क्या बीजेपी की चुनौतियों से पार पाएंगे कमलनाथ? एमपी में कांग्रेस की सरकार बनाने से पहले इन मुद्दों से होना होगा दो-चार
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश का हृदय कहे जाने वाले मध्य प्रदेश राज्य में भी इस साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। राजनीतिक लिहाज से यह राज्य सभी दलों के लिए बहुत ज्यादा मायने रखता है। छह महीने बाद होने वाले एमपी चुनाव के लिए प्रदेश की दो प्रमुख पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस अपनी-अपनी बिसात बिछाने में लगी हुई हैं। साथ ही कांग्रेस पार्टी की ओर से यह तय हो चुका है कि इस बार भी पार्टी की ओर से कमलनाथ ही सीएम फेस होंगे। इसके अलावा चुनावी वादों और प्रत्याशियों के चयन पर भी कमलनाथ का ही अंतिम फैसला होगा।
इधर राज्य की सियासत में काफी ज्यादा हलचल देखने को मिल रही है। जहां एक ओर शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में राज्य में लाडली लक्ष्मी योजना की शुरुआत की तो वहीं दूसरी तरफ कमलनाथ ने भी इसके जवाब में नारी सम्मान योजना की शुरुआत कर नई सियासी दांव-पेंच को जन्म देने का काम किया। 9 मई को छिंदवाड़ा में कांग्रेस नेता कमलनाथ ने ऐलान किया वह यहीं (छिंदवाड़ा) से चुनाव लड़ेंगे। लेकिन इन सभी दांव-पेंचों के अलावा कमलनाथ को दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए शायद यह काफी नहीं है। ऐसे में अगर कमलनाथ को राज्य में कांग्रेस की सरकार बनानी है तो उन्हें बीजेपी की चुनौतियों से पार पाना होगा। ऐसे में उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
कांग्रेस की अंदरूनी संकट
कांग्रेस में गुटबाजी की समस्या पुराने समय से ही चली आ रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद ऐसा लगा कि अब पार्टी को अंदरूनी संकटों से छुटकारा मिल गया है। लेकिन शायद यह संकट कांग्रेस पार्टी के साथ चलता ही जा रहा है। कुछ माह पहले कांग्रेस पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह राहुल कई बार पार्टी प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ पर सवाल उठा चुके हैं। हालांकि पार्टी नेतत्व के निर्देश के बाद ये दोनों नेता खामोश नजर आ रहे हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चुनाव के दौरान और टिकट बंटवारे के समय ये दोनों नेता पार्टी के लिए बखेड़ा खड़ा कर सकते हैं। इन सभी चुनौती को कमलनाथ किस तरह से हैंडल करेंगे यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की दोस्ती से पूरा प्रदेश वाकिफ है। लेकिन कमलनाथ दिग्विजय सिंह को दरकिनार करके वह नहीं चल सकते हैं।
मौदी मैजिक
किसी भी राज्य का चुनाव हो, बीजेपी उसके लिए पूरा ताकत झोक देती है। खास बात यह है कि चुनाव के दौरान पार्टी के छोटे कार्यकर्ताओं से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक बीजेपी को जिताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं। पार्टी के स्थानीय विधायकों और सांसदों के खिलाफ लोगों की नाराजगी पीएम मोदी के सामने फीका पड़ने लगता है। पीएम मोदी लगातार मध्य प्रदेश का दौरा कर रहे हैं। गौरतलब है कि पीएम मोदी के चेहरे पर ही पार्टी इस बार का चुनाव लड़ने वाली है। इसके लिए पार्टी अभी से अपनी रणनीति बना रही है। कांग्रेस के पास पीएम मोदी के मुकाबले में कोई बड़ा नेता नहीं है। जो कमलनाथ के लिए एक बड़ी चुनौती है। बीजेपी के नेताओं की कोशिश है कि आगामी विधानसभा चुनाव को पीएम मोदी बनाम कमलनाथ बनाया जाए। ऐसे में कमलनाथ को यह रणनीति बनानी होगी कि चुनाव शिवराज बनाम कमलनाथ हो, ना कि मोदी बनाम कमलनाथ।
