पुराने मोबाइल फोन की तकनीक से हलाकान आंगनवाडी कर्मचारी, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब

परेशानी पुराने मोबाइल फोन की तकनीक से हलाकान आंगनवाडी कर्मचारी, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब

Bhaskar Hindi
Update: 2023-01-25 14:21 GMT
पुराने मोबाइल फोन की तकनीक से हलाकान आंगनवाडी कर्मचारी, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब

डिजिटल डेस्क, मुंबई, कृष्णा शुक्ला। बांबे हाईकोर्ट ने एकात्मक बाल विकास योजना (आईसीडीएस) से जुड़े कार्य की रिपोर्टिंग के लिए आंगनवाडी कर्मचारियों को दिए गए आउटडेटेड  मोबाइल फोन (तकनीक के लिहाज से पुराने हो चुके)  के मुद्दे पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकार हमे पूरे ब्यौरे के साथ बताए कि वह आंगनवाडी कर्मचारियों को उपलब्ध होनेवाले मोबाइल कैसे होगे? मोबाइल का हार्डवेयर व तकनीक कैसी होगी? हाईकोर्ट में आंगनवाडी कर्मचारियों के 6 संगठनों की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। जो राज्य भर में एक लाख आंगनवाडी कर्मचारी, इनती ही आंगनवाडी सहायिकाओं व 13 हजार मिनी आंगनवाडी कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करते है। आंगनवाडी कर्मचारी मुख्य रुप से आईसीडीएस योजना के तहत महिला व बच्चों के कल्याण के लिए लागू की जानेवाली योजनाओं को लागू करते है।

वरिष्ठ अधिवक्ता गायत्री सिंह व मिनाज ककालिया के माध्यम से दायर की गई याचिका के मुताबिक आंगनवाडी कर्मचारियों को पैनासानिक कंपनी का पुराने मॉडल का फोन दिया गया है। 2017 से यह फोन बनना बंद हो गया है। इस मोबाइल फोन का रैम दो जीबी है। जो कि आंगवाडी कर्मचारियों के कार्य के लिए जरुरी एप को डाउनलोड करने के लिए पर्याप्त नहीं है। आंगनवाडी कर्मचारियों को फोन पर तीन से चार घंटे काम करना पड़ता है। जिससे यह फोन जल्दी गर्म हो जाते है। जिससे इन्हें पकड़ने में दिक्कत आती है। यह फोन डेटा अपलोड करते समय अक्सर हैंग भी होते है। इस मोबाइल फोन की बैटरी व कनेक्टिविटी काफी कमजोर है। जो फिल्ड में काम करते समय अक्सर बंद हो जाती है। इन मोबाइल के सर्विस सेंटर भी काफी दूर-दूर है। मोबाइल के मरम्मत में लगनेवाला शुल्क मंजूर किए गए शुल्क से काफी ज्यादा होता है। जिससे कर्मचारियों को काम करने में काफी दिक्कते होती है। इसलिए राज्य सरकार के महिला व बाल विकास विभाग को आंगनवाडी कर्मचारी को काम के लिए  उपयुक्त मोबाइल फोन उपलब्ध कराने का निर्देश दिया जाए। याचिका में विशेषज्ञों की राय के हिसाब से कहा गया है कि आंगनवाडी कर्मचारियों के कार्य के लिए 8 जीबी रैम व 5जी स्पीड का मोबाइल फोन उपयुक्त है। 

न्यायमूर्ति गौतम पटेल व न्यायमूर्ति एसजी दिगे की खंडपीठ के सामने इन याचिकाओं पर सुनवाई हुई। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता गायत्री सिंह ने खंडपीठ को पुराने मोबाइल के चलते आंगनवाडी कर्मचारियों को आनेवाली दिक्कतों की जानकारी दी। वहीं राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि आंगनवाडी कर्मचारियों को देने के लिए करीब एक लाख मोबाइल फोन की जरुरत पड़ेगी। इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार दोनों को निधी साझा करानी पड़ेगी।

इस पर खंडपीठ ने कहा कि इस मामले से जुड़ा सारा ब्यौरा हमे हलफनामे में  दिया जाए। हलफनामें राज्य सरकार मामले को लेकर अपनी सिफारिशों का भी जिक्र करें। हालांकि इस दौरान खंडपीठ ने कहा कि याचिका के परिच्छेद 32 में उपयुक्त जरुरी फोन उपलब्ध कराने के विषय में कही गई बाते यर्थाथवादी से अधिक आदर्शवादी प्रतीत होती है। खंडपीठ ने कहा कि हम याचिका में यह नहीं देख पा रहे है कि 5जी कनेक्टिविटी व आक्टा कोर की आवश्याक्ता क्यों है।

याचिका के मुताबिक आंगनवाडी कर्मचारियों को मोबाइल के जरिए पोषण ट्रैकर एप पर लाभार्थियों से जुड़ी जानकारी डालनी पड़ती है। याचिका में दावा किया गया है कि उन्हें सरकार की ओर से जो मोबाइल फोन उपलब्ध कराए गए वे तकनीकि रुप से काफी पुराने है कई फोन तो बंद पड़ चुके है। इसके चलते उन्हें काम करने में काफी दिक्कतों का समना करना पड़ता है।

याचिका में कहा गया है कि इस परिस्थिति को समझने की बजाय राज्य का महिला व बाल विकास विभाग आंगनवाडी कर्मचारियों को पुराना मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करने पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई व नौकरी से निकालने के लिए धमका रहा है। याचिका में कहा गया है कि आंगनवाडी कर्मचारियों को पोषण ट्रैकर एप से जुड़े कार्य कि रिपोर्टिंग के लिए अपना निजी मोबाइल फोन इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। खंडपीठ ने याचिका पर गौर करने व मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद राज्य सरकार को हलफनामा दायर करने को कहा। जबकि केंद्र सरकार को पोषण एप में मराठी में जानकारी भरने का विकल्प देने के विषय से जुड़ी जानकारी भी हलफनामें में देने को कहा। खंडपीठ ने अब इस याचिका पर सुनवाई 8 फरवरी 2023 को रखी है।  

 

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