Satta King: क्या है सट्टा मटका? और भारत में कैसे हुई इसकी शुरुआत, जानिए इसका इतिहास

  • सट्टा मटका भारत में पूरी तरह से बैन है
  • भारत में इसकी शुरुआत मुंबई में हुई थी
  • अंग्रेजों के जमाने से ही खेला जा रहा है

Bhaskar Hindi
Update: 2024-10-10 13:44 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। कहते हैं जो किस्मत में होता है उसे कोई छीन नहीं सकता और जो नहीं है उसे कोई दे नहीं सकता। लेकिन, आज बाजार में कितने ही सारे ऐसे खेल हैं, जिन पर लोग अपनी किस्मत आजमाते हैं। इनमें से एक है सट्टेबाजी और उससे भी ज्यादा पॉपुलर है सट्टा मटका (Satta-Matka)। इस खेल का नाम जितना सुनने में अजीब है उतना ही इस खेल को समझना और इस पर दांव लगाना भी। बड़ी बात यह कि, सट्टा मटका भारत में पूरी तरह से बैन है और यदि आप इस खेल में शामिल होते हैं तो आपको सजा भुगतनी पड़ सकती है। इतना ही नहीं आपको भारी जुर्माना भी चुकाना पड़ सकता है। इसकी शुरुआत भारत में कैसे हुई? और क्या है इसका इतिहास, आइए जानते हैं...

क्या है सट्टा मटका?

सट्टा मटका एक बहुत ही रोमांचित खेल है, जिसमें लोग बड़े ही उत्साह और रिस्क के साथ अपना पैसा लगाते हैं। उत्साह इसलिए क्योंकि, इसमें जितना पैसा लगाया जाता है जीतने पर उससे कई गुना अधिक आपको वापस मिलता है, ऐसे में किसी भी व्यक्ति को यह खेल एक दांव में ही गरीब से अमीर बना सकता है। वहीं रिस्की इसलिए क्योंकि, आपका एक गलत दांव या गलत फैसला आपका भारी नुकसान भी करा सकता है साथ ही यह गैरकानूनी है और आप इसे खेलते हुए पकड़ा गए तो आपको सजा हो सकती है। 

भारत में कब शुरू हुआ सट्टा मटका?

सट्टा मटका की शुरुआत अंग्रेजों के जमाने से ही हो गई थी। लेकिन साल उन्नीस सौ पचास के बाद इसकी पॉपुलैरिटी काफी तेजी से बढ़ने लगी। भारत में इसकी शुरुआत महाराष्ट्र के बॉम्बे से हुई थी। इसमें शुरुआत के दौर में मजदूर वर्ग और गरीब लोगों ने अपनी किस्मत को आजमाया और जब किसी को जीत मिली तो उसे देख अन्य लोगों में भी इसके प्रति उत्साह बढ़ा और फिर बड़ी संख्या में लोग इससे जुड़ने लगे। वर्ष उन्नीस सौ साठ से उन्नीस सौ सत्तर तक इस खेल का वर्चस्व बहुत अधिक रहा।

कैसे पड़ा सट्टा मटका नाम?

हमारे देश में किस्मत की आजमाने और पैसों का लालच देने वाले कई सारे खेल खेले जाते हैं, जो रिस्की होते हैं और अवैध भी माने जाते हैं। बात करें सट्टा मटका की तो ऐसा कहा जाता है कि, उस जमाने में इस खेल को खेलने के लिए मटका का उपयोग किया जाता था। लोगों जिस नंबर पर दांव लगाते थे उसे एक पर्ची में लिखकर मटके में डाल दिया जाता था और फिर उसमें से किसी एक नंबर को चुना जाता था। इस खेल में मटके के प्रयोग के कारण ही इसका नाम मटका सट्टा पड़ गया।

क्यों और कैसे बैन हुआ मटका सट्टा?

अंग्रजों के जमाने का यह खेल आज भी खेला जाता है, लेकिन इतना लोकप्रिय और लोगों को पसंद आने वाला यह खेल बंद कैसे हो गया, इसके भी कई कारण रहे हैं। कहा जाता है कि, जब यह खेल अपने चरम पर पहुंचा तो इसमें गरीब, मजदूर लोगों के साथ अपराध प्रवृत्ति के लोग भी अपना भाग्य आजमाने पहुंचने लगे। चूंकि, पैसा लगाना और उसे जीतकर लाना हर किसी के बस की बात नहीं होती, ऐसे में इस खेल में शामिल होने वाले लोगों में लड़ाई- झगड़े यानि ​की हिंसा तेजी से बढ़ने लगी। आखिरकार वर्ष उन्नीस सौ पैंसठ में महाराष्ट्र सरकार ने सट्टा मटका को बैन कर दिया। लेकिन यह पूर्ण रूप से बंद नहीं हो सका, लोग छुप-छुपकर इस खेल को खेलते रहे और आगे बढ़ाते रहे। 

आज भी खूब खेला जाता है सट्टा मटका

भले की सट्टा मटका करीब उनसठ साल पहले बैन हो गया हो, लेकिन आज भी इसकी लोकप्रियता उतनी ही है। हालांकि, तब से आज से समय के अनुसार, इस खेल में लगातार बदलाव आते गए और आज इस खेल से तकनीकि रूप से लोग जुड़ने लगे हैं। इसे अब ऑनलाइन भी खेला जाता है। हालांकि, सट्टा मटका का यह रूप भी वैध नहीं है और इसके लिए भी सजा व जुर्माने का प्रावधान लागू होता है। लेकिन, हार- जीत का दांव फिर भी चलता है और आज भी जीतने वाले को भारी रकम मिलती है।

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