B'day Special : जानें, टाटा को शिखर तक पहुंचाने वाले रतन की कही वो बातें जो हैं सफलता का राज

B'day Special : जानें, टाटा को शिखर तक पहुंचाने वाले रतन की कही वो बातें जो हैं सफलता का राज

Bhaskar Hindi
Update: 2019-12-28 05:40 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश का सबसे बड़ा कारोबारी घराना टाटा ग्रुप है, जो आज दुनियाभर में परिचय का मोहताज नहीं है। इस ग्रुप्स के कर्ता-धर्ता यानी कि रतन नवल टाटा का आज अपना 82 वां जन्मदिन मना रहे हैं। रतन ने अपने राज में टाटा को शिखर पर पहुंचा दिया। लेकिन आपको बता दें कि रतन एक ऐसे शख्स हैं, जिनका टाटा परिवार के साथ खून का रिश्ता नहीं है, बल्कि उन्हें गोद लिया गया था। आइए उनके जन्मदिन पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...

जन्म
रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को भारत के सूरत शहर में पिता नवल (रतनजी टाटा द्वारा गोद लिया हुआ बेटा) और माता सोनू के घर हुआ था। रतन टाटा जब 10 साल के थे तो इनके माता-पिता अलग हो गए थे। तब जमशेदजी के बेटे रतनजी टाटा की पत्नी नवाजबाई (रतन टाटा की दादी) ने इन्हें गोद ले लिया था और पालन-पोषण किया। 

शिक्षा
रतन टाटा ने अपनी शुरूआती पढ़ाई मुंबई के कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल और शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से पूरी की। इसके बाद वे सन् 1962 में वास्तुकला में बीएस की पढ़ाई पूरी करने के लिए कॉर्नवेल यूनिवर्सिटी गए। उन्होंने 1975 में हार्वर्ड बिजनस स्कूल से एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम की पढ़ाई पूरी की।

नौकरी से लेकर अध्यक्ष तक
रतन टाटा ने आईबीएम की नौकरी ठुकराकर टाटा ग्रुप के साथ 1961 में एक कर्मचारी के तौर पर अपने कैरियर की शुरूआत की थी। लेकिन वे 1991 आते-आते वो टाटा ग्रुप के अध्यक्ष बन गए। उन्होंने अपने 21 साल के राज में कंपनी को शिखर पर पहुंचा दिया और 2012 में वह रिटायर हुए।  

जीवन से जुड़ी खास बातें
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लोग आप पर जो पत्थर फैंकते हैं उसका उपयोग कर स्मारक बना लें।
. अगर आप तेज चलना चाहते हैं तो अकेले चलें। पर अगर आप लंबा चलना चाहते हैं तो साथ चलें। 
मैं सही फैसले लेने में विश्वास नहीं करता. मैं फैसलें लेता हूं और फिर उन्हें सही बनाता हूं। 
. आगे बढ़ने के लिए हमारे जीवन में उतार-चढ़ाव बहुत जरूरी है, क्योंकि ईसीजी (ECG) में सीधी लाइन का मतलब होता है हम जिंदा नहीं है।
. लोहे को उसकी खुद की जंग के अलावा कोई नहीं नष्ट कर सकता। इसी तरह किसी व्यक्ति को उसके खुद के माइंडसेट के अलावा कोई खत्म नहीं कर सकता। 

ऐसे लड़ी थी सम्मान की लड़ाई   
यह बात 1999 की है तब रतन टाटा अपनी कंपनी को बेचने का प्रस्ताव लेकर अमेरिका पहुंचे। वे फोर्ड के मुख्‍यालय डेट्राॅयट गए थे और उनके साथ कंपनी के शेयरहोल्डर्स भी उनके साथ थे। फोर्ड कंपनी के साथ रतन टाटा की तीन घंटे की मीटिंग चली। इस दौरान फोर्ड मोटर्स के बिल फोर्ड ने रतन टाटा से बहुत बेइज्जती की और उनसे कहा कि, जब तुम्हें इस बिजनेस का कोई ज्ञान नहीं था तो, तुमने इस कार को लॉन्च करने में इतना पैसा क्यों लगाया? हम तुम्हारी कंपनी को खरीद कर तुम पर अहसान कर रहे हैं और तुम्हारा ये टाटा मोटर्स पैसेंजर व्हीकल खरीद रहे हैं।

उस दौरान रतन टाटा पहले ही अपनी कंपनी को बेचने के प्रस्ताव से दुखी थे और इस बात ने उन्हें अंदर तक हिला दिया था। उसी समय उन्‍होंने टाटा मोटर्स को बेचने का खयाल छोड़ दिया और वे मीटिंग को अधूरा छोड़कर वापस मुंबई आ गए। इसके बाद उन्‍होंने कड़ी मेहनत से टाटा मोटर्स को दुनिया की बड़ी कंपनी बना दिया।

इस बीच 2009 में बिल फोर्ड की कंपनी घाटे में आ गई और दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई। इस दौरान टाटा ग्रुप ने उनकी कंपनी के खरीदने का एक प्रस्‍ताव दिया। जब इस डील को फाइनल करने के लिए विल फोर्ड अपने शेयरहोल्डर्स के साथ डील फाइनल करने भारत आए थे तब उन्होंने रतन टाटा से कहा था, “आप (टाटा मोटर्स) हमारी कंपनी खरीद कर हम पर बहुत बड़ा अहसान कर रहे हैं।”

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