शिवराज की लोकलुभावन वादे
कमलनाथ के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि सीएम शिवराज राज्य में लगातार लोकलुभावन वादे करते रहते हैं। कमलनाथ ने कई बार शिवराज सिंह पर तंज कसते हुए उन्हें घोषणावीर की उपाधि दी है। साथ ही वे उनकी घोषणाओं को चुनावी जुमला बताकर खारिज करते रहते हैं। लेकिन यह सच्चाई है कि शिवराज सिंह राज्य में अपने लोकलुभावन वादों के लिए भी जाने जाते हैं और वे इस तरह के वादे लगातार करते रहते हैं। कमलनाथ को इसकी काट जल्द से जल्द ढूंढना होगा। लेकिन कमलनाथ के सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि शिवराज अपने वादे को तत्काल प्रभाव से लागू कर जनता को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। लेकिन कमलनाथ केवल यह वादा कर रहे हैं कि राज्य में उनकी सरकार बनेगी तो वह अपने वादे को पूरा करेंगे। ऐसे में उन्हें जनता को विश्वास दिलाना होगा कि सरकार बनने पर उनके द्वारा किए गए वादें को वह जल्द से जल्द पूरा करेंगे।
हिंदुत्व कार्ड से परेशान कांग्रेस
बीजेपी हर चुनाव में हिंदुत्व का मुद्दा उठाकर एक बड़े जनाधार को आकर्षित करने की कोशिश करती है। यह बीजेपी के लिए चुनाव में तुरूप का इक्का साबित होती है। इस मुद्दों में जात-पात से उठाकर हिंदू धर्म के लोग बीजेपी को समर्थन देते हैं। हालांकि पिछले कुछ महीनों से कमलनाथ सॉफ्ट हिंदुत्व अवतार में नजर आ रहे हैं और जनता को सीधे तौर पर कम्युनिकेट करने की कोशिश में लगे हुए हैं। लेकिन बीजेपी उन्हें हिंदू-विरोधी बताने में लगे रहते हैं। कर्नाटक चुनाव में बजरंग दल के मुद्दें को लेकर बीजेपी ने लगातार कांग्रेस को घेरने की कोशिश की। जोकि कांग्रेस के लिए चुनाव से ठीक पहले परेशानी का सबब बना। ऐसे में कमलनाथ को चुनाव से पहले बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड से बचाना होगा। और यदि बीजेपी बीच चुनाव में हिंदुत्व कार्ड खेलती है तो उन्हें उसके लिए अभी से ही रणनीति तैयार करनी होगी।
शिवराज का ओबीसी चेहरा
शिवराज सिंह चौहान का बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का सबसे बड़ा कारण ओबीसी फेस होना है। राज्य में करीब 50 फीसदी लोग ओबीसी समुदाय से आते हैं और शिवराज के चेहरे के बदौलत बीजेपी के अधिकांश वोट ओबीसी के खाते में आते हैं। वहीं कमलनाथ की बात करें तो वह सवर्ण वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। बीजेपी के लिए प्लस प्वाइंट यह भी है कि कांग्रेस के पास राज्य में ओबीसी का कोई बड़ा नेता मौजूद नहीं है। जिसका राज्य के ओबीसी वर्ग पर खास प्रभाव हो। हालांकि कमलनाथ ने सीएम पद रहते हुए ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देकर इस वर्ग को कांग्रेस में शामिल करने की कोशिश की थी, लेकिन यह मुद्दा कानूनी दांव पेंच में उलझा हुआ है। यदि चुनाव के दौरान इसका कोई काट ढूंढने में वह सफल रहते हैं तो इससे राज्य में कांग्रेस का भविष्य तय होने में बड़ा योगदान रहेगा।
Created On :   10 May 2023 10:28 PM IST