अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद भी नहीं बनेगा केजरीवाल का काम, राहुल गांधी के बिना अधूरा है मिशन!
- अखिलेश यादव से 7 जून को मिलेंगे केजरीवाल
- कांग्रेस के बिना केजरीवाल का मिशन नहीं होगा पूरा!
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सत्ता का मोह और पावर तमाम राजनीतिक पार्टियों के लिए बड़ी अहम होती है। आज कल दिल्ली की सियासत में यही सब चल रहा है। केंद्र की मोदी सरकार और दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार 'ट्रांसफर-पोस्टिंग' पर एक दूसरे के सामने सीना तान खड़ी हुई हैं। केंद्र के एक अध्यादेश ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरी तरह पलट दिया है। जिसकी वजह से सीएम अरविंद केजरीवाल तमाम राजनीतिक दलों से समर्थन मांग रहे हैं। दिल्ली सीएम उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम, गैर बीजेपी राज्य सरकारों से समर्थन मांग रहे हैं। जिसमें वो सफल होते हुए भी दिखाई दे रहे हैं। केंद्र के इस अध्यादेश के खिलाफ और राज्यसभा में अपने समर्थन में केजरीवाल समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के साथ 7 जून को लखनऊ में मुलाकात करने वाले हैं। केजरीवाल के साथ आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह, राघव चड्ढा और पंजाब के सीएम भगवंत मान सिंह भी मौजूद रहने वाले हैं। केजरीवाल इस बैठक में सपा सुप्रीमो से राज्यसभा में अपने समर्थन में वोट मांगेंगे ताकि बीजेपी के मंसूबों पर पानी फिर सके।
सपा प्रमुख से मुलाकात से पहले चर्चाएं शुरू हो गई हैं कि क्या केजरीवाल वाकई केंद्र सरकार के खिलाफ राज्यसभा में उतना समर्थन हासिल कर पाएंगे, जिसकी मदद से वो केंद्र के अध्यादेश को कानून बनने से रोका पाएं। चर्चा यह भी है कि अगर सपा, आप का समर्थन भी कर देती है तो केजरीवाल जो चाहते हैं वो पूरा हो पाएगा? और उन्हें सियासी तौर पर कितना फायदा मिलेगा। सियासत के जानकार कहते हैं कि, अगर राज्यसभा में सपा केजरीवाल के समर्थन में वोट करती है फिर भी केंद्र के अध्यादेश को रोकने में नाकामयाब ही रहेगी। क्योंकि सबसे पहले आप को उन तमाम दलों को एक साथ लाना होगा जिनके पास राज्यसभा में अच्छे खासे सदस्यों की संख्या हैं। जिनमें कांग्रेस पार्टी मुख्य है। जिसके बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा राज्यसभा में सदस्य हैं।
कांग्रेस का साथ बेहद जरूरी
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि, अगर केंद्र के अध्यादेश को केजरीवाल को निष्क्रिय बनना है तो उन्हें सबसे पहले कांग्रेस को अपने पाले में लाना होगा क्योंकि बीजेपी के बाद राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी के सबसे ज्यादा सदस्य हैं। सीएम केजरीवाल को अपने लक्ष्य को हासिल करना है तो कैसे भी करके 'पंजे' को अपने साथ जोड़ना होगा अन्यथा इस बैठका का कोई औचित्य नहीं है। सियासत के जानकार कहते हैं कि, अगर कांग्रेस पार्टी केजरीवाल का सपोर्ट नहीं करती है फिर भी वो तमाम विपक्षी दलों को एक साथ लाने में कामयाब हो जाते हैं तो संभव है कि केजरीवाल जो चाहते हैं वो पूरा हो जाए। लेकिन इसकी उम्मीद कम ही है क्योंकि बीजेपी के साथ कई ऐसे भी दल है जो इस मामले में सपोर्ट कर रहे हैं।
उच्च सदन ( राज्यसभा) का क्या है समीकरण?
