कोरोना वायरस: कई अर्थशास्त्री चाहते हैं छापे जाएं नए नोट

कोरोना वायरस: कई अर्थशास्त्री चाहते हैं छापे जाएं नए नोट

Bhaskar Hindi
Update: 2020-05-10 16:44 GMT
कोरोना वायरस: कई अर्थशास्त्री चाहते हैं छापे जाएं नए नोट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए सरकार द्वारा बाजार से कर्ज जुटाने की सीमा में 54 प्रतिशत की वृद्धि किए जाने के बाद विशेषज्ञ सरकार के घाटे को पूरा करने के लिए एक सीमा तक नये नोट छापे जाने के पक्ष में दिखते हैं। उनका मानना है कि इस समय अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिये व्यय बढ़ाने की जरूरत है और यह नहीं किया गया तो ऐसा नुकसान होगा, जिसकी भरपाई संभव नहीं। भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कर्ज के लिए रिजर्व बैंक से नोट निकाले जाने के विचार का समर्थन किया था। उन्होंने इस असाधारण समय में गरीबों व प्रभावितों तथा अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के लिये सरकारी कर्ज के लिए रिजर्व बैंक द्वारा अतिरिक्त नोट जारी किए जाने और राजकोषीय घाटे की सीमा बढ़ाने की वकालत की। 

इस तरह की पहली मांग अप्रैल की शुरुआत में आयी थी। उस समय केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक ने राज्य को महामारी की परिस्थितियों से निपटने के लिये 6,000 करोड़ रुपये के बांड बेचने के लिये करीब नौ प्रतिशत की कूपन (ब्याज दर) की पेशकश करने की मजबूरी पर रोष जाहिर किया था। कोरोना वायरस महामारी के कारण देश भर में अब तक 2,100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है तथा 63 हजार से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं। 

वैश्विक स्तर पर, इससे मरने वालों की संख्या 2.79 लाख से अधिक हो चुकी है और 40 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित हैं। इसाक ने उस समय सुझाव दिया था कि केंद्र सरकार पांच प्रतिशत कूपन पर कोविड बांड जारी कर पैसा जुटाए और उसमें से राज्यों को मदद दे। इसाक ने कहा था कि आरबीआई को खुद केंद्र सरकार से ऐसे बांड खरीदने चाहिए। कई अन्य अर्थशास्त्रियों ने भी गरीबों की मदद करने और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये लीक से हट कर संसाधनों का प्रबंध करने का सुझाव दिया है। 

मौद्रीकरण के तहत आमतौर पर केंद्रीय बैंक अधिक मुद्रा की छपायी कर अपनी बैलेंस शीट (सम्त्ति और देनदारी) का विस्तार करते हैं। राजन ने कहा कि सार्वजनिक खर्च की राह में मौद्रीकरण कोई अड़चन नहीं होना चाहिये।

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