रक्षा: इजरायल-ईरान संघर्ष में खुल गई चीनी रक्षा तकनीक की पोल

13 अप्रैल को ईरान ने इजरायल पर बड़ा हमला किया। ईरान और इजरायल के बीच जारी हमले और तनातनी के बीच दशकों से अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की भार झेल रहे ईरान को सशक्त बनाने और क्षेत्र में संघर्ष भड़काने में चीन की भूमिका अब सवालों के घेरे में आ गई है। इसके साथ ही चीन की रक्षा तकनीक की भी पोल खुल गई है। दुनिया को पता चल गया है कि चीन की रक्षा तकनीक कितनी फिसड्डी है।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-04-22 13:13 GMT

नई दिल्ली, 22 अप्रैल (आईएएनएस)। 13 अप्रैल को ईरान ने इजरायल पर बड़ा हमला किया। ईरान और इजरायल के बीच जारी हमले और तनातनी के बीच दशकों से अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की भार झेल रहे ईरान को सशक्त बनाने और क्षेत्र में संघर्ष भड़काने में चीन की भूमिका अब सवालों के घेरे में आ गई है। इसके साथ ही चीन की रक्षा तकनीक की भी पोल खुल गई है। दुनिया को पता चल गया है कि चीन की रक्षा तकनीक कितनी फिसड्डी है।

दरअसल, ईरान पर लगे प्रतिबंध के बाद भी उसे मिसाइल तकनीक साझा कर चीन ने उसे सशक्त बनाने की कोशिश की। चीन ने 1994-95 में ईरान को मिसाइल तकनीक में बेहतर बनाने के लिए कई तरह की सुविधा मुहैया कराई, उसे तकनीक और साथ ही इससे जुड़े उपकरण भी मुहैया कराए।

मिसाइल को दिशा देने के लिए साथ ही इसके निर्माण और परीक्षण के लिए जिन चीजों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जैसे जाइरोस्कोप, एक्सेलेरोमीटर और परीक्षण उपकरण तक चीन ने ईरान के रक्षा उद्योग संगठन को बेचे। जिसके जरिए ईरान ने अपनी मिसाइल क्षमता को बढ़ाने के साथ ही स्वदेशी उत्पादन क्षमता को भी बढ़ाया।

एस्फहान के पास स्थित ईरान की सबसे बड़ी मिसाइल फैक्ट्री चीन की सहायता से बनाई गई थी। यही नहीं चीन ने तेहरान के पूर्व में एक बैलिस्टिक मिसाइल संयंत्र और परीक्षण रेंज बनाने में भी ईरान की मदद की। ऐसे में ईरानी मिसाइलों के नई रेंज में सीधे तौर पर चीनी तकनीक का प्रभाव नजर आने लगा है।

अब ईरान द्वारा इजरायल पर हमले के दौरान जो रिपोर्ट्स आई उसकी मानें तो लगभग 50 फीसदी ईरानी मिसाइल लॉन्च होने और अपने लक्ष्य तक पहुंचने में विफल रही। जिसने ईरान को दिए गए चीनी मिसाइल तकनीक की पोल खोल दी और चीन की रक्षा तकनीक भी सवालों के घेरे में आ गई है।

एक रिपोर्ट की मानें तो ईरान ने इजरायल के खिलाफ 170 ड्रोनों से 13 अप्रैल को हमला किया और इजरायल ने सभी को रोक दिया। इन 120 में से 108 बैलिस्टिक मिसाइल थे, जिनको प्रभावहीन कर दिया गया। इसके साथ ही 30 क्रूज मिसाइलों को भी इजरायल द्वारा रोक दिया गया। ऐसे में ईरान की यह विफलता उन देशों के लिए चेतावनी है जो चीनी रक्षा आयात पर भरोसा करते हैं।

द स्ट्रैटेजिक स्टडीज इंस्टीट्यूट के अध्ययन की मानें तो पिछले कुछ वर्षों में चीन से ईरान ने हथियारों का आयात कम कर दिया है और इसकी सबसे बड़ी वजह चीनी हथियारों की गुणवत्ता में कमी है। ईरान ही नहीं चीनी सैन्य उपकरणों की कमियों को पाकिस्तान, नाइजीरिया, म्यांमार और थाईलैंड जैसे कई और देशों ने भी अनुभव किया है। ऐसे में अब ये देश भी अपनी सैन्य जरूरतों के लिए चीन पर निर्भरता कम कर रहे हैं।

अब तक चीन जे-6 फाइटर्स, टी-5 टैंक, टी-59 टैंक, एफ-6 फाइटर्स, एंटी-टैंक गन, टी-69 टैंक, एचवाई-2 "रेशमकीट" एंटी-शिप मिसाइल, सी-801 एंटी-शिप मिसाइल, एम-7 कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल (300-500 किमी), एफ-7 फाइटर्स, हौडोंग मिसाइल बोट, सी-701 एंटी-शिप मिसाइल, नस्र-1 (सी- 704) और शहीद ड्रोन जैसे रक्षा उपकरण ईरान को सप्लाई करता रहा है।

चीन हमास जैसे आतंकी संगठनों को सहायता प्रदान करने के लिए जाना जाता है। हमास द्वारा इस्तेमाल किए गए एम-302 रॉकेट इसी चीन द्वारा डिजाइन किए गए थे और सीरिया में निर्मित किए गए थे। यहां तक कि हौथी विद्रोहियों द्वारा लाल सागर में इस्तेमाल की गई मिसाइलों का भी चीनी लिंक है। बता दें कि ये हौथी विद्रोही विदेशी जहाजों को निशाना बनाने में चयनात्मक रहे हैं। उनके द्वारा चीनी जहाजों को सुरक्षित छोड़ा गया है।

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