बॉलीवुड: 'जिंदगी और कुछ भी नहीं तेरी-मेरी कहानी है' दुनिया को यह बताकर अलविदा कह गए यह मशहूर सिंगर
तानसेन ने राग मल्हार छेड़ा तो बारिश हुई। ऐसे ही हिंदी सिनेमा में एक गायक हुए जिन्होंने जब 'बरखा रानी जरा जम के बरसो...' गाना शुरू किया तो स्टूडियो में इस गाने की रिकॉर्डिंग के समय अंदर बैठे लोगों को पता भी नहीं चला की बाहर आसमान में बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं। फिर क्या था इधर गाना रिकॉर्ड होता रहा और उधर काले बादल आसमान में मंडराने लगे और फिर शुरू हुई झमाझम बारिश, जब सबने बाहर आकर देखा तो बादल बरस रहे थे, इससे सभी अचरज में थे। ऐसा लगा कि जिस तल्लीनता के संग यह गीत गाया जा रहा था, उसे बरखा रानी ने सुन लिया हो और वह बिन मौसम बरस पड़ी थी।
नई दिल्ली, 27 अगस्त (आईएएनएस)। तानसेन ने राग मल्हार छेड़ा तो बारिश हुई। ऐसे ही हिंदी सिनेमा में एक गायक हुए जिन्होंने जब 'बरखा रानी जरा जम के बरसो...' गाना शुरू किया तो स्टूडियो में इस गाने की रिकॉर्डिंग के समय अंदर बैठे लोगों को पता भी नहीं चला की बाहर आसमान में बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं। फिर क्या था इधर गाना रिकॉर्ड होता रहा और उधर काले बादल आसमान में मंडराने लगे और फिर शुरू हुई झमाझम बारिश, जब सबने बाहर आकर देखा तो बादल बरस रहे थे, इससे सभी अचरज में थे। ऐसा लगा कि जिस तल्लीनता के संग यह गीत गाया जा रहा था, उसे बरखा रानी ने सुन लिया हो और वह बिन मौसम बरस पड़ी थी।
इस अद्भुत आवाज को आपने हमेशा दर्द और सोज़ के लिए ही याद किया होगा। लेकिन, उनके रोमांटिक आवाज को भी अगर आप सुन लें तो आप उनमें खो जाएंगे। जी हां, यह आवाज थी पार्श्वगायक मुकेश की। मुकेश साहब की आवाज ऐसी अनोखी थी कि एक बार उस जमाने के दिग्गज गायक केएल सहगल ने जब पहली बार 'दिल जलता है तो जलने दो' गाना सुना तो वह पूछ बैठे कि मुझे इस तरह फॉलो करने वाला कौन है? क्योंकि मैंने तो इस गाने को अब तक अपनी आवाज में रिकॉर्ड नहीं किया है। मतलब साफ था मुकेश ने भी अपनी गायकी की शुरुआत केएल सहगल की नकल के साथ ही की थी। लेकिन, मुकेश साहब की नेजल वॉइस और मेलोडियस आवाज ने लोगों को जल्द अपना दीवाना बना लिया।
मुकेश साहब तो इतना तक कहते थे कि 10 हल्के-फुल्के गाने और एक दुख भरा गीत मिले तो मैं दुख भरे एक गीत के लिए उन 10 गानों को ठुकरा दूंगा। यही वजह रही कि मुकेश को दर्द और सोज़ की आवाज कहा गया।
जिंदगी भी कैसे-कैसे इम्तिहान लेती है। मुकेश आए तो थे फिल्मी पर्दे पर अपना जलवा बिखेरने लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर थे। उनकी आवाज ने कई अभिनेता को प्रसिद्धि दिलाई लेकिन बतौर अभिनेता फिल्मी पर्दे पर वह सफलता का स्वाद नहीं चख पाए। 1941 में एक फिल्म आई निर्दोष जिसमें बतौर अभिनेता मुकेश ने काम किया लेकिन यह फिल्म असफल रही। अगर यह फिल्म तब बॉक्स ऑफिस पर सफल हो गई होती तो शायद यह आवाज हमसे पीछे छूट गई होती। फिल्म फ्लॉप होने के बाद मुकेश शेयर ब्रोकर बनने से लेकर ड्राई-फ़्रूट बेचने तक कई काम करते रहे क्योंकि तब तक प्लेबैक सिंगिंग प्रोफेशन नहीं था और ज्यादातर पर्दे पर अभिनेता ही अपने गाने गाते थे।
