Movie Review: हर एंगल से बेहतर है पीएम नरेंद्र मोदी, एक मोटिवेशनल स्टोरी का काम करेगी फिल्म
Movie Review: हर एंगल से बेहतर है पीएम नरेंद्र मोदी, एक मोटिवेशनल स्टोरी का काम करेगी फिल्म
डिजिटल डेस्क, मुम्बई। बॉलीवुड में इस समय बायोपिक फिल्मों का ट्रेंड चल रहा है। लोग इन बायोपिक को पसंद कर रहे हैं। बायोपिक की खास बात यह है कि यह किसी इंसान पर आधारित होती है और निर्देशक उसके अच्छे या बुरे पहलू को दिखाने की कोशिश करते हैं। निर्देशक और निर्माता की कढ़ी मेहनत के बाद आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक रिलीज हो चुकी है। फिल्म में विवेक आनंद ओबेरॉय, मनोज जोशी, प्रशांत नारायणन, जरीना वहाब, सुरेश ओबेरॉय, अंजन श्रीवास्तव, यतिन करयेकर, दर्शन कुमार और राजेंद्र गुप्ता मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म का निर्देशन उमंग कुमार ने किया है। संदीप सिंह ने इसे प्रोड्यूस किया है।
फिल्म की कहानी एक एक शख्स की पर आधारित है, जो अपना बचपन गरीबी में बिताता है। अपने जवानी के दिनों में वह मां का आर्शीवाद लेकर सन्यासी बन जाता है। अपने गुरु के कहने पर बस्ती में लौटा और अपनी ही पार्टी की अंदरूनी सियासत से जूझकर जननायक बना। अपने बालपन में नरेंद्र मोदी चीन सीमा पर जाते फौजियो को चाय मुफ्त पिलाता है, यही कहानी का पहला आधार है। फिर वह अपने गुरु को चाकू देते समय इसका दस्ता आगे करता है, तो यह जनहित की दूसरी धुरी बनती है।
एक बार जब गुजरात में सूखा पड़ जाता है, तब नरेंद्र मोदी खुदाई का जिम्मा लेकर बताता कि वोट के पीछे मत भागो, काम करो, वोट खुद चलकर आएगा। वह गुजरात के पहले किंगमेकर है, जिसकी शोहरत ने गांधीनगर ने दिल्ली तक में हलचल मचा दी। वहीं निर्देशक उमंग कुमार पहले ही मैरी कॉम और सरबजीत जैसी फिल्मों बनाकर अपना फैनबैस बना चुके थे। पीएम नरेंद्र मोदी उसी का एडवांस वर्जन है। वह सिनेमा बनाते है, डॉक्यूमेंट्री नहीं।
निर्देशक ने दर्शन कुमार को एक उत्प्रेरक की तरह इस्तेमाल किया है, जो मोदी को खत्म करने की साजिश रचने वालों का मोहरा है। फिल्म में रिश्तों पर ज्यादा फोकस किया गया है। शाह और मोदी की दोस्ती को जय वीरु की दोस्ती की तरह दिखाया है। फिल्म में बताया गया है कि बच्चों को विवेकानंद का साहित्य पढ़ने की सीख देने वाले माता-पिता को तब क्या करना चाहिए, जब उनका अपना बच्चा विवेकानंद जैसा बनने की ठान ले।
फिल्म में मां सबसे मजबूत धुरी है। वह हर उस पल में फिल्म में पीएम नरेंद्र मोदी को नया मोड़ देती हैं, जब मोदी के मन में विचारों का तूफान उमड़ रहा होता है। फिल्म में विवेक ओबेरॉय को नरेंद्र मोदी के किरदार में स्वीकार करने में थोड़ा वक्त लगता है। उसके बाद वे पर्दे पर नरेंद्र मोदी के तिलिस्म को जीवंत कर देते हैं। विवेक इस किरदार को बखूबी निभाने में कामयाब रहे। उनकी अदाकारी तालियों की हकदार है। मां के रूप में जरीना वहाब, शाह के रूप में मनोज जोशी और टीवी पत्रकार के रूप में दर्शन कुमार ने दमदार काम किया है और फिल्म को मजबूत बनाया है।
टेक्नीकली इस फिल्म में कोई कमी नहीं छोड़ी गई है। सुनिता राडिया ने इस बायोपिक में कैमरा घुमाते समय कुछ भी छूटने नहीं दिया। फिल्म की पटकथा और संवाद में हर्ष लिम्बाचिया और अनिरुद्ध चावला के साथ खुद विवेक ओबेरॉय ने भी योगदान दिया है। फिल्म में गाने ज्यादा नहीं हैं, लेकिन जहां भी हैं, वह फिल्म को क्लाइमेक्स की तरफ ले जाने में मदद करते हैं।
जो भी पीएम नरेंद्र मोदी को पसंद करता है, बेशक उसे यह फिल्म पसंद आएगी। फिल्म की कहानी काफी प्रेरणादायक है, जो दिखाता है कि मोदी जी किस तरह समर्पण और विश्वास के साथ 18 घंटे काम करते हैं। यह फिल्म सिर्फ बीजेपी समर्थकों और मोदी लवर्स के लिए हीं नहीं बल्कि हर उस आम इंसान के लिए देखना जरुरी है, जो अपनी जिंदगी में कुछ बेहतर करना चाहता है। यह फिल्म उसके लिए एक मोटिवेशन का काम करेगी।