Coronavirus Effect: अमेरिका में बेरोजगारी दर महामंदी के एरा के करीब पहुंची, अप्रैल में रिकॉर्ड 2 करोड़ लोगों की नौकरियां गई
Coronavirus Effect: अमेरिका में बेरोजगारी दर महामंदी के एरा के करीब पहुंची, अप्रैल में रिकॉर्ड 2 करोड़ लोगों की नौकरियां गई
डिजिटल डेस्क, वॉशिंगटन। नोवल कोरोनोवायरस महामारी से वैश्विक अर्थव्यवस्था गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। कुछ विशेषज्ञों ने वर्तमान संकट की तुलना साल 1929 में आई महामंदी (ग्रेट डिप्रेशन) के साथ करना शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कुछ देशों में बेरोजगारी 1930 के दशक के स्तर तक पहुंच सकती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में महामंदी में बेरोजगारी की दर लगभग 25 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। अभी अमेरिका में बेरोजगारी दर 14.7% है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि बेरोजगारी का ये आंकड़ा सही नहीं है। असली तस्वीर और भी ज्यादा बदतर है। विशेषज्ञों के अनुसार अमेरिका में बेरोजगारी दर 23.6% के करीब पहुंच गई है जो कि ग्रेट डिप्रेशन के एरा के करीब है।
लेबर डिपार्टमेंट ने शुक्रवार को कहा कि कारखानों, दुकानों, कार्यालयों और अन्य व्यवसायों के शटडाउन होने के चलते अप्रैल में रिकॉर्ड 20.5 मिलियन (2.05 करोड़) लोगों की नौकरियां चली गई। कोरोनावायरस के चलते जिस तेजी से बेरोजगारी बढ़ी है वो बहुत ही चौंकाने वाली है। फरवरी में बेरोजगारी दर 50 साल के निचले स्तर 3.5% पर पहुंच गई थी और मार्च में और भी नीचे 4.5% पर। 2008 की मंदी के बाद अमेरिका में 11 साल में जो भी जॉब ग्रोथ हुई थी वो केवल एक महीने में खत्म हो गई। इकोनॉमिस्टों को चिंता है कि स्थिति के वापस सामान्य होने में सालों लग सकते हैं। हालांकि जिन लोगों की नौकरियां गई है वो इसे अस्थायी मानते है क्योंकि उन्हें लगता है कि जो भी बिजनेस शटडाउन हुए है वो आने वाले समय में वापस शुरू हो जाएंगे और उन्हें नौकरी पर फिर से बुला लिया जाएगा।
क्या है महामंदी?
महामंदी एक बड़ा आर्थिक संकट था जो 1929 में संयुक्त राज्य अमेरिका में शुरू हुआ और 1939 तक दुनिया भर में इसका प्रभाव पड़ा। 24 अक्टूबर 1929 के दिन को "ब्लैक थर्सडे" कहा जाता है। इसी तारीख को महामंदी के शुरू होने का दिन बताया जाता है। इस दिन न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में स्टॉक की कीमतें 25 फीसदी तक गिर गई थी। वहीं औद्योगिक उत्पादन में 47 प्रतिशत, थोक मूल्य सूचकांक 33 प्रतिशत और वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद में 30 प्रतिशत तक गिरावट आ गई थी। महामंदी का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ा था। 1929 से 1933 के बीच अमेरिका में बेरोजगारी 3.2 प्रतिशत से बढ़कर 24.9 प्रतिशत हो गई थी। ब्रिटेन में यह 1929 और 1932 के बीच 7.2 प्रतिशत से बढ़कर 15.4 प्रतिशत हो गई थी।
क्या थी महामंदी की वजह?
