यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की प्रक्रिया तेज, मोदी सरकार ने सुको में बतायी वजह

यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की प्रक्रिया तेज, मोदी सरकार ने सुको में बतायी वजह
  • यूनिफॉर्म सिविल कोड
  • 22 वां विधि आयोग गठित
  • 30 दिन में मांगी राय

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता को लाने की तैयारी तेज कर दी है। सरकार की ओर से गठित 22 वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर आम जनता और धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों से विचार विमर्श और राय मांगने का कार्य शुरु कर दिया है।

आपको बता दें ये पहली बार नहीं है जब यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कोई आयोग गठित किया हो, इससे पहले भी कमीशन गठित किए थे। केंद्र में पीएम मोदी के नेतृत्व में बनी बीजेपी सरकार में 2016 में पहली बार इसे लेकर विचार विमर्श की प्रक्रिया शुरू हुई थी। जबकि साल 2018 में 21 वें विधि आयोग ने जनता के साथ विचार विमर्श कर अपनी रिपोर्ट में इस प्रकार के कानून को लाने से मना कर दिया , आयोग ने कहा कि यूसीसी की जरूरत इस समय देश को नहीं है। लेकिन भले ही 21 वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता को लाने से इनकार कर दिया था ,लेकिन पारिवारिक कानून यानी फैमिली लॉ में सुधार की बात की थी। 21 वें आयोग की परामर्श रिपोर्ट को जारी हुए तीन साल से अधिक का वक्त बीत गया है। इसलिए अब विधि आयोग ने विषय की प्रासंगिकता, महत्व और तमाम अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए इस विषय पर नए सिरे से विचार-विमर्श करना उचित समझा है।

आपको बता दें समान नागरिक संहिता लागू करना बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा रहता है। हाल ही में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने समान नागरिक संहिता लाने का वादा किया था। जबकि उत्तराखंड इसे लाने की तैयारी में हैं।

22 वां विधि आयोग एक बार फिर बड़े पैमाने पर यूसीसी को लेकर जनता और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के विचारों को जानेगा। इसके लिए ये लोग नोटिस की तारीख से 30 दिनों के भीतर अपने विचार आयोग को प्रस्तुत कर सकते हैं। वहीं जरूरत पड़ने पर आयोग व्यक्तिगत सुनवाई के लिए बुला सकता है।

समान नागरिक संहिता में क्या है?

वर्तमान समय में यूनिफॉर्म सिविल कोड को भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून बनाने से जोड़ा जा रहा है। चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो। यानी हर धर्म, जाति, लिंग के लिए एक समान कानन। यूनिफॉर्म सिविल कोड में विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होने की बात कही जा रही है।

दिसंबर 2022 में तत्कालीन कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में कहा था कि समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने के प्रयास में राज्यों को उत्तराधिकार, विवाह और तलाक जैसे मुद्दों को तय करने वाले व्यक्तिगत कानून बनाने का अधिकार दिया गया है।

केंद्र सरकार ने टॉप कोर्ट में दायर अपने एक हलफनामे में कहा है कि देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है। सरकार ने इसके लिए संविधान के चौथे भाग में मौजूद राज्य के नीति निदेशक तत्वों का ब्यौरा दिया। आपको बता दें अनुच्छेद 44 में सभी नागरिकों के लिए उत्तराधिकार, संपत्ति अधिकार, शादी, तलाक और बच्चे की कस्टडी के बारे में समान कानून की अवधारणा है।

Created On :   15 Jun 2023 4:35 AM GMT

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