मानव तस्करी का सच, अभी भी लापता हैं 56 युवक-युवतियां
मानव तस्करी का सच, अभी भी लापता हैं 56 युवक-युवतियां
डिजिटल डेस्क, डिंडोरी। रोजगार का अभाव, अशिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण जिले के आदिवासी विकास की मूल धारा से नहीं जुड़ पा रहे हैं। यही वजह है कि वे भटकाव का जीवन जीने को मजबूर हैं। जिसका जीता जागता उदाहरण मानव तस्करी के रूप में सामने आ रहा है। जिसका वे लगातार शिकार होते जा रहे है और जिले के सभी थाना क्षेत्रों में अभी भी 100 से अधिक मामले गुम इंसान के दर्ज हैं। जिनमें 44 मामले दस्त्यार हुए हैं और 56 युवक-युवतियां अभी भी लापता हैं।
इन मामलों में अधिकांश लड़कियां हैं जो काम की तलाश में जिले ही नहीं राज्य के बाहर भी भेजी जा चुकी हैं। मानव तस्करी और बढ़ते पलायन को रोकने के लिए एसपी ने प्रोजेक्ट प्रयास की शुरूआत की है। जिसमें इस वर्ष 2017 के दौरान तीन बड़े मामलों में सफलता हासिल हुई है। वहीं सैकड़ों ग्रामवासियों को पलायन करने से रोका गया है। काम की तलाश में विभिन्न राज्यों में भेजी गई लड़कियों और लड़कियों के बेचे जाने के मामले में अभी तक एक दर्जन आरोपियों व दलालों को भी गिरफ्तार किया जा चुका है। जिन पर धारा 363 बहला फुसलाकर ले जाना और 374 मानवीय हनन का प्रकरण दर्ज कर कार्रवाई की जा चुकी है।
क्या थे मामले
ज्ञातव्य हो कि हाल ही में 11 लड़कियों को कोयम्बटूर से बरामद करने में पुलिस ने सफलता प्राप्त की है। जहां नाबालिग लड़कियों को भी फर्जी आधार कार्ड के जरिए धागा फैक्ट्री में रोजगार दिलाने के प्रयास किए जा रहे थे। वहीं कुछ दिनों पहले पुलिस ने नाबालिग गुम लड़की के मामले में दिल्ली पुलिस के सहयोग से गुत्थी सुलझाई और अमरपुर क्षेत्र की लड़की को उसके परिजनों को सौंपा था। वहीं समनापुर की युवती का मामला खासा पेचीदा रहा था। जिसकी गुत्थी तीन साल बाद सुलझ पाई थी और इस मामले में युवती को दलालों ने दो बार बेंचकर फर्जी विवाह कराते हुए दैहिक शोषण किया था।
गरीबी है मुख्य वजह
पैसों की चाह में अपने लड़के-लड़कियों को बिना सोचे समझे दलालों के हवाले कर दिया जाता है, जो परिजनों को अच्छी नौकरी दिलाने का झांसा देते हैं। कई महीनों ही नहीं कई वर्षों तक इनका पता नहीं रहता, अलबत्ता परिजनों के खाते में हर माह मजदूरी की रकम आती है, और रकम आना बंद होने के बाद परिजन गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराते हैं। जिससे पुलिस के सामने भी मामला पेचीदा हो जाता है। इस मामले में एसपी का कहना है कि जिले में गरीबी मुख्य वजह है, यहां ना तो खेती है और ना ही रोजगार के साधन उपलब्ध हैं। इसके अलावा अशिक्षा और जागरूकता की कमी भी ग्रामीणों को ऐसे कदम उठाने को बाध्य करती है।
प्रयास को मिल रही सफलता
जिले में प्रोजेक्ट प्रयास की शुरुआत की गई है जिसमें पलायन करने वाले हर उम्र के लोगों को रोकने और जिले में कार्य की तलाश तथा खेती की ओर मेहनत करने की सलाह दी जा रही है जिसमें किसलपुरी, सक्का, शहपुरा, बजाग, रूसा, मेहन्दवानी, करंजिया, शाहपुर, विक्रमपुर सहित अनेक स्थानों पर सैकड़ों मजदूरों को गांव-गांव जाकर समझाईश दी जा चुकी है और उन्हें पलायन से रोका गया है जिसमें निडर टूरी की टीम भी सक्रियता का निर्वाह कर रही है। बताया जाता है कि बारिश खत्म होते ही लोग बड़ी संख्या में काम की तलाश में निकल जाते हैं जिन्हें रोका जा रहा है।जिसमें विभिन्न थाना क्षेत्रों को सफलता भी मिली है और इसके तहत ही 11 लड़कियों को घर वापस लाया जा सका है।
कहां क्या हैं हालात
जिले के विभिन्न थाना और चौकियों में गुमशुदगी की जो रिपोर्ट दर्ज है उनमें 100 से अधिक गुमशुदा इंसान है जिसमें से 44 मामलों को दस्त्यार किया जा चुका है। इनमें थाना कोतवाली के 19 मामलों में 17 दस्त्यार किए गए और 2 मामलों में पता लगाया जा रहा है। शहपुरा में एक साल में 15 मामले जिनमें 8 बालिकाएं और 7 बालक के दर्ज हुए जिनमें 11 मामलों को सुलझाया गया। मेहन्दवानी में एक साल के दौरान 20 मामलों में 14 सुलझाए गए और 4 पेंडिंग है। समनापुर में, अमरपुर में एक साल के दौरान तीन मामले सामने आए थे जिनमें दो गुमशुदा नाबालिग लड़कियों का पता लगाकर उन्हें परिजनों के सुपुर्द किया जा चुका है। वहीं करंजिया में एक साल के दौरान 18 महिलाएं व बच्चे लापता हुए जिनमें से 15 की पतासाजी कर उन्हें परिजनों के सुपुर्द किया गया वहीं तीन नाबालिग लड़कियां अभी भी लापता है जिनका पता लगाया जा रहा है। गाड़ासरई में 14 गुमशुदगी मामलों में 9 मामले सुलझे है और 6 मामलों में पतासाजी की जा रही है। इसके अलावा वर्ष 2015 की गुमशुदगी का एक मामला सुलझाया गया है। तथा बजाग में 20 मामले दर्ज हैं। इनका कहना है
डिंडोरी के एसपी सिमाला प्रसाद ने कहा कि यह बात सही है कि बेरोजगारी अशिक्षा और पैसों की चाहत में मां-बाप अपने नाबालिग लड़के-लड़कियों को उन दलालों के हवाले कर देते हैं जो बेहतर रोजगार दिलाने का आश्वासन देते हैं और ना मिलने पर गुमशुदगी दर्ज होती है जिसे रोकने के लिए प्रेजेक्ट प्रयास के तहत कार्रवाई की जा रही है जिसमें इस वर्ष तीन बड़े मामले पुलिस ने सुलझाए हैं। अभी और भी मामलों में तहकीकरत की जा रही है।