1921 से अमेरिका की इकोनॉमी बूम पर थी। फोर व्हीलर गाड़िया, रेफ्रीजिरेटर, वॉशिंग मशीन और रेडियो जैसी चीजों का मास प्रोडक्शन होने लगा था और इसकी सेल भी काफी अच्छे से हो रही थी। नए होने के चलते इन सभी चीजों की डिमांड भी काफी ज्यादा थी। इसी के चलते सभी के बिजनेस काफी अच्छा परफॉर्म कर रहे थे और स्टॉक प्राइज भी तेजी से ऊपर जा रहे थे। इसी वजह से 1920 से लेकर 1928 के समय को रोरिंग ट्वेंटीज भी कहा जाता है।
कंपनियों की ग्रोथ होने लगी धीमी
1929 से अमेरिका की इकोनॉमी में स्लोडाउन आने लगा। कंपनियों की ग्रोथ धीमी होने लगी। जिन उत्पादों की डिमांड तेजी से बढ़ी थी वो कम होने लगी। इस वजह से कंपनियां अपना प्रोडक्शन कम करने लगी और कई लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। डिमांड और प्रोडक्शन में आई कमी की वजह से इन कंपनियों के स्टॉक प्राइज भी तेजी से कम हुए। यूस स्टील जैसी कंपनी का शेयर लगभग 250 डॉलर से गिरकर 25 डॉलर पर आ गया।
काफी सारे बैंक हो गए फेल
महामंदी की शुरुआत में लोगों की लगा कि ये नॉर्मल स्लोडाउन है और जल्द रिकवर हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। धीरे-धीरे बेरोजगारी बढ़ने लगी जिसकी वजह से लोगों की खर्च करने की क्षमता कम होने लगी। स्टॉक मार्केट में आई गिरावट के चलते लोगों ने इन्वेस्टमेंट करना बंद कर दिया। जिन लोगों ने अपनी जॉब खो दी वह अपनी सेविंग को निकालने के लिए एक साथ बैंक पहुंचने लगे। लेकिन बैंकों ने काफी सारा पैसा कंपनियों को लोन के तौर पर दे रखा था। स्लोडाउन की वजह से ये कंपनियां बैंक को समय पर पैसा नहीं लौटा पा रही थी। ऐसे में कई सारे बैंकों ने डिपोजिटरों को उनका पैसा देने से मना कर दिया। इस वजह से करीब काफी सारे बैंक फेल हो गए।
इकोनॉमी में पैसा आना बंद हो गया
बैंकों के फेल होने से लोगों का बैंकिंग सिस्टम से भरोसा उठ गया। इस वजह से ज्यादातर लोग अपने पास कैश रखने लगे और इकोनॉमी में पैसा आना बंद हो गया। ऐसे में कंपनियों को भी फंड रेज करने में परेशानी आने लगी। इंडस्ट्रियल आउटपुट निचले स्तर पर आ गई। देखते ही देखते लोग जिसे नॉर्मल स्लोडाउन समझ रहे थे वो मंदी में बदल गया और फिर ये महामंदी में बदल गया। सरकार महामंदी से उबरने के लिए कोई कदम नहीं उठा पा रही थी।
फ्रैंकलिन के राष्ट्रपति बनने से सुधरी इकोनॉमी
इसके बाद 1933 में फ्रैंकलिन डेलानो रोज़वेल्ट अमेरिका के प्रेसिडेंट बने। उन्होंने सबसे पहले बैंकिंग सिस्टम को सुधारने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने फेडरल डिपोजिट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन (FDIC) की शुरुआत की। इसके जरिए उन्होंने लोगों को भरोसा दिलाया कि बैंक में रखे पैसों की गारंटी FDIC लेगी। बैंक फेल होने की स्थिति में डिपोजिटर को उनका पैसा FDIC देगी। इसकी वजह से लोगों का भरोसा फिर से बैंकों पर बनने लगा और लोग बैंकों में पैसा डिपोजिट करने लगे।
वर्ल्ड वॉर ने अमेरिका को मंदी से उबारा
1939 में वर्ल्ड वॉर टू शुरू हो गया। इसका फायदा अमेरिका को मिला और इकोनॉमी ट्रेक पर आने लगी। अमेरिकी सरकार ने काफी सारा पैसा मिलिट्री में निवेश करना शुरू किया। इससे काफी सारी कंपनियों को ऑर्डर मिलने लगे और रोजगार बढ़ने लगा। इसके बाद अमेरिका की इकोनॉमी पूरी तरह से ट्रेक पर आ गई।
क्या कोरोनावायरस एक बार फिर लाएगा महामंदी?
कोरोनावायरस की वजह से काफी सारे देशों में लॉकडाउन कर दिया गया है। इस वजह से कंपनियों का पूरा काम ठप पड़ गया है। इंडस्ट्रियल आउटपुट शून्य के करीब पहुंच गया है। कंपनियों का खर्च तो लगभग उतना ही है लेकिन उनकी इनकम कम हो गई है। कई सारी कंपनियों के रेवेन्यू तो लगभग शून्य ही हो गए हैं। क्योंकि 2020 का इकोनॉमिक क्राइसिस कोरोना से जुड़ा हुआ है इसलिए जितनी जल्दी हम कोरोना को कंट्रोल करेंगे उतनी जल्दी इकोनॉमी में रिकवरी आएगी। अगर इसे कंट्रोल नहीं किया जाता है तो आगे चलके महामंदी भी आ सकती है।