वह फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन का भी काम करने लगे और उसमें भी उन्हें असफलता हाथ लगी। लेकिन, 1942 में प्लेबैक सिंगिंग एक प्रोफेशन के तौर पर उभरकर सामने आई तो उसने मुकेश को एक बार फिर प्रेरित किया। मुकेश के साथ एक दिक्कत यह थी कि उनको अपनी आवाज पर भरोसा था लेकिन उन्होंने मोहम्मद रफी, तलत महमूद या मन्ना डे जैसे क्लासिकल ट्रेनिंग नहीं ली थी। फिर भी उनकी आवाज में वह दर्द था जिसे हर कोई महसूस कर सकता था। जब ‘दिल जलता है तो जलने दे’ मुकेश ने गाया तो इस गाने ने टूटे दिल वालों के लिए मरहम का काम किया।
दिलीप कुमार और मनोज कुमार के लिए मुकेश ने अनगिनत गाने गाए लेकिन राज कपूर तो उन्हें अपनी रूह, अपनी आत्मा मान बैठे थे। 1948 में आई फिल्म 'आग' में जब मुकेश ने राज कपूर के लिए 'ज़िंदा हूं इस तरह' गाना गाया तो इसके बाद राज कपूर ने साफ कह दिया कि 'मैं तो सिर्फ एक जिस्म हूं, हाड़-मांस का पुतला हूं, रूह अगर कोई है मुझमें तो वो मुकेश हैं।' राज कपूर ने मुकेश को यहां तक कह दिया था कि 'अब तुम सिर्फ मेरे लिए गाओगे।'
1300 से ज्यादा गानों में अपनी आवाज से जान फूंक देने वाले मुकेश इस बात को हमेशा फॉलो करते थे कि जिस दिन उनके गाने की रिकॉर्डिंग होती थी उस दिन वह उपवास रखते थे। जब तक गाने की रिकॉर्डिंग पूरी नहीं हो जाती वह केवल पानी और गर्म दूध ही पीते थे। संगीत के प्रति यह उनकी साधना थी।
उन्होंने 'क्या खूब लगती हो' और 'धीरे धीरे बोल कोई सुन न ले' जैसे शरारती गीतों को भी अपनी आवाज दी। 'सब कुछ सीखा हमने', 'आवारा हूं', 'दुनिया बनाने वाले', 'कभी-कभी मेरे दिल में', 'डम डम डिगा डिगा', 'किसी की मुस्कुराहटों पे', 'बोल राधा बोल संगम' जैसे सैकड़ों सुपरहिट गानों को अपनी आवाज से सजाने वाले मुकेश ने अपना आखिरी गाना फिल्म धरम करम के लिए गाया था जिसके बोल 'एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल' जो सुपरहिट हुआ था। मुकेश की आवाज़ गहरी और भावपूर्ण थी, वह दुख भरे और रोमांटिक दोनों तरह के गानों के लिए मशहूर थे। उनकी गायकी में एक सादगी और सच्चाई थी जो सीधे दिल में उतरती थी।
फिल्म ‘आवारा’ का गाना ‘आवारा हूं’ ने मुकेश को भारत का प्रथम वैश्विक गायक बना दिया था। इसके साथ ही जब हिंदी सिनेमा में स्टीरियोफोनिक साउंड आया तो इस पर पहला गीत मुकेश की आवाज में रिकॉर्ड किया गया। उन्होंने 'तारों में सजके अपने सूरज से, देखो धरती चली मिलने' गाने को इस साउंड में आवाज दी।
मुकेश साहब को लेकर एक दिलचस्प किस्सा यह भी है कि उन्हें उनके एक फीमेल फैन के बारे में एक बार पता चला कि वह अस्पताल में भर्ती है और वह चाहती है कि मुकेश वहां आकर उनके लिए एक गाना गाएं। डॉक्टर के जरिए जब यह बात मुकेश के कान तक पहुंची तो वह तुरंत अस्पताल पहुंचे और उसके लिए गाना गाया।
22 जुलाई 1923 को दिल्ली में जन्मे मुकेश चंद्र माथुर का 53 साल की उम्र में 27 अगस्त 1976 को निधन हो गया। वह उस समय अपनी सिंगिंग के पीक पर थे। मुकेश इस दौरान यूएस टूर पर गए थे। जहां हार्ट अटैक के कारण हमसे दर्द भरी यह आवाज हमेशा के लिए अलविदा हो गई।
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