गांधीनगर लोकसभा सीट 2024: भाजपा का गढ़ गांधीनगर, जानिए अटल-आडवाणी से लेकर अमित शाह तक की चुनावी जीत

  • गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें
  • बीजेपी का गढ़ बन चुकी गांधीनगर सीट
  • वर्तमान में देश के गृहमंत्री अमित शाह है यहां से सांसद

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-17 10:34 GMT

 डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली।  गुजरात में कई लोकसभा सीटें हैं जिन पर काफी लंबे वक्त से भाजपा का कब्जा है। गांधीनगर लोकसभा सीट भी इन्हीं में से एक है। एक वक्त पर कांग्रेस ने यहां चुनाव जीतने के लिए काका के नाम से मशहूर सुपरस्टार राजेश खन्ना को भी उतारा था। हालांकि, कांग्रेस का यह दांव नहीं चला और काका को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।

लोकसभा चुनाव में थोड़ा ही समय बाकी है, चुनाव के लिहाज से गुजरात काफी अहम राज्य है।  पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का गृह राज्य होने से यह राज्य लोकसभा चुनाव में और अधिक अहम हो जाता है। सबकी निगाहें इस राज्य पर टिकी रहेगी। यहां लोकसभा की कुल 26 सीटें हैं ।

वैसे आपको बता दें गुजरात भाजपा का सबसे मजबूत गढ़ है। गुजरात में लोकसभा की कई ऐसी सीटें हैं जहां भाजपा दशकों से जीतती आ रही है। गांधीनगर लोकसभा सीट की गिनती उन्हीं सीटों में से एक सीट में की जाती है। वर्तमान में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इस सीट से सांसद हैं। कांग्रेस ने इस सीट को जीतने के लिए खूब जोर आजमाइश की पर उसके हाथ सफलता नहीं लगी। आईए जानते हैं क्या रहा है गांधीनगर लोकसभा चुनाव का इतिहास?

1967 में गठित हुई गांधीनगर सीट

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्म भूमि कही जाने वाली गांधीनगर लोकसभा सीट का गठन साल 1967 में हुआ था।  सीट भाजपा का अभेद किला रहा है। साल 1989 से भाजपा लगातार इस सीट से चुनाव जीतती आ रही है। साल 1967 के आम चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार एस एम सोलंकी ने यहां से जीत दर्ज की थी। इसके बाद साल 1971 के अगले चुनाव में भी एस एम सोलंकी ने चुनाव जीता और अपनी सांसदी बरकरार रखी। लेकिन इस बार उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्थान पर एनसीओ से चुनाव लड़ा। फिर साल 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर एक बार हार का मुंह देखना पड़ा। इस साल के चुनाव में भारतीय लोकदल (बीएलडी) से पुरषोत्तम गणेश मावलंकर ने चुनाव जीता। जो कि पहले लोकसभा स्पीकर जी वी मावलंकर के बेटे भी थे। साल 1980 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की वापसी होती है और इस बार अमृत मोहन लाल पटेल सांसद बनते हैं। फिर साल 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी से जी आई पटेल चुनाव जीतकर सांसद बनते हैं। यह आखिरी बार था जब कांग्रेस ने गांधीनगर सीट से चुनाव जीता था।

भाजपा का दौर हुआ शुरु

गांधीनगर लोकसभा सीट पर साल 1989 से भाजपा का दौर शुरू होता है। 1989 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के वेघेला शंकरजी लक्ष्मणजी सांसद के तौर पर चुने जाते हैं। फिर साल 1991 के आम चुनाव में लाल कृष्ण आडवाणी भाजपा से सांसद बने। इसके बाद साल 1996 के अगले आम चुनाव में भाजपा की बुनियाद रखने वाले पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी ने चुनाव जीता। हालांकि, उन्होंने साल भर के अंदर ही सीट खाली कर दी। फिर इसी साल उप-चुनाव कराए गए जिनमें भाजपा के नेता विजय पटेल ने चुनाव जीता। यह वहीं चुनाव था जिसमें कांग्रेस ने सियासी दांव खेलते हुए सुपरस्टार राजेश खन्ना को टिकट दिया था। लेकिन काका का जादू नहीं चला और बीजेपी के युवा नेता विजय पटेल की जीत हुई। साल 1998 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर लालकृष्ण आडवाणी इसी सीट से खड़े हुए और जीते। इसके बाद लगातार चार चुनाव 1999, 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव भी लालकृष्ण आडवाणी ने गांधी नगर सीट से ही जीते। आडवाणी के बाद सीट का जिम्मा संभाला अमित शाह ने। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अमित शाह ने बीजेपी को इस सीट से अब तक की सबसे बड़ी जीत दिलवाई।

