मानवीय रुचि: बर्थडे स्पेशल 120 घंटे की भूख ने नारायण मूर्ति की बदल डाली जिंदगी

वो 70 का दौर था। विदेश में नौकरी करते हुए नागवारा रामाराव नारायण मूर्ति ने यूरोप घूमने का फैसला किया, जानते थे कि फैसला अब न लिया तो घूम नहीं पाएंगे। दुनिया को समझ नहीं पाएंगे। निकल पड़े सैर पर, लेकिन हिचहाइकिंग के जरिए। यानि लिफ्ट लेकर मुफ्त में ट्रैवल करने के तरीके को अपना।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-08-20 07:15 GMT

नई दिल्ली, 20 अगस्त (आईएएनएस)। वो 70 का दौर था। विदेश में नौकरी करते हुए नागवारा रामाराव नारायण मूर्ति ने यूरोप घूमने का फैसला किया, जानते थे कि फैसला अब न लिया तो घूम नहीं पाएंगे। दुनिया को समझ नहीं पाएंगे। निकल पड़े सैर पर, लेकिन हिचहाइकिंग के जरिए। यानि लिफ्ट लेकर मुफ्त में ट्रैवल करने के तरीके को अपना।

नारायण मूर्ति ने इसी साल संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन द्वारा न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में 120 घंटे भूखे रहने वाला किस्सा सुनाया था। इस कार्यक्रम का थीम खाद्य सुरक्षा में उपलब्धियां: सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में भारत के कदम था। लेकिन आखिर हुआ क्या था, आइए आपको बताते हैं। बताते हैं कैसे उनकी भूख ने इंफोसिस के लिए उनकी भूख को बढ़ा दिया!

आईटी दिग्गज ने अपनी कहानी एक ट्रैवलर पत्रिका को बताई। उन्होंने बताया कि कैसे अपने वेतन से लगभग 5,000 अमेरिकी डॉलर बचाए थे, जिनमें से 450 अमेरिकी डॉलर अपने पास रखे और बाकी दान कर दिए। खैर 450 डॉलर में से कुछ बचाए तो कुछ से जरूरी सामान खरीदा और निकल पड़े लिफ्ट ले सैर सपाटा करने।

यूरोप के कई शहर घूमते हुए मूर्ति निश पहुंचे जो अब सर्बिया में है। यूगोस्लाविया था तब। वहां खाने के लिए रेस्तरां गए तो खाना नहीं मिला। वह शनिवार की रात थी। अगले दिन संडे था। मूर्ति बताते हैं कि फिर वह सोफिया एक्सप्रेस में सवार हुए। उनकी सीट के ठीक सामने युवा जोड़ा बैठा था। युवा मूर्ति को अंग्रेजी, फ्रेंच और रूसी भाषा अच्छे से बोलनी आती थी सो लड़की से बात करने लगे।

अगले ही पल देखा कि लड़का कुछ पुलिस वालों के पास पहुंचा कुछ बातचीत करने लगा। अगले ही पल मैंने खुद को धक्का खाते, ट्रेन से धकेल के ले जाते पाया। कुछ ही देर में 8 बाई 8 के कमरे में खुद को बंद पाया। सुबह से शाम हो गई। खाने को कुछ नहीं मिला। मुझे लगा अब मैं नहीं जीऊंगा... मुझे गुरुवार को बाहर निकाला गया।

मूर्ति के मुताबिक तब मुझे ईस्ट और वेस्ट यूरोप के बीच का अंतर समझ में आया। वेस्ट में तरक्की थी खुले विचारों के थे जबकि ईस्ट में वामपंथ का दबदबा था।

मैं पूरे 120 घंटे भूखा रहा। उस भूख ने मुझे कन्फ्यूज लेफ्टिस्ट से धुर कैप्टलिस्ट बना दिया। मेरी सोच बदल गई। मुझे पूंजीवाद की अहमियत समझ आई, मैने समझा कि देश के लिए पूंजीवादी जरूरी है, ऐसे व्यवसायी जरूरी हैं जो जॉब्स का सृजन करें और यह देश की तरक्की के लिए आवश्यक है।

नारायण मूर्ति ने अपने इसी टेलीफोनिक इंटरव्यू के अंत में कहा और शायद इसी घटना ने मुझे इंफोसिस का आईडिया भी दिया।

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