प्लांट: 'मौत' की तरफ बढ़ रही मदर ऑफ ऑल इंडस्ट्रीज एचईसी, ठंडी पड़ गई प्लांट की भट्ठियां
कंपनी फिलहाल रकम खर्च पाने की स्थिति में नहीं है
डिजिटल डेस्क, रांची। देश में मदर ऑफ ऑल इंडस्ट्रीज के रूप में मशहूर रही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एचईसी (हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन) अब “मौत” की तरफ बढ़ रही है। इसके फाउंड्री फोर्ज प्लांट (एफएफपी) की तीनों विशाल भट्ठियां (फर्नेस) ठंडी पड़ गई हैं। इन्हें दोबारा चालू करने में चार से पांच करोड़ रुपए का खर्च पड़ेगा और कंपनी फिलहाल इतनी रकम भी खर्च पाने की स्थिति में नहीं है।
यह हाल तब है, जब कंपनी के पास इसरो, माइनिंग सेक्टर और सेल सहित विभिन्न कंपनियों से करीब 1500 करोड़ रुपए का वर्क ऑर्डर है, लेकिन इसे पूरा करने के लिए वर्किंग कैपिटल नहीं है। यहां के अफसरों का 19 से 20 महीने का वेतन बकाया है। भारी उद्योग मंत्रालय ने कंपनी को किसी तरह की मदद देने से हाथ खड़ा कर दिया है।
कंपनी की आधारशिला 1958 में रखी गई थी और 1963 में यहां से उत्पादन शुरू हुआ था। इसके बाद से वर्ष 2020 में कोविड काल के पहले तक कभी ऐसी नौबत नहीं आई थी, जब कंपनी में सभी भट्ठियों यानी फर्नेस को कभी बंद करना पड़ा हो। कोविड काल के बाद यह दूसरी बार है, जब फाउंड्री फोर्ज प्लांट की सभी भट्ठियां ठंडी पड़ गई हैं। जानकारों का कहना है कि एचईसी का फाउंड्री फोर्ज प्लांट (एफएफपी) दुनिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा फोर्जिंग और फाउंड्री संयंत्र है।
यह प्लांट 13 लाख 16 हजार 930 वर्ग मीटर में फैला हुआ है, जिसमें 76,000 टन की मशीनरी स्थापित है। फाउंड्री फोर्ज संयंत्र (एफएफपी) स्थित गैस प्लांट से प्रोड्यूसर गैस बनाई जाती है। करीब 22 हजार कर्मचारियों के साथ शुरू हुई इस कंपनी में अब सिर्फ 3400 कर्मचारी-अधिकारी हैं और इनके पास भी अब रोज प्लांटों में हाजिरी दर्ज करने के सिवा कोई काम नहीं बचा है। कर्मी अमूमन हर हफ्ते अपने बकाया वेतन के भुगतान की मांग को लेकर प्लांट के समक्ष नारेबाजी-प्रदर्शन करते हैं, लेकिन उनकी बात सुनने वाला यहां कोई नहीं है।
कंपनी में पिछले दो साल से भी ज्यादा वक्त से पूर्णकालिक सीएमडी तक नहीं हैं। भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) के चेयरमैन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. नलिन सिंघल यहां के प्रभारी सीएमडी हैं, जो दो-तीन महीने में कभी-कभार ही यहां आते हैं। पिछले दिनों केंद्र सरकार ने संसद में एक प्रश्न के जवाब में बताया था कि एचईसी लगातार पांच साल से घाटे में है। सरकार के जवाब के मुताबिक साल 2018-19 में एचईसी को 93.67 करोड़ रुपए, साल 2019-20 में 405.37 करोड़ रुपए, साल 2020-21 में 175.78 करोड़ रुपए, साल 2021-22 में 256.07 करोड़ रुपए और साल 2022-23 में 283.58 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है।
हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन (एचईसी) की स्थापना के लिए 1958 में रांची में 23 गांवों की 7,199.51 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया था। इन गांवों में रहने वाले हजारों किसान और आदिवासी परिवार बेदखल हुए थे। एचईसी की स्थापना मदर ऑफ ऑल इंडस्ट्री (मातृ उद्योग) के रूप में की गई थी। इसने पिछले साठ वर्षों के इतिहास में स्टील, सीमेंट, एल्युमीनियम, खनन, खनिज प्रसंस्करण, डिफेंस, इसरो, रेलवे, कोल सेक्टर सहित विभिन्न उद्योगों के लिए अनगिनत संख्या में भारी मशीनरी और उपकरणों का उत्पादन किया है।
समय के साथ कारखानों की मशीनों का नवीकरण न होने, मैनेजमेंट की अकुशलताओं, यूनियनों और मैनेजमेंट के बीच टकराव के चलते एचईसी के घाटे में जाने का सिलसिला शुरू हुआ और साल-दर-साल इसकी आर्थिक स्थिति चरमराती गई। हालांकि, इसके पुनरुद्धार की दिशा में केंद्र के स्तर पर कई बार विचार हुआ, लेकिन अब तक ठोस कदम नहीं उठाया जा सका।
वर्ष 2016 में, केंद्र सरकार ने नीति आयोग के सदस्य और डीआरडीओ के पूर्व सचिव डॉ. विजय कुमार सारस्वत की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक बहु-सदस्यीय कमेटी बनाई। इसने "आधुनिकीकरण और पुनरुद्धार योजना" के आधार पर एचईसी की संभावनाओं का विश्लेषण किया। सारस्वत समिति ने एचईसी के पुनरुद्धार की पुरजोर सिफारिश की। इसके संयंत्रों को आधुनिक स्वरूप देने, कंपनी के वर्किंग कैपिटल को सुनिश्चित करने के लिए बैंक गारंटी की प्रणाली शुरू करने, एक प्रबंध निदेशक और निदेशकों की तत्काल नियुक्ति करने की भी सिफारिश की गई थी।
--आईएएनएस
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