अमित शाह ने गांधीनगर में बनाया नया रिकॉर्ड

गुजरात की गांधीनगर सीट से पिछले चुनाव में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अब तक की सबसे रिकॉर्ड तोड़ जीत दर्ज की थी। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में अमित शाह के सामने कांग्रेस के सीजे चावड़ा ने चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में अमित शाह को कुल 8 लाख 94 हजार 624 वोट मिले थे। उनके सामने सीजे चावड़ा को 3 लाख 37 हजार 610 वोट मिले थे। अमित शाह कुल 5 लाख 57 हजार 14 वोटों के अंतर से जीते थे। अगर गांधीनगर सीट के चुनावी नतीजों के इतिहास पर नजर डालें तो इतने अधिक वोटों से आज तक कोई नहीं जीता ।  लेकिन साल 2019 के आम चुनाव में अमित शाह गांधीनगर सीट से पहले ऐसे नेता बने जिन्होंने वोटों में 8 लाख का आंकड़ा पार किया। इस दौरान पिछले चुनाव में भाजपा का कुल वोट प्रतिशत 69.67 फीसदी रहा।

गांधीनगर सीट से जुड़े रोचक तथ्य

गांधीनगर लोकसभा सीट के इतिहास पर एक नजर डालें तो कई रोचक तथ्य भी देखने को मिलते हैं। एक वक्त पर भाजपा के शीर्ष नेता रहे लालकृष्ण आडवाणी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी दोनों ने यहां से चुनाव जीतकर लोकसभा में कदम रखा था। साल 1996 के आम चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को भारी मतों से विजय प्राप्त हुई थी लेकिन उन्होंने एक साल में ही यह सीट खाली कर दी। इसे देखते हुए कांग्रेस ने एक बड़ा चुनावी एक्सपेरीमेंट किया। उप-चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट से बॉलीवुड अभिनेता और सुपरस्टार रहे काका यानी राजेश खन्ना को उतार दिया।

काका को उतारने की वजह ?

उप-चुनाव में कांग्रेस ने बॉलीवुड सुपरस्टार काका यानी राजेश खन्ना को उतारने का जो फैसला लिया था वह काफी चौंकाने वाला था। साल 1996 के आम चुनाव में भाजपा ने गांधीनगर सीट से 1 लाख 88 हजार 872 वोटों से जीत हासिल की थी। कांग्रेस उस चुनाव में भाजपा को बड़ा झटका देने की तैयारी में थी। लेकिन तब पार्टी के पास कोई ताकतवर नेता नहीं था जो भाजपा का गढ़ बन चुकी इस सीट पर मुकाबला कर सके। ऐसे में कांग्रेस ने बॉलीवुड अभिनेता राजेश खन्ना को उतारना ठीक समझा। राजेश खन्ना की उन दिनों लोगों में खूब लोकप्रियता थी और रिश्ते में भी वह गुजरात के दामाद लगते थे। राजेश खन्ना ने बॉलीवुड अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया से शादी की थी जिस वजह से उनका गुजरात से अलग संबंध माना जाता था। राजेश खन्ना को मैदान में उतारने की एक और वजह थी। दरअसल जब भाजपा ने उप-चुनाव में 36 वर्षीय नेता विजय पटेल को गांधीनगर से मैदान में उतारा तो उस वक्त कांग्रेस को लगा कि अगर राजेश खन्ना को उनके सामने उतारा जाए तो परिणाम उनके पक्ष में आ सकते हैं। राजेश खन्ना की लोकप्रियता के चलते कांग्रेस का अनुमान था कि वह गांधीनगर जीत सकते हैं। लेकिन नतीजे इससे एकदम उलट थे। उप-चुनाव में राजेश खन्ना को भाजपा के युवा नेता विजय पटेल के हाथों करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। इस चुनाव में विजय पटेल को कुल 2 लाख 58 हजार 589 वोट मिले। जबकि राजेश खन्ना के खाते में 1 लाख 97 हजार 425 वोट आए।

उप-चुनाव हारी कांग्रेस पर पार्टी को हुआ फायदा

गांधीनगर में जो उप-चुनाव हुए थे उसका नतीजा कांग्रेस के पक्ष में नहीं गया था। दिग्गज नेता हरीश चंद्र पटेल के बेटे विजय पटेल ने बॉलीवुड के सुपरस्टार काका (राजेश खन्ना) को हरा दिया था। कांग्रेस का सियासी दांव भले ही विफल रहा था लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस की स्ट्रैटजी से पार्टी को काफी फायदा भी मिला था। राजेश खन्ना ने इस चुनाव में कुल 1 लाख 97 हजार 425 वोट हासिल किए थे। इस हिसाब से कांग्रेस का वोट प्रतिशत 40.17 प्रतिशत हुआ था। जिससे लोकसभा चुनाव के मुकाबले कांग्रेस के वोट शेयर में 12.54 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी। इसके बाद साल 2019 तक के आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी अपने वोट शेयर प्रतिशत के आंकड़े को कभी पार नहीं कर सकी।

सवर्णों का रहा दबदबा

गांधीनगर लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास पर गौर करें तो एक और रोचक तथ्य निकल कर आता है। गांधीनगर में अब तक कुल 15 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं जिनमें केवल दो बार ही अनुसूचित जाति का सांसद चुना गया। साल 1967 और 1971 के आम चुनाव में कांग्रेस से अनुसूचित जाति के सोमचंदभाई सोलंकी ने यहां से चुनाव जीता था। इसके बाद से गांधीनगर सीट से लगातार सवर्ण जाति के नेताओं ने ही चुनाव जीता है।

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