सिंधिया के आलीशान जयविलास पैलेस ने एक साथ देखीं दो दलों की राजनीति, मां-बेटे को बंटते देखा,दशकों बाद शाही परिवार पर चढ़ा एक ही पार्टी का रंग

जयविलास पैलेस सिंधिया के आलीशान जयविलास पैलेस ने एक साथ देखीं दो दलों की राजनीति, मां-बेटे को बंटते देखा,दशकों बाद शाही परिवार पर चढ़ा एक ही पार्टी का रंग

Bhaskar Hindi
Update: 2022-10-15 14:49 GMT
सिंधिया के आलीशान जयविलास पैलेस ने एक साथ देखीं दो दलों की राजनीति, मां-बेटे को बंटते देखा,दशकों बाद शाही परिवार पर चढ़ा एक ही पार्टी का रंग
हाईलाइट
  • साल 1956 में महारानी विजयाराजे सिंधिया से शुरु हुआ सिंधिया परिवार की राजनीतिक सफर

डिजिटल डेस्क, ग्वालियर। मध्यप्रदेश के ग्वालियर में स्थित जयविलास पैलेस एक ऐसा महल रहा है, जिसने बीते चार दशकों में कई केन्द्र सरकारों की राजनीति देखी है। जयविलास पैलेस की महारानी विजयाराजे सिंधिया से शुरु हुई सिंधिया परिवार की राजनीति उनके एकलौते बेटे माधवराव सिंधिया और फिर माधवराव के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आज तक बनी हुई है। इन चार दशको में पैलेस ने कई सरकारों की राजनीति और राजनीति की वजह से परिवार में हुए विवादों को देखा। आइए जानते हैं जयविलास पैलेस द्वारा देखीं गई विभिन्न पार्टीओं की राजनीति के बारे में 

कांग्रेस पार्टी से शुरु हुई सिंधिया परिवार की राजनीति

राजाओं-महाराजाओं के घराने से आने वाले सिंधिया परिवार का राजनीति से कोई ताल्लुक नहीं था। लेकिन साल 1956 में महारानी विजयाराजे सिंधिया ने देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस की ओर से गुना से संसदीय चुनाव लड़ा। राजमाता विजयाराजे  लगातार दो बार इस सीट से संसदीय चुनाव जीतीं। लेकिन साल 1967 में सिंधिया परिवार और कांग्रेस पार्टी के बीच राजनीतिक मतभेद हुए। इन मतभेदों की वजह से विजयाराजे ने पहले जनसंघ पार्टी की ओर से करैरा सीट से विधानसभा और उसके बाद स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के रुप में गुना से लोकसभा चुनाव में खड़े होकर जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने संसदीय चुनाव छोड़ विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला लिया और गोविंद नारायण सिंह की सहायता से प्रतिपक्ष की नेता बनकर कांग्रेस की सरकार गिरा दी। 

इस वजह से बंटा दो भागों में पैलेस 

साल 1975 में देश में आपातकाल लगा और जयविलास पैलेस का दो भागों में बंटने की कहानी शुरु हो गई। आपातकाल के दौरान पहले जनसंघ और बाद में भाजपा की राजनेता विजयाराजे सिंधिया गैर कांग्रेसी नेताओं के साथ जेल चली गई। माता विजयाराजे के जेल में जाने की वजह से साल 1971 में जनसंघ की ओर से बेटे माधवराव सिंधिया ने चुनाव लड़ा। गुना में चुनाव लड़ने वाले माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस प्रत्याशी को डेढ़ लाख वोटों से मात दी। इसके बाद साल 1977 में माधवराव ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीत दर्ज की। लेकिन साल 1980 में देश में आम चुनाव का ऐलान हुआ और जनता पार्टी ने विजयाराजे को रायबरेली से इंदिरा गांधी के विरुद्ध चुनाव लड़वाने की घोषणा की। इन दिनों माधवराव और संजय गांधी के बीच दोस्ती बढ़ रही थी। इस वजह से माधवराव ने माता से फैसला बदलने को कहा लेकिन विजयाराजे अपने फैसले पर बनी रही। यही मौका था जब विजयाराजे और माधवराव के रिश्ते में दरार पड़ने लगी और माधवराव ने कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया। इस चुनान में विजयाराजे इंदिरा गांधी से चुनाव हार गईं लेकिन माधवराव ने कांग्रेस पार्टी की टिकिट पर चुनाव में जीत हासिल की। इसी साल देश की राजनीति में नई पार्टी का जन्म हुआ जनसंघ की खंडहर पर नई पार्टी भारतीय जनता पार्टी का निर्माण हुआ और विजयाराजे को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाया गया। 

विजयाराजे के बाद बेटी यशोधरा ने भी थामा भाजपा का दामन 

विजयाराजे के इकलौते बेटे माधवराव ने उन्हें जरूर निराश किया। लेकिन उनकी बेटियों ने अपनी मां के साथ भाजपा का दामन थामें रखा। मां विजयाराजे के देहांत के बाद उनकी बड़ी बेटी वसुंधरा राजे ने साल 2003 में बीजेपी की ओर से चुनाव लड़कर राजस्थान की मुख्यमंत्री बनी। वहीं उनकी छोटी बेटी यशोधरा राजे भी साल 1998 और 2003 में शिवपुरी से दो बार विधायक चुनी गई। दोनों ही बहने फिलहाल राजनीति में सक्रिय हैं। 

माधवराव की तरह बेटे ने भी छोड़ा अपनी पार्टी का साथ 

वहीं अपने पिता माधवराव सिंधिया की तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया भी सालों तक कांग्रेस के साथ बने रहे और साल 2002 से लगातार लोकसभा चुनाव में विजयी बने। लेकिन साल 2018 मध्यप्रदेश में काग्रेस की सरकार बनी तो पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह कमलनाथ को मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्त किया। जिसके बाद 18 साल कांग्रेस में रहने के बाद ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस पार्टी से नाराजगी की वजह से पार्टी का साथ छोड़ दिया और भाजपा में शामिल हो गए।   

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