कर्नाटक की हार के बाद बीजेपी के लिए बंद हुआ दक्षिण का द्वार! जिस राज्य में आरएसएस सक्रिय वहां भी बीजेपी के लिए जीत दूर की कौड़ी, जानिए और राज्यों में क्या है हाल?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 224 सीटों वाले कर्नाटक में विधानसभा चुनाव का ताजा रुझान साफ हो गया है कि राज्य में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है। अभी तक ( शाम 5.00 बजे तक) के आए नतीजों में कांग्रेस 101 सीटों पर जीत हासिल कर चुकी है 37 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। आंकड़े इसी अनुसार रहे तो कांग्रेस को 138 सीटों पर जीत मिल सकती है। वहीं सत्ताधारी पार्टी बीजेपी राज्य में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आ रही है। बीजेपी को यहां पर 62 सीटें मिलती हुई दिखाई दे रही है। इसके अलावा प्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी जेडीएस इस बार के चुनाव में कुछ खास कमाल नहीं कर पाई है। इस समय पार्टी 21 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। राज्य में अन्य 6 सीटों पर आगे चल रही है। इस बीच सवाल उठ रहा है कि क्या बीजेपी की सियासत दक्षिण भारत में खुलने से पहले ही बंद हो गई है? राजनीतिक जानकारों की माने तो बीजेपी को इस बार के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत मिलती तो दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में अगामी विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में पार्टी के हौसले बुलंद रहते।
पिछले साढ़े तीन दशकों से कर्नाटक में चली आ रही रोटी पलट चुनाव की परंपरा इस बार भी कायम रही है। यह राज्य बीजेपी के लिए राजनीतिक लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण राज्य था। यह प्रदेश बीजेपी के लिए इसलिए भी अहम हो जाता है क्योंकि दक्षिण भारत में यह एक ऐसा इकलौता राज्य था, जहां बीजेपी को किसी भी तरह सत्ता में आने का मौका मिला था। कर्नाटक से बीजेपी के लिए दक्षिण भारत के दूसरे राज्यों में सियासी गलियारा खुलने की उम्मीद थी, लेकिन कर्नाटक में पार्टी को हार सामना करना पड़ा है। अब साउथ के अन्य राज्यों में भी पार्टी के लिए सियासी मुश्किलें खड़ी हो सकती है।
बीजेपी की बढ़ी मुश्किलें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी जब से केंद्र में सरकार बनाई है तब से ही पार्टी अलग-अलग राज्यों में या तो अकेले या फिर एनडीए गठबंधन के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही है। लेकिन बीजेपी अभी दक्षिण भारत के राज्यों में अपना परचम नहीं लहरा पाई है। ऐसे में कर्नाटक की हार से दक्षिण भारत में बीजेपी को अभी लंबा इंतजार करना पड़ सकता है।
अगर कर्नाटक को छोड़ दें तो दक्षिण भारत के किसी भी राज्य में बीजेपी की सरकार नहीं थी। साउथ के आंध्र प्रदेश, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और तेलंगाना में बीजेपी अभी तक खुद को स्थापित नहीं कर पाई है। दक्षिण भारत के ये छह राज्यों में लोकसभा की कुल 130 सीटें आती हैं, जो कुल लोकसभा सीटों का 25 फीसदी है। इस हिसाब से भी साउथ के ये सभी राज्य राजनीतिक लिहाज से भी काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है।
बीजेपी कर्नाटक का विधानसभा चुनाव जीतकर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भी साउथ के अन्य पांच राज्यों को सियासी संदेश देने काम करती। इसके अलावा कर्नाटक विधानसभा चुनाव के जीत के जरिए पार्टी को दक्षिण के राज्यों में पैर पसराने में भी मदद मिलती। यही वजह है कि बीजेपी दक्षिण में भारतीय संस्कृतिवाद का सहारा ले रही थी, पार्टी ने हाल ही में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू के राज्यों की जनता को काशी भ्रमण कराया था और वहां की जनता को साधने की कोशिश की थी।
कर्नाटक
बीजेपी के उदय के बाद कर्नाटक ही दक्षिण भारत का एक मात्र ऐसा राज्य रहा है, जहां पार्टी ने अपने दम पर सरकार बनाने का काम किया था। यहां पर बीजेपी का प्रर्दशन न केवल पीक पर रहा, बल्कि 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को राज्य में कुल वोटर शेयर से आधे से अधिक का समर्थन मिला था। 2008 में बीजेपी कर्नाटक में पहली बार सरकार में आई थी। इस वक्त बीजेपी बीएस येदियुरप्पा की अगुवाई में कर्नाटक में जेडीएस की मदद से अपनी सरकार बनाई थी।
