आईएएनएस न्यूज प्वाइंट: झारखंड में 'फर्स्ट फेज' की वोटिंग का इशारा, नक्सलियों की मांद में लोकतंत्र का जश्न-ए-बहारा

झारखंड की चार लोकसभा सीटों पर जंगल-पहाड़ों से घिरे दुरूह इलाकों में 13 मई को हुई वोटिंग का एक इशारा बिल्कुल साफ है। वह यह कि जिन इलाकों की पहचान नक्सलियों की मांद के रूप में होती थी, अब वहां लोकतंत्र का जश्न-ए-बहारा है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-05-14 12:21 GMT

रांची, 14 मई (आईएएनएस)। झारखंड की चार लोकसभा सीटों पर जंगल-पहाड़ों से घिरे दुरूह इलाकों में 13 मई को हुई वोटिंग का एक इशारा बिल्कुल साफ है। वह यह कि जिन इलाकों की पहचान नक्सलियों की मांद के रूप में होती थी, अब वहां लोकतंत्र का जश्न-ए-बहारा है।

पलामू-गढ़वा के बूढ़ा पहाड़ से लेकर सिंहभूम के सारंडा तक जहां एक पत्ता भी माओवादियों की बंदूकों के इशारे के बगैर नहीं खड़कता था, वहां लोग इस बार उत्सवी माहौल में वोट डालने निकले। कई इलाके तो ऐसे रहे, जहां 20 से 35 साल के बाद पहली बार मतदान हुआ। पोस्टर-बैनर लगाकर चुनाव के बहिष्कार का ऐलान करने वाले माओवादी नकार दिए गए।

एशिया में साल पेड़ों के सबसे विशाल जंगल के रूप में प्रसिद्ध सारंडा में बचे-खुचे मुट्ठी भर नक्सलियों ने इक्का-दुक्का जगहों पर बूथों तक जाने वाली सड़कों पर बाधा खड़ी करने की कोशिश की, लेकिन इस बार वोटरों के हौसले के आगे तमाम बाधाएं ध्वस्त हो गईं।

सोमवार देर रात तक तमाम पोलिंग पार्टियां सुरक्षित तरीके से लौट आईं। इसके पहले पोलिंग पार्टियां इन इलाकों से खाली ईवीएम लेकर लौटती थीं, लेकिन इस बार स्ट्रांग रूम में जमा हुए तमाम सफेद बक्सों में लोकतंत्र की बेशकीमती सौगातें हैं।

झारखंड में इसके पहले जब 2019 में लोकसभा चुनाव हुए थे, तब राज्य के 24 में से 13 जिले नक्सल प्रभावित थे। 2024 में इनकी संख्या घटकर आठ हो गई। इन आठ में से पांच जिलों पश्चिम सिंहभूम, लोहरदगा, गुमला, खूंटी और सरायकेला-खरसावां में 13 मई को मतदान संपन्न हो गया। खूंटी और सिंहभूम में करीब 70 फीसदी तो गढ़वा में 64.6 और पलामू में 62.20 प्रतिशत वोट पड़े। सुकून की बात यह कि किसी भी जिले में एक भी नक्सली घटना नहीं हुई।

बेशक, यह पुलिस और सुरक्षाबलों के लगातार रणनीतिक अभियान की बदौलत मुमकिन हो पाया है। इसके पहले नक्सल प्रभावित जिलों में वोटिंग का टाइम दोपहर तीन बजे तक ही होता था, लेकिन इस बार चुनाव आयोग ने पूरे दिन यानी सुबह सात बजे से शाम पांच बजे तक वक्त मुकर्रर किया था।

सारंडा और बूढ़ा पहाड़ जैसे इलाकों में शाम पांच बजे भी सैकड़ों लोग वोटिंग की कतार में देखे गए। इन इलाकों में पोलिंग पार्टियों को हेलीकॉप्टर से क्लस्टरों तक पहुंचाया गया था। चुनाव संपन्न होने के बाद हेलीकॉप्टरों से इनकी सुरक्षित वापसी भी हो गई।

2019 तक इन इलाकों में हालात ऐसे थे कि नक्सलियों के फरमान के चलते लोग घरों से बाहर नहीं निकलते थे। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान कई नक्सली वारदातें हुई थीं। सरायकेला-खरसावां जिले के तिरुलडीह थाना क्षेत्र स्थित कुकड़ूहाट में नक्सलियों ने पुलिस गश्ती दल पर हमला कर पांच जवानों की हत्या कर उनके हथियार लूट लिए थे।

नवंबर महीने में नक्सलियों ने लातेहार के चंदवा थाना क्षेत्र के लुकैया मोड़ पर पुलिस गश्ती पार्टी पर अंधाधुंध फायरिंग की थी, जिसमें एक पदाधिकारी व गृह रक्षा वाहिनी के तीन जवान शहीद हो गए थे।

खूंटी के मारंगबुरु गांव से चुनाव संपन्न कर लौट रहे मतदान कर्मियों और पुलिस पार्टी पर माओवादियों ने हमला कर दिया था। इसी तरह गोइलकेरा में पोलिंग पार्टी पर कुला रघुनाथपुर गांव के पास फायरिंग हुई थी।

चाईबासा विधानसभा अंतर्गत जोजोहातु गांव के पास वोटरों को लाने जा रही एक स्कूल बस को नक्सलियों ने फूंक डाला था। जगन्नाथपुर विधानसभा क्षेत्र में नोवामुंडी के लतराकुंदीजोड़ स्थित बूथ पर नक्सलियों ने गोलीबारी की थी।

झारखंड में चुनाव के दौरान निर्वाचन आयोग के साथ नोडल पुलिस अफसर के रूप में कार्यरत आईजी अमोल वी. होमकर कहते हैं, “सुरक्षा बलों के व्यापक अभियान से लोगों का भरोसा लौटा है। बूढ़ा पहाड़ जैसे इलाके से नक्सली खदेड़ दिए गए। पिछले दो सालों में दर्जनों नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। कई नक्सली मुठभेड़ में मारे गए हैं। हम शांतिपूर्ण माहौल में चुनावी प्रक्रिया संपन्न कराने को कृतसंकल्प हैं।”

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