कुल खपत के आधे विद्युत व्यय का नुकसान उठा रहा विभाग - जिले में हर महीने 45 से 50 फीसदी तक विद्युत लाइन लॉस

कुल खपत के आधे विद्युत व्यय का नुकसान उठा रहा विभाग - जिले में हर महीने 45 से 50 फीसदी तक विद्युत लाइन लॉस

Bhaskar Hindi
Update: 2020-09-23 10:22 GMT
कुल खपत के आधे विद्युत व्यय का नुकसान उठा रहा विभाग - जिले में हर महीने 45 से 50 फीसदी तक विद्युत लाइन लॉस

डिजिटल डेस्क सीधी। जिले में कुल खपत के आधे विद्युत व्यय का बिजली विभाग को हर माह नुकसान उठाना पड़ रहा है। लाइन लॉस की किसी दूसरे तरह से भरपाई न हो पाने के कारण बाद में विद्युत उपभोक्ताओं को ही भरपाई करनी पड़ रही है। विद्युत चोरी के साथ अनाधिकृत बिजली व्यय लाइन लॉस की वजह बनी हुई है।
उल्लेखनीय है कि जिले में कुल 2 लाख 40 हजार विद्युत उपभोक्ता हैं। विद्युत उपभोक्ताओं को बिजली प्रदाय के लिए विभाग जितनी यूनिट हर महीने व्यय कर रहा उसका आधा पैसा ही वापस आ रहा है। करीब हर महीने 45 से 50 फीसदी तक होने वाले विद्युत लाइन लॉस की भरपाई बाद में उपभोक्ताओं को ही भरनी पड़ रही है किन्तु शुरूआती दौर में जो चोरी छिपे उपभोग कर रहे वो तो फायदे में ही हैं किन्तु दूसरे लोगों को अनायाश चपत लग रही है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक बारिश के महीने को विभाग आफ सीजन मानकर चलता रहा है किन्तु अवर्षा के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई पम्पो द्वारा उपयोग की जा रही बिजली लाइन लॉस को बढ़ावा दे रही है। कायदे से अगर उपभोक्ता 8 घण्टे बिजली का उपयोग करें तो लाइन लॉस घट सकता है लेकिन बिजली रहने पर 24 घण्टे तक मोटर पम्पों से सिंचाई होती रहती है। सिंचाई के लिए अस्थाई कनेक्शन लेने पर विभाग यह मानकर चलता है कि 100 यूनिट तक ही बिजली महीने भर में खर्च होगी किन्तु एक हार्स पावर वाले मोटर पम्प भी माह भर में करीब 12 सौ यूनिट बिजली खपा डालते हैं। सिंचाई की बढ़ती मांग के कारण ही अक्सर विद्युत सप्लाई पर भी असर पड़ते देखा जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बीच-बीच में गुल होने वाली बिजली के पीछे लोड बढऩे का कारण माना जाता है। लाइन लॉस के मामले में घरेलू और व्यावसाइक कनेक्शन सबसे ज्यादा नुकसानदायक सावित हो रहे हैं। उद्योगों के लिए दी जाने वाली बिजली में लाइन लॉस की संभावना कम आंकी जाती है। कटिया फंसाकर ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाली बिजली चोरी तो सबसे बड़े घाटे की वजह बनी हुई है। दरअसल में ग्रामीण क्षेत्रों में तैनात बिजली कर्मचारी ऊपरी कमाई के चक्कर में बिजली चोरी को नजर अंदाज करते रहते हैं। कार्यवाही के लिए केवल उन्ही को निशाना बनाया जाता है जो चढ़ोत्तरी नहीं कर पाते हैं। घाघ, रसूखदार उपभोक्ता चाहे बिजली चोरी कर रहे हों या लम्बे समय से भुगतान न कर रहे हो उन्हे देखने वाला न तो मैदानी अमला रहता है और न ही बड़े अधिकारी कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाते हैं। कुल मिलाकर जिले भर में जितनी विद्युत की खपत होती है उसका आधा पैसा ही विभाग के खाते में जा पाता है। इसीलिए लगातार होने वाले बिजली व्यय के घाटे की भरपाई बाद में दर बढ़ाकर आम उपभोक्ताओं से की जाती है।
केवलीकरण के बाद भी जारी है विद्युत चोरी
राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना के तहत जिले की अधिकांश विद्युत लाइन को बदल दिया गया है। पहले जहां खंभो में नंगे तार लगे हुए थे वहीं अब केविल बिछा दी गई है। केविलीकरण के बाद माना जा रहा था कि विद्युत लाइन लॉस कुछ कम हो जाएगा किन्तु चोरी करने वालों ने यहां भी दिमांग लगा लिया है। बताया जाता है कि केविल को गर्म लोहे से छीलकर कटिया फंसाने का स्थान बना लेते हैं और फिर मौका तलाशकर बिजली की चोरी शुरू कर देते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाली बिजली चोरी किसी से छिपी नहीं है। व्यापक स्तर पर कार्यवाही न होने के पीछे एक तो विभागीय उदासीनता कारण बनी हुई है दूसरे कर्मचारियों की मिलीभगत विभाग को चपत लगा रही है। लाइन लॉस के संबंध में प्रत्येक कारणों की जानकारी होने के बाद भी विभागीय अमला हाथ पर हाथ धरे बैठा हुआ है।
बड़े बकायादार दबा रखे हैं विद्युत की बड़ी राशि
बिजली विभाग की सम्पूर्ण कार्यवाही केवल कमजोर उपभोक्ताओं तक ही सीमित देखी जा रही है। रसूखदार, राजनैतिक पहुंच रखने वाले उपभोक्ता लम्बे समय से घरेलू और व्यावसाइक उपयोग के बिजली बिलों का भुगतान नहीं कर रहे हैं। बड़े बकायादारों द्वारा दबाकर रखी गई राशि की वसूली करने में विभागीय अधिकारियों को भी पसीने छूटते हैं। इसीलिए लम्बे समय से न तो बड़े बकायादार चिन्हित हुए और न ही उनसे वसूली के लिए कोई अभियान चलाया गया। ग्रामीण क्षेत्रों की बात छोड़ दें तो अकेले शहर में ही ऐसे दर्जनो घाघ उपभोक्ता हैं जिन पर लाख रूपये से ज्यादा की देनदारी हो गई है। इस तरह के उपभोक्ताओं की न तो कभी बिजली काटी गई और न ही वसूली के लिए दूसरे तरह की कार्यवाही की गई है। नवागत अधीक्षण अभियंता जीडी त्रिपाठी कहते हैं किज्

 

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