संस्कृति: छठ महापर्व में श्रद्धालुओं के लिए गया के सूर्य कुंड का है व‍िशेष महत्व

बिहार के गया शहर में स्थित सूर्य कुंड का छठ पर्व में विशेष महत्व है। यह स्थल न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसके साथ जुड़ी ऐतिहासिक मान्यताओं और परंपराओं ने इसे विशेष रूप से पवित्र बना दिया है। छठ पर्व के दौरान हर साल हजारों व्रती सूर्य कुंड में भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए आते हैं, इससे कुंड का वातावरण भक्तिमय हो जाता है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-05 14:23 GMT

गया, 5 नवंबर (आईएएनएस)। बिहार के गया शहर में स्थित सूर्य कुंड का छठ पर्व में विशेष महत्व है। यह स्थल न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसके साथ जुड़ी ऐतिहासिक मान्यताओं और परंपराओं ने इसे विशेष रूप से पवित्र बना दिया है। छठ पर्व के दौरान हर साल हजारों व्रती सूर्य कुंड में भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए आते हैं, इससे कुंड का वातावरण भक्तिमय हो जाता है।

छठ पर्व सूर्य उपासना का त्योहार है। इसमें व्रती उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी आस्था प्रकट करते हैं। गया का सूर्य कुंड इस उपासना के लिए विशेष स्थल माना गया है। ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान सूर्य की आराधना से रोग, कष्ट, और दरिद्रता का नाश होता है। यही कारण है कि छठ के अवसर पर यहां बिहार और झारखंड ही नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों से भी भक्तगण आकर कुंड में डुबकी लगाते हैं।

पौराणिक मान्यताओं की मानें तो सूर्य कुंड का उल्लेख विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में भी किया गया है। माना जाता है कि यह कुंड त्रेता युग में भगवान राम और माता सीता द्वारा पवित्र किया गया था। इसके अलावा, यह भी कहा जाता है कि कुंड के जल में स्नान करने से न केवल शारीरिक बल्कि आत्मिक शुद्धि भी होती है। चर्म रोग भी दूर होते हैं। इस कुंड के पवित्र जल से सूर्य को अर्घ्य देने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

छठ पर्व में व्रती दिन-रात भूखे-प्यासे रहकर कठिन तप करते हैं और सूरज की पहली किरण का दर्शन कर उन्हें अर्घ्य अर्पित करते हैं। सूर्य कुंड के तट पर व्रतियों की यह श्रद्धा और तपस्या पूरे क्षेत्र में एक अलग ऊर्जा का संचार करती है। इस पर्व में व्रतियों का अनुशासन, स्वच्छता, और समर्पण एक मिसाल पेश करता है।

सूर्य कुंड के बारे में बताया जाता है कि इसका निर्माण और महत्व प्राचीन काल से ही अद्वितीय रहा है। यहां का वास्तुशिल्प और पुरातन संरचना इसकी ऐतिहासिकता को प्रमाणित करती है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, यह कुंड महान ऋषियों और तपस्वियों का ध्यान स्थल रहा है। समय-समय पर इसकी देखरेख और पुनर्निर्माण कार्य होते रहे हैं, जिससे इसकी महत्ता और आकर्षण और भी बढ़ गई है।

स्थानीय पंडित कमलेश कुमार गुर्दा बताते हैं, “यह सूर्य मंदिर लगभग एक हज़ार वर्ष पुराना है, जो हमारे टेकारी क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर और तालाब का निर्माण टेकारी के पहले राजा ने करवाया था, और बाद में गया बाल पंडे द्वारा इसका जीर्णोद्धार कराया गया। तब से लेकर आज तक यह मंदिर और तालाब बने हुए हैं और उनकी देखरेख भी गया बाल पंडा करते आ रहे हैं। इस तालाब के अंदर पांच वेदियों का श्राद्ध भी होता है, जिसे पंचतीर्थ के नाम से जाना जाता है। साथ ही, यहां कनखल का ऊंचा उत्तर और दक्षिणांद शिवालय भी स्थित हैं।

उन्होंने कहा, “कनखल क्षेत्र का इतिहास बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह कनखल नामक स्थान आपको कुरुक्षेत्र में भी मिलता है, और इस तालाब की विशेषता यह है कि यहां पर कई तैराकों ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। यहां के तैराकों ने कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया है और अपनी उत्कृष्टता साबित की है। छठ पूजा के बारे में बात करें तो, यह विशेष रूप से सूर्य नारायण के पूजन के लिए होती है। इस पूजा में लोग विशेष संयम रखते हैं और सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूर्य नारायण को अस्त होने पर पहले अर्क का अर्पण किया जाता है, और यह मान्यता है कि सूर्य को अर्घ्य देने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, खासकर संतान प्राप्ति और अन्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए। यहां सूर्य कुंड में सूर्य नारायण को अर्घ्य दिया जाता है, जैसे देवों के सूर्य कुंड में होता है।”

इसके बाद उन्होंने कहा, “इस पूजा के दौरान, लोग संतान प्राप्ति या अन्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए सूर्य नारायण को साक्षी मानकर अर्घ्य अर्पित करते हैं। उदाहरण के तौर पर, कमलेश कुमार गुप्ता जैसे भक्त भी इस पूजा में सम्मिलित होते हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए सूर्य नारायण से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।”

इसके बाद राहत एवं आपदा विभाग में कार्यरत अशोक कुमार पाठक बताते हैं, “सूर्य मंदिर और सूर्य कुंड के कारण इस स्थान का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है, खासकर छठ पूजा के दौरान। यहां पर चैती छठ और कार्तिक छठ का विशेष महत्व है, और इन दिनों में यहां पर भक्तों की भारी भीड़ रहती है। पुराने समय में यह मान्यता थी कि फल्गु नदी में पानी नहीं रहता था, लेकिन सूर्य कुंड के पानी के कारण अब यहां हमेशा पानी मौजूद रहता है। यह पानी प्राकृतिक रूप से भरता रहता है, क्योंकि इसमें एक विशेष नाला कनेक्शन है, जो फल्गु नदी से जुड़ा हुआ है। नदी का थोड़ा पानी इसमें भी आता है, जिससे इसका जलस्तर कभी कम नहीं होता।”

उन्होंने कहा, “इस सूर्य कुंड के बारे में कई मान्यताएं हैं। एक मान्यता यह है कि इस जल में स्नान करने से शरीर की त्वचा संबंधी समस्याएं, जैसे फुंसी या खुजली, समाप्त हो जाती हैं। इसे सूर्य भगवान के आशीर्वाद का फल माना जाता है। इसके अलावा, यह भी माना जाता है कि इस पानी में स्नान करने से सफेद दाग की बीमारी ठीक हो जाती है। सूर्य की रोशनी से शरीर में मेलेनिन का संतुलन सही हो जाता है, जिससे सफेद दाग समाप्त हो जाते हैं।”

उन्होंने कहा, “यहां आने वाले बहुत से लोग संतान प्राप्ति के लिए भी पूजा करते हैं। जिन लोगों को संतान सुख नहीं मिलता, वे इस स्थान पर आकर सूर्य नारायण की पूजा करते हैं और अपनी इच्छाओं की पूर्ति की कामना करते हैं। खासकर छठ पूजा के समय, जब चार दिनों तक उपवास, स्नान और पूजा होती है, भक्तों की संख्या और बढ़ जाती है। इस दौरान नहाय-खाय की पूजा होती है, फिर अगले दिन उपवास होता है और अंत में परम व्रत होता है।”

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