जिसके बाद साल 2013 में येदियुरप्पा बीजेपी से अलग हो गए थे। जिसके चलते बीजेपी को कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। उस दौरान बीजेपी का वोट शेयर गिरकर 20 फीसदी रह गया था। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 20 फीसदी से बढ़कर 43 फीसदी हो गई। और बीजेपी ने राज्य की 28 लोकसभा सीटों में से 17 पर जीत दर्ज की थी। लेकिन साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर एक बार फिर 7 फीसदी गिर गया। लेकिन, खास बात यह रही कि बीजेपी ने इस दौरान राज्य में 224 विधानसभा सीटों में 104 पर अपनी जीत दर्ज की। और बीजेपी उस दौरान राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी।
वहीं अगले साल यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 51 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे जबकि जिन सीटों पर पार्टी ने लोकसभा चुनाव लड़ा था। वहां पर पार्टी का वोट शेयर 53 फीसदी रहा था। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने 28 में से 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कर्नाटक का चुनाव न केवल बीजेपी के लिए राजनीतिक लिहाज से काफी ज्यादा मायने रखता था, बल्कि मिशन-साउथ के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण था, लेकिन पार्टी को विधानसभा चुनाव से बहुत बड़ा झटका लगा है। इस बार के चुनाव में बीजेपी की ओर से पीएम मोदी और राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने मोर्चा संभाल रखा था। जहां मोदी ने 19 रैलियां और 6 रोड शो करके राज्य का सियासी माहौल बीजेपी की ओर करने की पूरजोर कोशिश की थी। वहीं अमित शाह ने एक के बाद एक दर्जन से ज्यादा रैलियां की थी। इसके बावजूद भी पार्टी को यहां पर जीत नहीं मिली। कर्नाटक की हार बीजेपी की लगातार जीत पर ब्रेक के तौर पर देखा जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस हार से बीजेपी के मिशन साउथ की उम्मीदों पर भी झटका लगा है।
आंध्र प्रदेश
दक्षिण भारत राज्य आंध्र प्रदेश में 1990 के दशक में बीजेपी को टीडीपी के रूप में एक कद्दावर नेता चंद्रबाबू नायडू का साथ मिला। जिन्होंने 90 के दशक में अटल बिहारी बाजपेयी को खुलकर सपोर्ट किया था। और इस दौरान टीडीपी एनडीए का भी हिस्सा रही थी। टीडीपी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान भी एनडीए गठबंधन का हिस्सा रही थी।
पिछले कुछ सालों में आंध्र प्रदेश के चुनावों की बात करें तो यहां का लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव एक साथ हुआ है। इस दौरान प्रदेश में बीजेपी को बहुत कम वोट मिले। लेकिन टीडीपी के साथ गठबंधन की वजह से बीजेपी ने कम सीटों पर चुनाव लड़े लेकिन बीजेपी 2014 के विधानसभा चुनाव में चार और लोकसभा में दो सीटें जीती। इस दौरान पार्टी का वोट शेयर कम्रश: 2 और 7 फीसदी रहा।
इसके बाद 2019 के विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बीजेपी एक बार फिर आंध्र प्रदेश में कुछ खास कमाल नहीं कर पाई। इस बार पार्टी ने दोनों ही चुनाव में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया और दोनों ही चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर एक से फीसदी से कम रहा। इन दोनों चुनावों में बीजेपी प्रदेश में खाता भी खोलने में असमर्थ रही थी।
आंध्र प्रदेश में कई सालों तक बीजेपी और टीडीपी गठबंधन में रही लेकिन इसका फायदा बीजेपी को न के बराबर हुआ है। आंकड़ों से भी ऐसा ही लगता है कि गठबंधन में रहने के बाद भी बीजेपी आंध्र में अपना जनाधार बढ़ाने में सफलता हासिल नहीं की। अब देखना दिलचस्प होगा कि राज्य में बीजेपी एक बार फिर अकेले चुनावी मैदान में उतरेगी या फिर पार्टी अपनी स्थिति को ठीक करने के लिए किसी के साथ गठबंधन का हाथ आगे बढ़ाएगी।
तेलंगाना
साल 2014 में अलग राज्य बने तेलंगाना में भी इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। यह राज्य आंध्र प्रदेश से भाषाई विवाद के चलते 2014 में अलग हुआ था। तेलंगाना के मौजूदा मुख्यमंत्री केसी राव के अगुवाई में तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (अब भारत राष्ट्रीय समिति) लंबे समय से इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही थी। जब से यह राज्य बना है तब से ही केसी राव ही राज्य की सत्ता संभाल रहे हैं। आंध्र प्रदेश के जैसा ही तेलंगाना में बीजेपी की भूमिका न के बराबर है। नया राज्य बनने के बाद भी बीजेपी की पकड़ यहां पर काफी ज्यादा कमजोर है। यहां पार्टी का परफॉर्मेंस आंध्र प्रदेश की तरह ही है। 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 7 फीसदी और लोकसभा चुनाव में पार्टी का वोट परसेंटेज 10 फीसदी रहा है। इस दौरान बीजेपी का टीडीपी से गठबंधन रहा है। लेकिन इसके बाद बीजेपी और टीडीपी गठबंधन से अलग हो गई।
