महाराष्ट्र बोर्ड के अलावा दूसरे बोर्ड के विद्यार्थियों को राहत, 8वीं- 9वीं- 10वीं में मराठी विषय में मिलेंगे ग्रेड

विद्यार्थियों को राहत महाराष्ट्र बोर्ड के अलावा दूसरे बोर्ड के विद्यार्थियों को राहत, 8वीं- 9वीं- 10वीं में मराठी विषय में मिलेंगे ग्रेड

Bhaskar Hindi
Update: 2023-04-20 15:29 GMT
महाराष्ट्र बोर्ड के अलावा दूसरे बोर्ड के विद्यार्थियों को राहत, 8वीं- 9वीं- 10वीं में मराठी विषय में मिलेंगे ग्रेड

डिजिटल डेस्क, मुंबई। मराठी भाषा की अनिवार्यता के मुद्दे पर महाराष्ट्र बोर्ड के अलावा दूसरे बोर्ड के विद्यार्थियों को राज्य सरकार ने राहत दी है। सीबीएसई, आईसीएसई और आईबी जैसे बोर्ड में पढ़ने वाले आठवीं, नौंवी और दसवीं के विद्यार्थियों को ग्रेड दिया जाएगा। स्कूली शिक्षा विभाग के इस आदेश पर विवाद हुआ तो गुरुवार को स्कूली शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर ने सफायी दी। उन्होंने कहा कि ग्रेडिंग सिर्फ तीन साल लागू रहेगी। राज्य के स्कूलों में मराठी भाषा अनिवार्य कर दी गई है। कई लोग हैं जो पहली कक्षा से मराठी नहीं पढ़ पाए हैं। जो विद्यार्थी ऊंची कक्षाओं में हैं, अचानक मराठी विषय जुड़ने से उन्हें परेशानी हो रही है। इसलिए नई मूल्यांकन पद्धति तीन साल के लिए लागू की गई है। हमें मराठी का इस्तेमाल 100 फीसदी करना है। बोर्ड की परीक्षा में अगर विद्यार्थी फेल हो गया तो उनके करियर पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। 3 साल बाद विद्यार्थियों को बोर्ड की परीक्षा में किसी तरह की परेशानी नहीं होगी। 

क्या है सरकार का फैसला

महाराष्ट्र बोर्ड को छोड़ कर दूसरे बोर्ड के स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को शैक्षणिक सत्र 2023-24 से अगले तीन वर्षों तक मराठी की उत्तर पुस्तिका जांच के बाद ए, बी, सी, डी ग्रेड दिए जाएंगे। दूसरे विषयों में मिले नंबर के साथ मराठी भाषा के ग्रेड नहीं जोड़े जाएंगे। राज्य सरकार ने शैक्षणिक सत्र 2020-21 से सभी बोर्डों के लिए मराठी पढ़ाना अनिवार्य कर दिया है। हालांकि कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई हो रही थी और इस पर ठीक से अमल नहीं हो पाया। 

फैसले का विरोध

महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे) अध्यक्ष राज ठाकरे ने राज्य सरकार के फैसले का विरोध करते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। उन्होंने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से मुलाकात की और इस दौरान एक पत्र सौंपा जिसमें कहा है कि सरकार का फैसला गलत है। राज ने पत्र में लिखा है कि तीन साल पहले सभी स्कूलों में मराठी भाषा की पढ़ाई अनिवार्य की गई थी। यह अच्छा कदम था, जिसे अब वापस लिया गया है। इन स्कूलों ने तीन सालों में मराठी पढ़ाने को लेकर पर्याप्त कदम क्यों नहीं उठाया। उन्होंने सवाल किया कि विद्यार्थियों को हो रही परेशानी की जानकारी सरकार को कैसे मिली। क्या इसे लेकर कोई अध्ययन किया गया है। वहीं, राकांपा विधायक जितेंद्र आव्हाड ने भी सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने ट्वीट किया कि गुजरात, बंगाल, पंजाब और दूसरे राज्यों में राज्य की भाषा का कितना महत्व है, यह जाकर देखिए। यह फैसला मुंबई के संपन्न पर-प्रांतियों के दबाव में लिया गया है। उनके बच्चों को मराठी से हो रही परेशानी सरकार नहीं देख पाई।

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