77th Death Anniversary: हिंदी सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के के घर पैसे की गड्डियां बैलगाड़ी में भरकर लाई जाती थीं
77th Death Anniversary: हिंदी सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के के घर पैसे की गड्डियां बैलगाड़ी में भरकर लाई जाती थीं
डिजिटल डेस्क (भोपाल)। 77 साल पहले 16 फऱवरी 1944 में हिंदी सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के का निधन हुआ था। तीन मई 1913 में "राजा हरिश्चंद्र" नाम की पहली भारतीय फीचर फिल्म रिलीज़ कर दादा साहब फाल्के ने इतिहास रचा था। दादा साहेब फाल्के का पूरा नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था। उनकी मौत के बाद दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड की शुरुआत हुई। इस अवॉर्ड को फिल्म जगत का सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है।
इस अवॉर्ड की शुरुआत भारत सरकार द्वारा 1969 में की गई थी। ये अवॉर्ड सूचना-प्रसारण मंत्रालय द्वारा दिया जाता है। - इस पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति को दस लाख रुपए, स्वर्ण कमल पदक व शॉल उपहार स्वरूप दिया जाता है। 2019 में राष्ट्रपति भवन में अमिताभ बच्चन को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।
हालांकि, दादा साहेब के पोते किरण फाल्के ने कुछ साल पहले एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि दादा जी की आर्थिक हालत अंतिम दिनों में बिलकुल भी ठीक नहीं थी। पोते किरण ने कहा था कि परिवार चाहता है कि दादा जी को भारत रत्न दिया जाए। पोते किरण ने कहा था दादा जी ने जीवन के अंतिम दिन बहुत मुश्किल में कांटे थे। एक बार किरण को दादा जी खत मिला, जिसमें लिखा था कि बेटा कुछ पैसे भेज दे, मेरी हालत ऐसी है कि जहर खाने के भी पैसे नहीं बचे हैं।
जानकारी के मुताबिक, अब दादा साहेब फाल्के के परिवार में उनकी बेटी की बेटी यानी नातिन उषा पाटनकर बची हैं। दादा साहेब फाल्के ने जब फिल्में बनानी शुरू की थीं तो बहुत अच्छे दिन भी देखे। ऊषा पाटनकर बताती हैं, “दादा साहेब की पत्नी यानी मेरी नानी बताया करती थीं कि फिल्मों से इतनी कमाई होती थी कि पैसे की गड्डियां बैलगाड़ी में भर-भर के लाई जाती थीं, जब हालत ख़राब हुई तो नानी अपने गहने बर्तन सब बेच डालती"।