कर्नाटक चुनाव में लिंगायत समुदाय का प्रभाव, जानिए राज्य की राजनीति में क्या है इस समुदाय का प्रभाव?

कर्नाटक चुनाव में लिंगायत समुदाय का प्रभाव, जानिए राज्य की राजनीति में क्या है इस समुदाय का प्रभाव?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कर्नाटक में कल(बुधवार) विधानसभा चुनाव के लिए सभी मतदाता मतदान करेंगे। दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक का पूरा विधानसभा चुनाव जाति के आधार पर होता है। इस राज्य की राजनीति मुख्य रूप से लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय पर टिकी हुई है। ये दोनों समुदाय जिस पार्टी का साथ देते हैं, वहीं पार्टी कर्नाटक में राज करती है। हालांकि, यहां पर लिंगायत समुदाय सबसे बड़ा समुदाय है। जिसकी कुल आबादी लगभग 17 प्रतिशत है। इस समुदाय से कई बड़े नेता भी आते हैं, जो राज्य की राजनीति में चर्चाओं में बने रहते हैं। इनमें जगदीश शेट्टार और पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा जैसे कई बड़े नेता भी लिंगायत समाज से आते हैं। आइए जानते हैं क्या है लिंगायत समुदाय और इसका राज्य की राजनीति में प्रभाव? क्यों सभी पार्टियां चुनाव से पहले इस समुदाय को साधने में जुटी हैं?

कर्नाटक की राजनीति में लिंगायत का असर

साल 2018 के चुनाव की बात करें, तो अकेले लिंगायत समुदाय से 58 विधायकों ने जीत हासिल की थी। जिसमें 38 विधायक भाजपा,16 विधायक कांग्रेस और 4 विधायक जेडीएस के बने थे। आप विधायकों की संख्या से अंदाजा लगा सकते हैं कि लिंगायत समुदाय कर्नाटक की राजनीति के लिए कितना प्रभावशाली है। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय का दबदबा राज्य गठन के समय से ही बरकरार चला आ रहा है। लिंगायत समुदाय से राज्य में अब तक 8 मुख्यमंत्री बने हैं। यह सुमदाय करीब 110 सीटों पर सीधा अपना प्रभाव डालता है।

किस क्षेत्र में लिंगायत सबसे प्रभावशाली है?

बता दें कि, सबसे ज्यादा लिंगायत समाज कर्नाटक के कित्तूर क्षेत्र में रहता हैं। इस इलाके से लगभग 50 विधायक चुने जाते हैं। वर्तमान सीएम बसवराज बोम्मई भी इसी क्षेत्र के हैं, इनके अलावा और भी कई दिग्गज नेता यहां से आते हैं। यही कारण है कि, कित्तूर कर्नाटक के प्रत्येक विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाता है। कित्तूर क्षेत्र में सात जिले आते हैं, जिनमें विजयपुरा, धारावाड़, बागलकोट, गडग, हावेरी, बेलगावी और उत्तर कन्नड़ शामिल हैं। यहां लिंगायत समुदाय को लुभाने के लिए सभी दलों के दिग्गज नेता यहां पर रैली, चुनाव प्रचार, जनसभा और तरह -तरह के वादे कर रहे हैं। क्योंकि इनका जनाधार जिस दल के साथ खड़ा हो जाता है, उसका प्रभुत्व विधानसभा में साफ तौर पर देखा जा सकता है।

लिंगायत समुदाय के बड़े नेता

फिलहाल, इस समुदाय के सबसे बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा हैं, जो प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भी रहे हैं। इनके अलावा वर्तमान सीएम बसवराज बोम्मई भी इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। वहीं दिग्गज नेता जगदीश शेट्टार, केएस किरण कुमार और एचडी थम्मैया जैसे नेता भी लिंगायत समुदाय से नाता रखते हैं।

क्या है लिंगायत समुदाय?

हिन्दू धर्म मुख्य रूप से 6 संप्रदायों में बटा हुआ माना जाता है। वैदिक, शैव, वैष्णव, शाक्त, और निंरकारी। लिंगायत समुदाय को शैव संप्रदाय की उपशाखा वीरशैव का ही एक हिस्सा माना जाता है। शैव संप्रदाय से जुड़े और भी कई संप्रदाय हैं।

लिंगायत समुदाय वीरशैव संप्रदाय का एक हिस्सा है। शैव संप्रदाय में दो तरह के लोग आते हैं, एक वो जो साकार रूप से पूजा करते हैं और एक वे जो निराकार रूप अर्थात इष्टलिंग की पूजा करते हैं। वहीं लिंगायत समाज के लोग अपने शरीर पर इष्टलिंग या शिवलिंग धारण करते हैं। पहले लिंगायत समुदाय इसको निराकार शिव का लिंग मानते थे। लेकिन समय के बदलाव के साथ-साथ इनकी सोच में बदलाव आया है अब ये लोग इसे इष्टलिंग कहते हैं और इस समुदाय के सभी संन्यासी भगवा वस्त्र पहनते हैं।

किस क्षेत्र में लिंगायत समुदाय अधिक है?

लिंगायत समाज हमेशा से प्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका निभाता रहा है और लगभग हर प्रमुख राजनीतिक दल में इस समुदाय के लोग पाए जाते हैं। इसका मुख्य कारण यह भी है कि लिंगायत समुदाय के लोग पूरे प्रदेश में मौजूद हैं, खासकर राज्य के उत्तर और मध्य भागों में इस समुदाय के लोगों की बहुतायत देखने को मिलती है।

लिंगायतो पर किस पार्टी की है अच्छी पकड़?

इस समुदाय पर भाजपा की अच्छी पकड़ मानी जाती है। हालांकि, पार्टी ने 2011 में बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाकर इस समुदाय को नाराज कर दिया था। इसी नाराजगी को लेकर येदियुरप्पा ने खुद की पार्टी बनाई और चुनाव लड़ा। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस समुदाय के वीरेंद्र पाटिल को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था, तब से यह समुदाय कांग्रेस से खफा माना जाता है।

Created On :   9 May 2023 5:39 PM IST

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