व्यापार: निर्यात बढ़ने के साथ भारतीय खिलौना उद्योग में दिखा जबरदस्त ग्रोथ
भारतीय खिलौना उद्योग ने पिछले एक दशक में जबरदस्त तरक्की की है। सरकार की कई सकारात्मक पहलों के चलते, भारत ने खिलौनों के निर्यात में उल्लेखनीय प्रगति की है। भारतीय खिलौना उद्योग ने लगभग 523.24 मिलियन डॉलर के निर्यात के साथ 517.71 मिलियन डॉलर के आयात को पीछे छोड़ दिया है।
नई दिल्ली, 18 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय खिलौना उद्योग ने पिछले एक दशक में जबरदस्त तरक्की की है। सरकार की कई सकारात्मक पहलों के चलते, भारत ने खिलौनों के निर्यात में उल्लेखनीय प्रगति की है। भारतीय खिलौना उद्योग ने लगभग 523.24 मिलियन डॉलर के निर्यात के साथ 517.71 मिलियन डॉलर के आयात को पीछे छोड़ दिया है।
कुछ साल पहले तक भारतीय बाजार में 'मेड इन चाइना' खिलौनों की भरमार थी, लेकिन अब स्थिति बदल गई है। वित्त वर्ष 2011-2012 में भारत ने 422.79 मिलियन डॉलर के खिलौने आयात किए थे, जबकि निर्यात उससे आधे से भी कम था।
आज भारतीय खिलौने 100 से ज्यादा देशों में पहुंच रहे हैं, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड्स, डेनमार्क और यहां तक कि चीन भी शामिल है। सरकार का मानना है कि अगला कदम ऑनलाइन माध्यमों का प्रभावी इस्तेमाल करके अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों तक पहुंच बढ़ाना है।
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि बढ़ते निर्यात, मजबूत उत्पादन इकोसिस्टम और आयात पर निर्भरता कम होने से भारतीय खिलौना उद्योग की सफलता साफ दिखती है।
खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने इसे प्रमुख क्षेत्रों में शामिल किया है। सरकार का लक्ष्य है, 'मेड इन इंडिया' खिलौनों के लिए वैश्विक बाजार बनाना। सरकार ने इसके लिए कई पहल की है, जैसे गुणवत्ता मानकों को अनिवार्य करना, सीमा शुल्क बढ़ाना और राष्ट्रीय खिलौना कार्य योजना (एनएपीटी)। इनसे उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद बनने में मदद मिली है, जिन्हें दुनिया भर में सराहना मिल रही है।
साल 2014-15 से 2022-23 के बीच भारतीय खिलौने, खेल सामग्री और खेल उपकरणों का निर्यात 239 प्रतिशत बढ़ा है, जबकि आयात 52 प्रतिशत घटा है।
वर्तमान में भारतीय खिलौना बाजार का आकार 1.7 बिलियन डॉलर है और साल 2032 तक इसके 4 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। जिसमें सालाना वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
देश के खिलौना निर्यातकों का कहना है कि अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका और जर्मनी जैसे देशों के खरीदारों ने उनके उत्पादों में दिलचस्पी दिखाई है।
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