मथुरा का मुद्दा उठाकर बीजेपी ने अखिलेश यादव के 'यादव वोटबैंक' में बड़ी सेंध लगा दी है?
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 मथुरा का मुद्दा उठाकर बीजेपी ने अखिलेश यादव के 'यादव वोटबैंक' में बड़ी सेंध लगा दी है?
- केशव प्रसाद मौर्य ने ट्वीट कर मथुरा की तरफ इशारा किया है।
- 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने विवादित ढांचे को गिरा दिया था।
- सीएम योगी ने कभी अयोध्या की वजह से मथुरा को दरकिनार नहीं किया।
डिजिटल डेस्क लखनऊ। 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद कांड को याद करते हुए यूपी के कई इलाकों में भरपूर सतर्कता है। अयोध्या में तो होनी ही थी इस बार मथुरा तक पुलिस मुस्तैद। कारण बना है बीजेपी नेता केशव प्रसाद मौर्य का वो ट्वीट जिसमें उन्होंने अब मथुरा की तरफ इशारा किया है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस एक ट्वीट से मौर्य न सिर्फ सुर्खियां बटोरी हैं बल्कि अखिलेश यादव के यादव वोट बैंक में बड़ी सेंध लगा दी है।
यूपी में समाजवादी पार्टी हमेशा एमवाय समीकरण यानि मुस्लिम और यादव के समीकरणों को साध कर चुनाव लड़ती रही है। यूपी का जो यादव वोटबैंक रहा है उस पर अब तक सपा का पूरा अधिकार रहा है। मुस्लिम मतदाता प्रत्याशी के अनुसार आगे पीछे होते रहे लेकिन यादवों ने हमेशा सपा के साथ निष्ठा निभाई है। हालांकि इस चुनाव में अब ये समीकरण गड़बड़ाता नजर आ रहा है। मुस्लिम मतदाता का वोट हड़पने के लिए असदुद्दीन ओवैसी ने यूपी में पैठ बढ़ानी शुरू कर ही दी है। उनके अलावा यादव वोटबैंक पर अब बीजेपी की नजर है। या यूं कहें कि मथुरा पर दांव खेलकर योगी आदित्यनाथ पहले ही यादवों के दिल में जगह बना चुके थे अब मोर्य के मथुरा पर स्टैंड ने अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ा दी है।
वैसे भी सीएम योगी ने कभी अयोध्या की वजह से मथुरा को दरकिनार नहीं किया। इधर अयोध्या दीपों से जगमगाई तो उधर मथुरा को कृष्ण की जन्मभूमि मानकर उसे तीर्थ स्थल का दर्जा दे दिया। जहां मास मदिरा की दुकाने चलाने की अनुमति नहीं है। ये फैसला पहले ही योगी का मास्टर स्ट्रोक था अब मथुरा में मंदिर मस्जिद का मुद्दा उठाकर बीजेपी ने यादव वोटर्स के बड़े तबके को अपने खेमे में लेने की तरफ पहला कदम उठा लिया है। कृष्ण जन्मभूमि यादवों के लिए उसी तरह बड़ा धार्मिक मुद्दा है जैसा हिंदुओं के लिए अयोध्या और रामजन्मभूमि का मसला रहा है। अयोध्या की तरह अखिलेश मथुरा पर भी हमेशा चुप्पी साधे रहे। अब इस मुद्दे पर स्टेंड लेते हैं तो मुस्लिम मतदाता रूठते हैं और अगर नहीं लेते हैं तो यादव वोट से हाथ धोना मुमकिन है। कुलमिलाकर अखिलेश यादव के लिए ये आगे कुआं पीछे खाई जैसी स्थिति है।