बॉम्बे हाई कोर्टने कहा: जाति जांच समिति को अपने पहले के दिए जाति वैधता प्रमाणपत्रों को अमान्य करने के लिए कोई अधिकार नहीं

सरकारी कर्मचारियों ने दायर की थी याचिका

Bhaskar Hindi
Update: 2023-11-24 13:47 GMT

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि राज्य जाति की जांच समिति के पास पिछले रिकॉर्ड को सत्यापित करने, अपने स्वयं के पिछले निर्णयों पर फिर से विचार करने और पहले से दी गई जाति वैधता प्रमाणपत्रों को अमान्य करने के लिए कोई अधिकार नहीं है। न्यायमूर्ति जी. एस. कुलकर्णी और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने अपने एक निर्माण में कहा कि जाति जांच समिति को अपने फैसलों की समीक्षा करने के लिए कानून के तहत किसी भी तरह का अधिकार नहीं दिया गया है। इस तरह की एक अंतर्निहित शक्ति समिति के कामकाज में अनिश्चितता और गैरबराबरी को जन्म देगी। यह मनमानी का कारण बनेगा। खंडपीठ ने सरकारी कर्मचारियों द्वारा दायर 10 याचिकाओं की अनुमति दी, जो पिछले साल जाति की जांच समिति द्वारा पारित अदालत के स्वत: संज्ञान में लिए गए आदेशों को चुनौती देते हुए पिछले साल 1992 से 2005 की अवधि के बीच उन्हें जारी की गई जाति के प्रमाण पत्र को अमान्य कर रहे थे। 

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि किसी को दी गई जाति प्रमाण पत्र को केवल हाई कोर्ट के प्रथम दृष्टया संतुष्टि पर पूछताछ की जा सकती है। अदालत ने कहा कि जाति जांच समिति के लिए एक स्वतंत्र हाथ या लाइसेंस नहीं हो सकता है, जिसे फिर से खोलने के लिए वैधता के मामलों को इसके पहले आदेशों द्वारा स्वीकार किए जा रहे हैं। किसी शिकायत पर फिर से जांच या फिर उसके आदेशों की समीक्षा की जा सकती है। खंडपीठ ने कहा कि अगर समिति के पास अपने स्वयं के आदेशों की समीक्षा करने के लिए ऐसी अंतर्निहित शक्तियां होती हैं, तो यह विनाशकारी परिणाम की ओर ले जाएगा। समिति एक व्यक्ति परक राय बना सकती है और यह बिना किसी प्रतिबंध के सीमा (समय) के रूप में होगा। इस प्रकार हमारी राय में जाति जांच समिति एक वैधानिक निकाय होने के नाते, जो अर्ध सहायक कार्यों का प्रयोग कर रही है, उसके पास पिछले रिकॉर्ड को सत्यापित करने और पिछले निर्णयों को फिर से खोलने और जाति की वैधता प्रमाण पत्रों को अमान्य करने के लिए एक कार्रवाई शुरू करने के लिए कोई भी अधिकार क्षेत्र नहीं होगा।


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