द केरला स्टोरी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका, पूरे मुस्लिम समुदाय को बदनाम करती है

बॉलीवुड द केरला स्टोरी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका, पूरे मुस्लिम समुदाय को बदनाम करती है

Bhaskar Hindi
Update: 2023-05-02 17:30 GMT
द केरला स्टोरी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका, पूरे मुस्लिम समुदाय को बदनाम करती है

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्र को यह निर्देश देने की मांग की है कि वह फिल्म द केरला स्टोरी की सिनेमाघरों, ओटीटी प्लेटफॉर्मो और अन्य अन्य प्लेटफॉर्म पर स्क्रीनिंग या रिलीज की अनुमति नहीं दे। साथ ही, इस फिल्म के ट्रेलर को इंटरनेट से हटाने की मांग की है।

इससे पहले मंगलवार को शीर्ष अदालत ने सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित और सनशाइन पिक्चर्स द्वारा निर्मित विवादास्पद फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया था।

न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ और बी.वी. नागरत्ना ने कहा कि सेंसर बोर्ड ने पहले ही फिल्म को मंजूरी दे दी है और याचिकाकर्ताओं को फिल्म के प्रमाणीकरण को एक उपयुक्त प्राधिकरण के समक्ष चुनौती देनी चाहिए। पीठ ने कहा कि फिल्मों के प्रदर्शन के लिए एक अलग प्रक्रिया होती है, इसलिए फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की याचिका को अभद्र भाषा के मामलों के साथ नहीं जोड़ा जा सकता।

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अधिवक्ता निजाम पाशा ने पीठ से उनकी याचिका पर सुनवाई करने का अनुरोध करते हुए कहा कि फिल्म शुक्रवार को रिलीज हो जाएगी।

जमीयत द्वारा दायर याचिका में कहा गया है : यह फिल्म स्पष्ट रूप से भारत में समाज के विभिन्न वर्गो के बीच नफरत और दुश्मनी फैलाने के उद्देश्य से बनाई गई है। फिल्म यह संदेश देती है कि गैर-मुस्लिम युवतियों को उनके सहपाठियों द्वारा इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए लालच दिया जा रहा है और बाद में उनकी तस्करी पश्चिम एशिया में की जाती है, जहां उन्हें आतंकवादी संगठनों में शामिल होने के लिए मजबूर किया जाता है।

याचिका में कहा गया है, यह फिल्म पूरे मुस्लिम समुदाय को बदनाम करती है और इसका परिणाम याचिकाकर्ताओं और पूरे मुस्लिम समुदाय के जीवन और आजीविका को खतरे में डालेगा, और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का सीधा उल्लंघन है।

फिल्म यह आभास देती है कि चरमपंथी मौलवियों के अलावा, जो लोगों को कट्टरपंथी बनाते हैं, सामान्य मुस्लिम युवा, उनके सहपाठी भी गैर-मुस्लिमों को लुभाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उन्हें दिए गए निर्देशों के अनुसार मित्रवत और अच्छे स्वभाव वाले लोगों के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

अधिवक्ता एजाज मकबूल के माध्यम से दायर याचिका में वैकल्पिक रूप से केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह आग लगाने वाले दृश्यों और संवादों को हटाने की पहल करे या यह कहते हुए एक डिस्क्लेमर दिखाए कि यह काल्पनिक कहानी पर आधारित है और फिल्म के पात्रों और वास्तविक जीवन के लोगों में कोई समानता नहीं है।

याचिका में कहा गया है, फिल्म इस विचार को बढ़ावा देती है कि लव-जिहाद का इस्तेमाल गैर-मुस्लिम महिलाओं को इस्लाम धर्म अपनाने और आईएसआईएस में शामिल होने के लिए लुभाने के लिए किया जा रहा है। हालांकि, 2009 में राज्य पुलिस द्वारा की गई एक जांच से पता चला कि ऐसा कुछ भी नहीं था।

जैसे ही फिल्म का टीजर जारी किया गया, सत्तारूढ़ सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम और केरल में विपक्ष यूडीएफ ने मांग की थी कि फिल्म की स्क्रीनिंग नहीं की जानी चाहिए।

मुस्लिम यूथ लीग की राज्य समिति ने फिल्म में लगाए गए आरोपों को साबित करने वाले व्यक्ति को 1 करोड़ रुपये का इनाम देने की भी घोषणा की है।

एक दक्षिणपंथी कार्यकर्ता और हिंदू सेवा केंद्र के संस्थापक प्रतीश विश्वनाथ ने भी इसके विपरीत यह साबित करने के लिए 10 करोड़ रुपये की पेशकश की है कि केरल से कोई भी आईएस में शामिल होने के लिए सीरिया नहीं गया है।

अदा शर्मा, योगिता बिहानी, सोनिया बलानी और सिद्धि इडनानी की मुख्य भूमिकाओं वाली यह फिल्म केरल में कॉलेज की चार महिला छात्राओं की यात्रा का पता लगाती है, जो इस्लामिक स्टेट (आईएस) का हिस्सा बन जाती हैं।

 

 (आईएएनएस)

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