किया गया स्थिति का आंकलन, समाधान के लिए हुआ निदानात्मक सर्वेक्षण
सब्जी की फसलों पर कीड़ों का प्रकोप किया गया स्थिति का आंकलन, समाधान के लिए हुआ निदानात्मक सर्वेक्षण
डिजिटल डेस्क सिंगरौली (वैढऩ)। मानसून के दौर में उच्च-निम्न तापमान और नमी के कारण कीड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है। जिनका सीधा असर इस सीजन की फसलों और दुधारू पशुओं पर होता है। इस समय बाजार में मिलने वाली सब्जियों में कीड़े मिलने की आशंका बनी रहती है। इस समस्या से आम लोग ही नहीं किसान भी परेशान हैं। इस प्रकार की समस्या की जानकारी मिलने पर कृषि विज्ञान केन्द्र सिंगरौली और उद्यानिकी विभाग के वैज्ञानिक व अधिकारी किसानों के खेतों पर हैं। दोनों विभागों के अधिकारियों ने संयुक्त रूप से जिले के ग्राम ओरगाई, सासन, घुरीताल, परसौना और गदसा सहित आसपास के क्षेत्रों को भ्रमण किया। कृषि विशेषज्ञों ने किसानों के खेतों में लगे बैगन, मिर्च, टमाटर और हरी सब्जियों के पौधों का अवलोकन किया। कई खेतों में लगी बैगन की फसलों पर पाया गया कि तना एवं शीर्ष छेदक कीटों का भारी संक्रमण है। जिससे बैगन व उनके पेड़ों की पत्तियां व तने भी कट गये हैं सूखने की स्थिति बन गयी है। हर बैगन में किसी न किसी कीड़े ने अपना कब्जा जमा लिया है और अंदर जाकर सब्जी को पूरी तरह से नष्ट कर रहा है। ऐसे फलों को तत्काल पौधे से अलग करवाया गया और उन्हें गहराई से जमीन पर दबा दिया गया। बताया गया कि उन्हें जलाया भी जा सकता है लेकिन किसान के पास उपलब्ध संसाधनों में जमीन में दूषित हो चुके फलों को गाडऩे की विधि ही सस्ती है।
करेला, टमाटर और लौकी भी चपेट में
बाजार में आने वाले करेला, टमाटर, देशी लौकी, साग के पत्ते भी कीड़ों की चपेट मे हैं। मिर्च के पौधों में भी झुलसने वाले रोग लगने की आशंका बढ़ रही है। जिससे किसानों की उपज तो हो रही है लेकिन सही सलामत नहीं रह पा रही है। लिहाजा बाजार में सब्जियों की आवक कम है और दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। जिसका फायदा फार्मिंग सब्जी उत्पादक उठा रहे हैं, जो रसायनिक खादों और तरह तरह के घोल का छिडक़ाव करते हैं। ऐसी सब्जियां सेहत के लिए भी नुकसानदायक हो सकती हैं और महंगी भी पड़ती हैं।
किसानों को बताए गये उपाय
कृषि वैज्ञानिक जय ङ्क्षसह ने बताया कि बैगन, टमाटर के संक्रमित प्ररोह के छिद्र के नीचे से काटकर हटा दिया जाना चाहिए। उसके उपरांत इमामोक्टिन बेन्जोएट 5 एसजी की 0.4 ग्राम प्रति लीटर अथवा नूस्पाइनोंसेड-45 एसबी की 0.2 मिली ग्राम प्रति लीटर अथवा फ्ल्यूबेन्डिमाइड-39.35 एससी की 0.25 मिलीग्राम प्रतिलीटर की मात्रा के घोल 2.5 किग्रा प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतराल में एकांतर क्रम में छिडक़ाव करके इस प्रकार के कीड़ों से मुक्ति पायी जा सकती है। करैला में मृदुरोमिल आसिता नामक बीमारी की रोकथाम के लिए रिडोमिल गोल्ड की 2.5 ग्राम मात्रा का प्रतिलीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिडक़ाव करना लाभप्रद होता है। टमाटर की फसल में जीवाणु पर्ण झुलसा रोग से बचाव के लिए स्ट्रोप्टोसाइक्लिीन और टेट्रासाइक्लिीन की 15 ग्राम प्रति 50 लीटर की दर से बने घोल का छिडक़ाव करना चाहिए।