जिसके बाद भी 2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी कुछ खास कमाल नहीं कर पाई। इस दौरान बीजेपी ने राज्य में अकेले चुनाव लड़ा था। 2018 के चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत महज सात फीसदी था। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 19 फीसदी हो गया था। इसके बाद राज्य में बीजेपी की परफॉर्मेंस में लगातार सुधार देखने को मिला। साल 2020 में हैदराबाद में हुए नगर निगम चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन राजनीतिक पंड़ितों को भी चौंकाने का काम किया। नगर निगम चुनाव में पार्टी ने न केवल अच्छे खासे वोट बटोरे थे बल्कि वोट शेयर और सीट शेयरिंग में भी पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी।
केरल
इस राज्य में वामपंथी गठबंधन और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बारी-बारी से आती रही है। लेकिन यह सिलसिला 2021 में बदल गया, जब सत्तारूढ़ वामपंथी मोर्चा ने अपनी सरकार बचाने में कामयाबी हासिल की। केरल में भले ही आरएसएस की पकड़ मजबूत रही हो, लेकिन राज्य में पार्टी का दबदबा कुछ खास नहीं रहा है। 2014 से राज्य के बीते चार चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर 10 से 13 फीसदी के आस-पास रहा है। 2019 के आम चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 13 फीसदी रहा था। वहीं 2021 के केरल विधानसभा चुनाव में पार्टी का वोट शेयर 11 फीसदी रहा है। जोकि पिछले केरल विधानसभा चुनाव 2016 से दो फीसदी कम यानी उस वक्त पार्टी का वोट शेयर 13 फीसदी था।
हालांकि पार्टी यहां पर अपना जनाधार बढ़ाने के लिए पूरी कोशिश कर रही है। बता दें कि, यहां पर वे सभी आधार मौजूद है जो बीजेपी को राज्य में प्रमुख पार्टी का तमगा दिलाने में मदद कर सकती है। जैसे कि यहां पर 50 फीसदी से ज्यादा लोग अल्पसंख्यक वर्ग ( ईसाई और मुस्लिम) से आते हैं। साथ ही राज्य में आरएसएस का कैडर भी मजबूत स्थिति में है। इन सभी के आलावा लेफ्ट के तौर पर वैचारिक प्रतिद्वंदी के रूप में बीजेपी एक स्थाई पार्टी भी है। लेकिन तब भी बीजेपी यहां कुछ खास कामयाबी हासिल नहीं कर सकी है। हालांकि, राज्य में बीजेपी लगातार अपने सियासी पकड़ को मजबूत करने के लिए ईसाई समुदाय पर फोकस कर रही है।
तमिलनाडु
इन सभी दक्षिण राज्यों के अलावा तमिलनाडु में भी बीजेपी की पकड़ काफी ज्यादा कमजोर है। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री और एआईएडीएमके नेता जयललिता उन क्षेत्रीय नेताओं में से एक थीं। 90 के दशक में उन्होंने एनडीए गठबंधन में शामिल होकर बीजेपी का समर्थन किया था। बीते एक दशक में तमिलनाडु में बीजेपी का वोट शेयर महज 3 से 5 फीसदी के आस-पास रहा है। राज्य में बीजेपी का सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत 2014 के आम चुनाव में था, जब पार्टी ने तमिलनाडु में सबसे अधिक पांच फीसदी से थोड़ा अधिक वोट हासिल किया था। खास बात यह है कि इस दौरान पार्टी को एक सीट हाथ लगी थी।
2016 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव की बात है जब बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ते हुए राज्य की कुल 234 विधानसभा सीटों में से 189 पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन पार्टी एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई। 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एआईएडीएमके के साथ मिलकर कर चुनाव लड़ा था। लेकिन जिन सीटों पर बीजेपी ने चुनाव लड़ा था, वहां उसे 29 फीसदी वोट ही हासिल हुआ और पार्टी इस दौरान भी खाता नहीं खोल पाई।
2021 के चुनाव में बीजेपी एक बार फिर एआईएडीएमके के साथ चुनावी मैदान में थी। इस दौरान गठबंधन की ओर से बीजेपी ने 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जिसमें पार्टी ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस दौरान पार्टी ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा था, वहां पार्टी का वोट शेयर 34 फीसदी रहा।
पुडुचेरी
30 विधानसभा सीटों वाला पुडुचेरी देश का एक छोटा सा केंद्रशासित प्रदेश हैं। यहां की भी राजनीति में बीजेपी का दबदबा न के बराबर है। साल 2021 के पुडुचेरी विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी का यहां पर वोट शेयर 14 फीसदी रहा था।
इस दौरान बीजेपी ने पुडुचेरी में एनआर कांग्रेस और एआईएडीएमके के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। तब गठबंधन की ओर से बीजेपी ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जिसमें से बीजेपी ने छह सीटों पर जीत दर्ज की थी। तब पार्टी ने अपनी सीट पर 45 फीसदी वोट हासिल किए थे।
Created On :   13 May 2023 1:53 PM GMT