क्या आप जानते हैं 15 अगस्त 1947 से जुड़ी कुछ रोचक और अनसुनी बातें, यहां देखें पूरा वीडियो

Independence day special क्या आप जानते हैं 15 अगस्त 1947 से जुड़ी कुछ रोचक और अनसुनी बातें, यहां देखें पूरा वीडियो

Bhaskar Hindi
Update: 2021-08-13 06:35 GMT
हाईलाइट
  • 15 अगस्त 1947 को नहीं गाया गया था राष्ट्रगान
  • 16 अगस्त को फहराया गया था तिरंगा
  • जब गांधी जी ने नहीं सुना नेहरू का भाषण

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत को आजाद हुए पूरे 75 साल हो चुके हैं। इस देश को आजाद कराने में कितने ही वीरों ने अपने खून बहाया है। ये दिन आजाद होकर खुशी मनाने का तो दिन है ही साथ ही उन वीर सपूतों के बलिदान को भी याद करने का दिन है। अंग्रेजों में 200 सालों तक हमारे देश पर राज किया था। 15 अगस्त सन् 1947 की रात हमें उनकी गुलामी से आजादी मिली। ये दिन देश के इतिहास का सबसे अहम दिन है। हम आपको बताने जा रहे हैं 15 अगस्त से जुड़ी कुछ रोचक बातें...

16 अगस्त का फहराया गया था तिरंगा
15 अगस्त को आजादी की तारीख मानकर भारत के प्रधानमंत्री हर साल सुबह लाल किले से झंडा फहराते हैं। इसके साथ ही राष्ट्र को संबोधित करते हैं, लेकिन 15 अगस्त 1947 को ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। लोकसभा सचिवालय के एक शोध पत्र के मुताबिक देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आजादी के अगले दिन यानी 16 अगस्त, 1947 को लाल किले से झंडा फहराया था।

15 अगस्त 1947 को नहीं गाया गया था राष्ट्रगान
आपको जानकर हैरानी होगी। लेकिन, जब पहली बार प्रधानमंत्री पंडित जावहर लाल नेहरू ने लाल किले पर तिरंगा फहराया था। तब राष्ट्र गान नहीं गाया गया था। वर्तमान राष्ट्रगान "जन गण मन" रवींद्रनाथ टैगोर ने साल 1911 में ही लिख दिया था। लेकिन तब तक इसे राष्ट्रगान का दर्जा नहीं मिला था। 1950 में जाकर ये राष्ट्रगान बना और इसे तिरंगा फहराने के बाद सम्मान में गाया जाने लगा।

जब गांधी जी ने नहीं सुना नेहरू का भाषण
आजादी के महानायक महात्मा गांधी जी ने पंडित नेहरु का ऐतिहासिक भाषण "ट्रिस्ट विद डेस्टनी" नहीं सुना था। 14 अगस्त की रात को वायसराय लॉज से नेहरु ने ये अहम भाषण देना शुरू किया था। इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना। लेकिन, महात्मा गांधी जी उस दिन 9 बजे सोने चले गए थे और उन्होंने भाषण सुना ही नहीं था।

जब एक रूपया एक डॉलर कर दिया गया
हमारे भारत में करंसी का इतिहास करीब "2500" साल पुराना हैं। साल 1917 में एक रुपया 13 डॉलर के बराबर हुआ करता था। लेकिन, 1947 में जब भारत आजाद हुआ। तब एक रूपया एक डॉलर कर दिया गया। हालांकि आजादी के वक्‍त देश पर कोई कर्ज नहीं था।

भारत के साथ ये देश भी मनाते हैं 15 अगस्त को आजादी दिवस
रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, बहरीन और लिकटेंस्टीन ये वो पांच देश हैं। जो भारत के साथ 15 अगस्त को अपनी आजादी का दिवस मनाते हैं। 

जब देश आजाद हुआ, तब पुर्तगाल के कब्जे में था गोवा, दमन दीव और दादर नागर हवेली
समुद्र तट की "खूबसूरती का" एहसास कराने वाला गोवा भी 15 अगस्त 1947 को आजाद नहीं हुआ था। इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 के जरिए अंग्रेजों ने अपने कब्जे की जमीन भारत को सौंपने की घोषणा की। लेकिन, तब भारत के कुछ हिस्से पुर्तगाल के कब्जे में थे। ये क्षेत्र गोवा दमन दीव, दादर और नागर हवेली थे। भारतीय सेना ने 2 दिसंबर 1961 को पुर्तगाल पर हवाई हमले किए और गोवा, दमन दीव, दादर और नागर हवेली को आजाद कराया। 

भारत-पाक दोनों के आजादी समारोह में शामिल होना चाहते थे माउंटबेटन
पाकिस्तान को 14 अगस्त औऱ भारत को 15 अगस्त को स्वतंत्रता मिली। अक्सर ये सवाल कई लोगों के जहन में उठता है। अगर आपके पास इसका जवाब नहीं है, तो हम बताते हैं। दरअसल उस समय माउंटबेटन व्यक्तिगत रुप में भारत और पाकिस्तान स्वतंत्रता समारोह में भाग लेना चाहते थे। लेकिन, एक ही दिन स्वतंत्रता प्राप्ती होने पर यह संभव "नहीं" हो पा रहा था। इसलिए 14 अगस्त को पाकिस्तान की स्वतंत्रता के लिए 15 अगस्त को भारतीय स्वतंत्रता के लिए चुना गया।

जब आजाद भारत में शामिल नहीं हुआ था भोपाल
आज देश में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जो 15 अगस्त 1947 को भारत का हिस्सा नहीं बने थे। उन्हीं में एक था भोपाल। इस रियासत के नवाब इसे पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहते थे। 1 जून 1949 को भोपाल भारत का हिस्सा बना और यहां पहली बार तिरंगा लहराया गया।

26 अक्टूबर, 1947 को भारत का हिस्सा बना कश्मीर
धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर 26 अक्टूबर 1947 को भारत का हिस्सा बना था। 15 अगस्त, 1947 को भारत की आजादी के बाद ज्यादातर देशी रियासतों या रजवाड़ों ने अपना विलय भारत में कर लिया। लेकिन, तीन रियासतों के शासकों ने भारत के साथ विलय से इनकार किया। ये तीन शासक जूनागढ़ के नवाब हैदराबाद के निजाम और कश्मीर के महाराजा हरि सिंह थे। आजादी के पहले से ही पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना की कश्मीर पर नजर थी।

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