राज्यसभा में मौजूदा सांसदों की संख्या 233 है। अगर बीजेपी को ट्रांसफर-पोस्टिंग के अध्यादेश को राज्यसभा में पास करना है तो उसे 117 सांसदों का समर्थन मिलना जरूरी होगा। ठीक इतना ही सीएम केजरीवाल को सदस्यों की जरूरत होगी ताकि यह अध्यादेश दिल्ली में लागू न हो। राज्यसभा में बीजेपी के 92 सांसद हैं। इसके अलावा बीजेपी को एनडीए में मौजूद कुछ दलों के सदस्यों का भी समर्थन हासिल है। जो भाजपा के लिए सकारात्मक है। इसके अलावा भाजपा कुछ गैर एनडीए दलों पर भी नजर बनाई हुई है ताकि केंद्र द्वारा लाए गए इस अध्यादेश को आसानी से उच्च सदन से पास कराया जा सके। जिसमें सबसे प्रमुख नाम बीजेडी, अकाली दल और शिंदे गुटे के शिवसेना के नाम शामिल हैं। वहीं केजरीवाल की आप पार्टी के तीन ही राज्यसभा सांसद हैं। जिसकी वजह से तमाम दलों के पास जाकर केजरीवाल को अपने समर्थन में वोट जुटना पड़ रहा है। केजरीवाल पूरे तरह से विपक्ष के नेताओं के ऊपर निर्भर हैं। इसलिए तमाम राजनीतिक दलों से मुलाकात कर समर्थन हासिल कर रहे हैं। बता दें कि, बीजेपी के बाद कांग्रेस का सबसे बड़ा दल राज्यसभा में है। मौजूदा समय में कांग्रेस पार्टी के 31 राज्यसभा सांसद हैं जो केजरीवाल के पक्ष में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
केजरीवाल कैसे जीतेंगे?
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस का साथ मिलना बेहद ही महत्वपूर्ण है। अगर कांग्रेस का साथ नहीं मिला तो वो केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ जीत हासिल नहीं कर पाएंगे। इस बात को सीएम केजरीवाल भी भलीभांति जानते हैं। इसलिए वो बार-बार कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से मिलने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन कांग्रेस पार्टी अभी आप के समर्थन के मूड में नहीं दिखाई दे रही है। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मिलने के लिए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल दो बार अपॉइंटमेंट ले चुके हैं। लेकिन पार्टी की ओर से किसी तरह का कोई रिस्पॉन्स अब तक नहीं आया है। जिस पर केजरीवाल ने कहा था कि, कांग्रेस पार्टी को मेरे साथ खड़ा होना चाहिए क्योंकि देश और दिल्ली में लोकतंत्र को जिंदा रखना है। वहीं सात जून को सपा अध्यक्ष से मुलाकात करने वाले केजरीवाल को अखिलेश यादव अपना समर्थन भी दे देते हैं तो उन्हें केवल आठ सांसदों का समर्थन मिलेगा। जो संख्या की दृष्टी से काफी अहम है। हालांकि, सवाल अब भी वहीं पर है केवल सपा के समर्थन से केजरीवाल अपने मिशन में कामयाब नहीं होंगे उनको और पार्टियों को अपने पक्ष में लाना होगा। तभी केंद्र के अध्यादेश को वो विफल कर सकते हैं।
क्या कह कर केंद्र ने अध्यादेश लाया?
आपको बता दें कि, केंद्र सरकार और बीजेपी में अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर आठ साल से रस्साकशी चल रही है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने बीते महीने के 11 तारीख को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केजरीवाल को यह अधिकार सौंप दिया था। जिसके बाद केजरीवाल तुरंत एक्टिव हो गए थे और शीर्ष अदालत के इस फैसल को उन्होंने देश में लोकतंत्र की जीत बताया था। लेकिन उनकी खुशी ज्यादा दिन तक नहीं चली और केंद्र की मोदी सरकार ने एक अध्यादेश लाकर पूरा मामला ही पलट दिया। सरकार की ओर से कहा गया कि, दिल्ली देश की राजधानी है यहां तमाम देशों के राजदूत रहते हैं। सुरक्षा को देखते हुए केंद्र सरकार ने अपने अंदर ही अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग लेने का फैसला किया है। जिसकी वजह से ये अध्यादेश लाया गया है। तब से केंद्र और आप आमने-सामने हैं।