राष्ट्रीय: मानवता की रखवाली या ईसाई धर्म का प्रचारक, आखिर क्यों मदर टेरेसा पर लगा था ये आरोप?

1910 में 26 अगस्त को अल्बेनिया के स्काप्जे में एक लड़की पैदा हुई। नाम रखा गया- गोंझा बोयाजिजू। दुनिया में उन्होंने ‘मदर टेरेसा’ और 'सिस्टर टेरेसा' के नाम से अपनी अलग पहचान बनाई।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-08-26 05:25 GMT

नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। 1910 में 26 अगस्त को अल्बेनिया के स्काप्जे में एक लड़की पैदा हुई। नाम रखा गया- गोंझा बोयाजिजू। दुनिया में उन्होंने ‘मदर टेरेसा’ और 'सिस्टर टेरेसा' के नाम से अपनी अलग पहचान बनाई।

ये नाम दुनिया भर में गरीब, अनाथ, बेसहारा और बीमार लोगों की मदद करने के लिए मशहूर था। मिशनरी ऑफ चैरिटी नाम की संस्था की शुरुआत, ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से किए गए। इस तरह वो भारत के लिए एक मसीहा बन चुकी थीं। खासतौर पर गरीब और पिछड़े वर्ग के लोग उन्हें अपना खुदा मानने लगे।

स्कूलों में बच्चों तक को उनके बारे में पढ़ाया जाता है। भारत रत्न और नोबेल पुरस्कार से सम्मानित टेरेसा को पोप और वेटिकन सिटी ने संत का दर्जा तक दिया हुआ है।

गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली टेरेसा काफी छोटी उम्र में समाज सेवा की ओर बढ़ गई थी। टेरेसा उस वक्त केवल 8 साल की थीं, जब उनके पिता का निधन हो गया। उन्होंने चर्च में शरण ली और 12 साल की उम्र में ही नन बनने का फैसला लिया।

फिर वह 18 साल की उम्र में कैथोलिक सिस्टर्स ऑफ लॉरेटो से जुड़ने के लिए डब्लिन आ गईं। इसके एक साल बाद वह कोलकाता आईं। टेरेसा बंगाल में 1943 में आए अकाल के कारण दर्द और मौत की गवाह बनीं। यही एक निर्णायक क्षण था, जब उन्होंने भारत में रहने का फैसला लिया। मगर, समाज सेवा की आड़ में उनका मुख्य उद्देश्य क्या था?

मदर टेरेसा पर आई एक डॉक्यूमेंट्री का नाम- मदर टेरेसा: फॉर द लव ऑफ गॉड है, जो 3 पार्ट की सीरीज है। इस सीरीज में इस तरह के कई बड़े खुलासे किए गए हैं।

मदर टेरेसा का दिल का दौरा पड़ने के कारण 5 सितंबर 1997 को निधन हो गया।

अपने जीवन के अंतिम समय में मदर टेरेसा पर कई तरह के आरोप भी लगे। उन पर गरीबों की सेवा करने के बदले उनका धर्म बदलकर ईसाई बनाने का आरोप लगा।

भारत में भी पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में उनकी निंदा हुई। मानवता की रखवाली की आड़ में उन्हें ईसाई धर्म का प्रचारक माना जाता था। लेकिन कहते हैं ना जहां सफलता होती है वहां आलोचना तो होती ही है, और आखिर उनसे जुड़े इन पहलुओं में कितनी सच्चाई है, इस बात पर आज भी सस्पेंस बना हुआ है।

मगर, भारत में कई ऐसे वर्ग और लोग भी हैं, जो मदर टेरेसा को आज भी गरीबों का मसीहा मानते हैं।

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