जम्मू-कश्मीर की पहाड़ी जनजाति के लिए उम्मीद की किरण हैं पीएम मोदी

श्रीनगर जम्मू-कश्मीर की पहाड़ी जनजाति के लिए उम्मीद की किरण हैं पीएम मोदी

Bhaskar Hindi
Update: 2022-09-17 17:00 GMT
जम्मू-कश्मीर की पहाड़ी जनजाति के लिए उम्मीद की किरण हैं पीएम मोदी

डिजिटल डेस्क,  श्रीनगर। जब से जम्मू-कश्मीर को 2019 में केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिला है, भाजपा सरकार ने आदिवासी और खानाबदोश समुदायों के लोगों के लिए ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। जम्मू-कश्मीर में रहने वाली पहाड़ी जनजाति की उम्मीदें चरम पर हैं। पहाड़ी लोग नए उत्साह के साथ जाग रहे हैं कि उन्हें अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा किया जाएगा। पिछले 70 सालों से जूझ रही पहाड़ी जनजाति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने इस दिशा में संकेत दिए हैं।

1991 में केंद्र सरकार ने गुर्जर बकरवालों सहित जम्मू-कश्मीर की सात जनजातियों को एसटी का दर्जा दिया, लेकिन पहाड़ी जनजाति, जो सूची में पहले स्थान पर थी, वो वंचित रही। तब से पहाड़ी जनजाति के लोग उन्हें एसटी में शामिल करने के लिए केंद्र से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन आज तक किसी सरकार ने उनकी याचिका पर ध्यान नहीं दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर से पहाड़ी जनजाति की मांगों का जिक्र किया और जम्मू में एक रैली के दौरान शाह के आश्वासन से समुदाय में उत्साह की एक नई लहर दौड़ गई।

ऑल जम्मू एंड कश्मीर पहाड़ी कल्चरल एंड वेलफेयर फोरम के अनुसार, समय-समय पर सरकारों ने उन्हें आश्वासन दिया कि पहाड़ी जनजाति को अनुसूचित श्रेणी में शामिल करने का उनका अधिकार दिया जाएगा, लेकिन वास्तव में उनकी आवाज नहीं उठाई गई। पहाड़ी जनजाति के नेता और पूर्व एमएलसी जफर इकबाल मन्हास ने कहा कि जनजाति के युवा अपने अधिकारों से वंचित होने के कारण बेकार भविष्य का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहाड़ी युवा भी पीड़ित हैं क्योंकि यह भेदभाव से वो दिमागी तौर पर भी परेशान हैं। मिलाप न्यूज नेटवर्क से बात करते हुए, पहाड़ी नेता अब्दुल मजीद जिंदादिल ने कहा कि गुलाम अली को गुर्जर जनजाति से उच्च सदन में मनोनीत करने के बाद, उन्हें विश्वास है कि मोदी सरकार पहाड़ी जनजाति से किए गए वादे को पूरा करेगी।

पहाड़ी लोगों को एसटी का दर्जा देने का वास्तव में बहुत औचित्य है। आंकड़े बताते हैं कि पहाड़ी आबादी वाले क्षेत्रों में न तो उद्योग शुरू किए गए हैं और न ही लाभकारी रोजगार का कोई अन्य साधन उपलब्ध कराया गया है। पैसे की कमी के कारण पहाड़ी लोग अक्सर अपने बच्चों को उचित शिक्षा देने में पीछे रह जाते हैं। यह जनजाति आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और यहां तक कि राजनीतिक पतन से भी पीड़ित रही है।

यह भी एक जीता जागता सच है कि गुर्जर बकरवाल वर्ग को एसटी का दर्जा देने के बाद अब पहाड़ियों को निचली श्रेणियों में भी नौकरी से हाथ धोना पड़ रहा है। एक ही क्षेत्र में समान जीवन स्तर होने के बावजूद, ये लोग व्यवस्था से बाहर रह जाते हैं। ऐसे में पीएम मोदी उनके लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरे हैं और पहाड़ी समाज उन्हें इंसाफ के लिए देख रहा है।

 

 (आईएएनएस)

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