवाल, जानिए कैसे होती है विधानसभा भंग और क्या होते हैं राज्यपाल के पास विकल्प?

Bhaskar Hindi
Update: 2022-06-22 09:32 GMT
संजय राउत के ट्वीट से उठे सवाल, जानिए कैसे होती है विधानसभा भंग और क्या होते हैं राज्यपाल के पास विकल्प?

डिजिटल डेस्क,मुंबई। महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारो में सुगबुगाहट है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जल्द ही गवर्नर को अपना इस्तीफा सौंप सकते हैं और विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं । शिवसेना के नेता संजय राउत ने ट्वीट कर इस और इशारा दिया है। अब यह देखना रोचक होगा कि अगर महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार विधानसभा भंग करने की सिफारिश करती है तो राज्यपाल इसमें क्या भूमिका निभाऐंगे और क्या विकल्पों पर विचार करेंगे ? 

कैसे होती हैं विधानसभा भंग?

भारत के संविधान के द्वारा गवर्नर को कई शक्तियां दी गई हैं जिसमें से एक विधानसभा भंग करने की शक्ति है। किसी भी राज्य के गवर्नर के पास 5 सालों से पहले विधानसभा भंग करने की शक्ति होती है। आमतौर पर विधानसभा भंग करने की कई परिस्थितियां होती हैं पर महाराष्ट्र सरकार की स्थिति की बात करें तो यह है कि
किसी राज्य में चल रही गठबंधन सरकार अल्पमत में आ जाए और अन्य दलों के पास सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत नहीं हो, तो इस स्थिति में राज्यपाल नए चुनाव के लिए राज्य की विधानसभा को भंग करने का फैसला कर सकते हैं।

गवर्नर मान जाएं उद्धव की बात

गवर्नर अगर उद्धव की बात मान जाते हैं तो विधानसभा भंग की जाएगी और राज्य में दोबारा चुनाव करवाए जाएंगे। संविधान के अनुसार मुख्यमंत्री के अनुरोध पर राज्यपाल विधानसभा को भंग कर सकते हैं। दूसरी परिस्थिति यह है कि अगर राज्यपाल मुख्यमंत्री के अनुरोध या सिफारिश को स्वीकार नहीं करते हैं तो सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करना होगा और अगर वे बहुमत साबित करने में सफल नही हो पाते हैं, तो बहुमत का दावा पेश करने वाली पार्टी के नेता को सरकार बनाने का न्योता गवर्नर के द्वारा भेजा जा सकता है। 

महाराष्ट्र में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी पर बहुमत पाने में सफल नहीं रही थी। उस समय सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते गवर्नर ने देवेन्द्र फणडवीस को सीएम पद की शपथ दिला दी थी जबकि उनके पास विधायको का संख्या बल नहीं था। इस घटनाक्रम के कुछ समय बाद बहुमत न होने के कारण देवेन्द्र फणडवीस  को इस्तीफा देना पड़ा था जिससे उनकी बहुत किरकिरी हुई थी और गवर्नर के फैसलो पर भी कई गंभीर सवाल उठाये गए थे। 

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