राजनीति: अजमेर दरगाह विवाद याचिकाकर्ता ने इतिहासकार की पुस्तक के हवाले से किए कई खुलासे

अजमेर दरगाह और उससे जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों पर एक याचिका दाखिल की गई है, जिसमें कई अहम बिंदुओं को लेकर सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ता ने अजमेर के प्रसिद्ध इतिहासकार हरविलास शारदा की पुस्तक का हवाला देते हुए कहा कि अजमेर दरगाह के लिए किसी प्रकार की खाली जमीन का अधिग्रहण या कब्जा करने का इतिहास में कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि दरगाह परिसर में मौजूद तीन छतरियां, जो वर्तमान में एक गेट के पास स्थित हैं, संभवतः हिंदू धर्म से संबंधित भवनों के अवशेष हैं।

Bhaskar Hindi
Update: 2024-11-28 11:20 GMT

अजमेर, 28 नवंबर (आईएएनएस)। अजमेर दरगाह और उससे जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों पर एक याचिका दाखिल की गई है, जिसमें कई अहम बिंदुओं को लेकर सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ता ने अजमेर के प्रसिद्ध इतिहासकार हरविलास शारदा की पुस्तक का हवाला देते हुए कहा कि अजमेर दरगाह के लिए किसी प्रकार की खाली जमीन का अधिग्रहण या कब्जा करने का इतिहास में कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि दरगाह परिसर में मौजूद तीन छतरियां, जो वर्तमान में एक गेट के पास स्थित हैं, संभवतः हिंदू धर्म से संबंधित भवनों के अवशेष हैं।

याचिकाकर्ता ने अजमेर दरगाह के ऐतिहासिक पहलुओं को उजागर करते हुए बताया कि हर विलास शारदा की पुस्तक में इन तीन छतरियों का विवरण दिया गया है। पुस्तक के अनुसार, ये छतरियां किसी हिंदू भवन के टूटे हुए टुकड़े प्रतीत होती हैं और उनके डिजाइन और संरचना से यह संकेत मिलता है कि ये हिंदू मंदिरों या अन्य धार्मिक संरचनाओं के अवशेष हो सकते हैं। याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि इन छतरियों में जो सामग्री और वास्तुकला दिखाई देती है, वह हिंदू धर्म के प्रतीकों से मेल खाती है।

उन्होंने कहा कि इन छतरियों की नक्काशी को रंगों के कई कोटों से छिपा दिया गया है और पुताई करने के बाद असली पहचान को छुपा लिया गया है। याचिका में यह भी कहा गया है कि इन छतरियों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया है, जो पुराने जैन मंदिर के अवशेष हो सकते हैं, जिसे बाद में ध्वस्त कर दिया गया था।

इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने लेखक अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा शाहजहां के समय लिखी गई पुस्तक 'पद शाह नामा' का भी हवाला दिया, जिसमें अजमेर दरगाह का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इस पुस्तक में शहंशाह शाहजहां के शासनकाल के दौरान हुई घटनाओं और उनके द्वारा किए गए कार्यों का वर्णन है। लेकिन, इसमें अजमेर दरगाह के निर्माण का कोई जिक्र नहीं है।

याचिका में एक और गंभीर सवाल उठाया गया है, जिसमें अजमेर दरगाह के चंदन खाना के तहखाने में रखे गए अवशेषों का संदर्भ दिया गया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि यह तहखाना जहां ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के अवशेष रखे जाने की बात कही जाती है, दरअसल, ऐतिहासिक परंपराओं के अनुसार वहां महादेव की छवि भी मौजूद थी। इस छवि पर चंदन अभिषेक करने की परंपरा एक ब्राह्मण परिवार द्वारा निभाई जाती थी, जो आज भी जारी है, लेकिन अब इसे दरगाह के धार्मिक रीति-रिवाजों के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

बता दें कि अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को हिंदू मंदिर बताने वाली याचिका को निचली अदालत ने बुधवार को मंजूर कर लिया। दिल्ली निवासी हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मामले में वादी विष्णु गुप्ता ने विभिन्न साक्ष्यों के आधार पर अजमेर दरगाह में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा पेश किया था। याचिका की योग्यता पर मंगलवार को भी सुनवाई हुई थी। बुधवार को भी न्यायालय में सुनवाई हुई और फिर अदालत ने वाद को स्वीकार कर लिया।

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