सिंगरौली देश का पहला सल्फर डाई ऑक्साइड उत्सर्जक शहर बना

सिंगरौली देश का पहला सल्फर डाई ऑक्साइड उत्सर्जक शहर बना

Bhaskar Hindi
Update: 2020-10-09 08:40 GMT
सिंगरौली देश का पहला सल्फर डाई ऑक्साइड उत्सर्जक शहर बना

डिजिटल डेस्क सिंगरौली वैढऩ। ग्रीन पीस की लेटेस्ट रिपोर्ट में सल्फर डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में सिंगरौली को देश का पहला और विश्व का छटवां शहर बताया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो सालों से सिंगरौली में इसकी लगातार ग्रोथ हो रही है। रिपोर्ट के सामने आते ही देश की ऊर्जाधानी कहे जाने वाले सिंगरौली में प्रदूषण की रोकथाम के लिए चल रहे प्रयासों पर सवालिया निशान लग गए हैं। ग्रीन पीस इंडिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर की सालाना रिपोर्ट के अनुसार देश में एसओटू की उत्सर्जन साल 2018 की तुलना में 2019 में रिकॉर्ड छह प्रतिशत कम हुआ है। यह पिछले चार साल में सबसे बड़ी गिरावट है। हालांकि इसके बावजूद भारत लगातार पांचवें साल दुनिया के सबसे बड़े एसओटू उत्सर्जक देशों की सूची में शीर्ष पर है। 2019 में यहां दुनिया के कुल मानव निर्मित एसओटू का सर्वाधिक 21 प्रतिशत उत्सर्जन हुआ, जो इसी सूची में भारत के बाद दूसरे स्थान पर मौजूद रूस से लगभग दोगुना है। चीन तीसरे नंबर पर है। वार्षिक रिपोर्ट में सल्फर डाइऑक्साइड को सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक बताया गया है। एसओटू एक जहरीली हवा प्रदूषक है जो स्ट्रोक, हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर और अकाल मौत के जोखिम को बढ़ाती है।
 रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में इसके बड़े उत्सर्जन केंद्र सिंगरौली, नेवेली, सिपथ, मुंद्रा, कोरबा, बोंडा, तमनार, तालचेर, झारसुगुड़ा, कच्छ, चेन्नई, रामागुंडम, चंद्रपुर, विशाखापत्तनम और कोराडी के थर्मल पावर स्टेशन हैं।
कोयला बढ़ा रहा चिंता
अक्षय ऊर्जा के विस्तार में देश ने अच्छी प्रगति की है। इसके विपरीत कोयला आधारित ऊर्जा उत्पादन को लगातार दिया जा रहा समर्थन चिंता पैदा करने वाला है। भारत ने खुद को अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य हासिल करने वाले देशों की सूची में स्थापित किया है। देश के बिजली क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ रही है। वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान नई क्षमताओं में दो तिहाई से अधिक की वृद्धि हुई है। हालांकि इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि भारत के अधिकांश बिजली संयंत्रों में फ्यूल गैस डिसल्फराइजेशन यानी एफजीडी की इकाइयों की भारी कमी है।
एफजीडी से होगा नियंत्रण
ग्रीन पीस इंडिया के क्लाइमेट कैंपेनर अविनाश चंचल कहते हैं, हम तीन शीर्ष उत्सर्जक देशों में एसओटू में कमी देख रहे हैं। भारत में हमें इसकी झलक मिलती है कि किस तरह से इसमें कमी आई है। 2019 में अक्षय ऊर्जा की क्षमता में विस्तार हुआ, कोयले पर निर्भरता कम हुई और हमने वायु की गुणवत्ता में सुधार देखा लेकिन अभी हम सुरक्षित हवा के लक्ष्यों से दूर हैं। हमें अपनी सेहत और अर्थव्यवस्था के लिए कोयले से दूरी बनाकर नवीकरणीय स्रोत को गति देनी चाहिए। साल 2015 में पर्यावरण मंत्रालय ने कोयले से चलने वाले बिजली स्टेशनों के लिए एसओटू के उत्सर्जन की सीमा तय की थी लेकिन ये पावर प्लांट अपने यहां दिसंबर 2017 की समय सीमा तक एफजीडी इकाइयां नहीं लगा सके। हालांकि समय सीमा को 2022 तक बढ़ा दिया गया था क्योंकि जून 2020 तक अधिकांश बिजली संयंत्र तय मानकों का बिना पालन किए काम कर रहे थे। सिंगरौली के पावर प्लांट्स में एफजीडी अभी पूरी तरह से एक्टिवेट नहीं हैं। 

Tags:    

Similar News