डिण्डौरी के आदिवासी कलाकार सजा रहे मुंबई में रानी मुखर्जी का बंगला
डिण्डौरी के आदिवासी कलाकार सजा रहे मुंबई में रानी मुखर्जी का बंगला
डिजिटल डेस्क डिण्डौरी। जिले के एक छोटे से गांव के आदिवासी इन दिनों मुंबई में मसहूर फिल्म अभिनेत्री रानी मुखर्जी का बंगला सजा रहे है। जहां वे बंगले की दीवारों पर गोंड आदिवासी जनजाति की संस्कृति व परंपराओं को चित्र के माध्यम से उकेर रहे है। मुंबई के वरसोवा इलाके में स्थित रानी मुखर्जी के इस बंगले के लिए विशेष तौर पर जिले के कुछ आदिवासी कलाकार जिनसे गोंडी भित्ती चित्र की चित्रकारी आती है उन्हें बुलवाया गया और बंगले की सजावट की जिम्मेदारी दी गई। यहां कलाकारों ने लगभग दो माह रूककर आदिवासी संस्कृति को चित्रकारी के माध्यम से उकेरा है।
जनजाती की संस्कृति से सजाया
रानी मुखर्जी के बंगले की सजावट को लेकर जिले के पाटनपुर, चाड़ा ग्राम सहित सटे अन्य गांव से मुंबई पहुंचे आदिवासी कलाकार अर्जुन के अनुसार बंगले की दीवारों को आदिवासी जनजाती की संस्कृति से सजाया गया है। यहां आदिवासी परंपरा के तहत होने वाली शादी में किया जाने वाला श्रृंगार की कहानी, दुल्हनों के द्वारा पहने जाने वाले जेवरों सहित अन्य आभूषणों की गोंडी चित्रकारी को रानी के बंगले के चारों ओर उकेरा गया है। इसके अलावा धरती की उत्पत्ति को लेकर आदिवासी संस्कृति की सोच व उनकी जन्म से लेकर मरण तक की संस्कृति जैसे अन्य विषयों पर देशी अंदाज में आदिवासी कलाकारों ने पहेली के माध्यम से कलाकारी पेश की है। जानकारी के अनुसार रानी मुखर्जी के बंगले के लिए आदिवासी कलाकारों को गोंड, भील आदिवासी की कथाओं के अनुसार चित्रकारी किए जाने का और काम मिला है।
मार्केटिग के लिए नहीं बाजार
एक तरफ जहां राष्ट्रीय मानव दर्जा प्राप्त आदिवासाी कलाकारों के द्वारा की जाने वाली चित्रकारी दिन व दिन मसहूर हो रही है और यही कारण है कि रानी मुखर्जी जैसी अभिनेत्री के घरों में आदिवासी संस्कृति चित्रकारी के माध्यम से पहुंच रही है वहीं अभी भी इन आदिवासी कलाकारों के पास एक व्यवस्थित तौर पर इस व्यवसाय के लिए बाजार उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि कुछ दलाल भी इनकी चित्रकारी का लाभ उठाकर देश ही नहीं विदेशों में महंगे दामों में बेचकर इसका लाभ ले रहे है।
इनका कहना है
वाकई यह जिले के गौरव की बात है। वर्तमान में गोंडी भित्ती चित्रों को खासा पसंद किया जा रहा है यहीं कारण है कि पाटनगढ़ के कुछ कलाकार विदेशों तक में अपनी कला को बिखेर रहे है।
धनेश परस्ते, सदस्य जनजाति संग्राहालय संस्कृति विभाग भोपाल