धमकी..: मुंह खोला तो धीरज का बांध टूट जाएगा
भूपालपल्ली (तेलंगाना) से संजय देशमुख । महाराष्ट्र के गड़चिरोली जिले की सिरोंचा तहसील अंतर्गत क्षेत्र के पोचमपल्ली गांव में रहने वाले महेश राजाया कोतपल्ली और तेलंगाना-महाराष्ट्र सीमा के अंतिम गांव आंबडपल्ली निवासी जोगेश्वर राव का दर्द एक समान है। विकास के नाम पर जमीन देने वाले दोनों को विकास और प्रगति जैसे शब्द अब अभिशाप प्रतीत हो रहे हैं। महेश ने दो एकड़ और जोगेश्वर ने 4 एकड़ खेती तेलंगाना सरकार की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षी मेडीगड्डा सिंचाई परियोजना के लिए दी है। सोचा कि इस योजना से वे खुशहाल और समृध्द होंगे। लेकिन बदले में बेबसी और निराशा मिली। महेश और जोगेश्वर जैसे किसानों के दुख में दोनों राज्यों के सैंकड़ों किसान बराबरी से शामिल हैं। महाराष्ट्र सीमा की 7 हजार हेक्टेयर जमीन तथा तेलंगाना सीमा पर बसे महादेवपुरम मंडल अंतर्गत करीब 15 हजार हेक्टेयर से अधिक की खेती पिछले तीन साल से बांध के बैकवाटर के कारण पानी में डूब रही है और सैंकड़ों किसानों के पास तेलंगाना सरकार को कोसने के अलावा कोई चारा नहीं है। किसानों ने कहा, मुंह खोला तो हमारे धीरज का बांध टूट जाएगा।
12 लाख का एग्रीमेंट, डेढ़ लाख बिचौलियों ने ही डकार लिए : महाराष्ट्र से पौन घंटे की दूरी पर तेलंगाना की मेडीगड्डा सिंचाई परियोजना है। बांध से सटकर महाराष्ट्र की सीमा में पहला गांव पोचमपल्ली है। पोचमपल्ली सागौन तस्करी के लिए कुख्यात है। गोदावरी नदी से नाव के सहारे सागौन को उस पार यानी तेलंगाना भेजा जाता है। कुछ साल तक तस्करों का इतना खौफ था कि पुलिस-प्रशासन और वन विभाग भी गांव में हमले के डर से नहीं आते थे। गांव में 450 मकान हैं, उनमें से 180 मकान बांध से निकलने वाले पानी की भेंट चढ़ चुके हैं। पहले साल दस हजार रुपए मुआवजा मिला। दो वर्ष से सरकारी आश्वासन पर आस लगाए बैठे हैं। यहां के लोग सरकारी और गैरसरकारी ऐसी दोनों ही व्यवस्था के हाथों ठगे जा रहे हैं। बांध निर्माण के लिए जमीन देने उन पर दबाव बनाया गया। नहीं देने पर पुलिस, कोर्ट-कचहरी में घसीटने की धमकी दी गई। स्थानीय निवासी समाया पोचम माडेम, अब्दुल अजीम ने बताया कि 12 लाख रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से एग्रीमेंट किया गया। हाथ में थमाए, 10 लाख 50 हजार रुपए। उसमें से भी डेढ़ लाख रुपए बिचौलिये ने डकार लिए। बैकवाटर से हुए नुकसान भरपाई की रकम दिलवाने के नाम पर तहसील कार्यालय के बाबू ने पहले ही 500 रुपए ले लिए।
मेडीगड्डा बैरेज के निगलने का डर : बताते हैं बांध के दूसरी ओर की कहानी। इस परियोजना में दो राज्यों को जोड़ने वाला एक किलोमीटर लंबा पुल है। लेकिन बांध के 20 खंभों में दरारें आने के बाद आवाजाही बंद कर दी गई है। सिंरोचा से करीब पचास किमी दूरी तय करने के बाद तेलंगाना के दूसरे हिस्से में पहुंचा जा सकता है। पालीमेला मंडल में पेद्दमपेटा, लेनकलागड्डा, पारीकेना, पालीमेला, सरवाइपेटा, भुर्गुड्डेम, दममुरु, नीलमपेल्ली और मुकुनुरु और महादेवपुर मंडल के सुराअरम, बैंगलूर, एलकेश्वरम, बम्हापुर, महादेवपुर, लेंकलगडडा, सरवाईपेठा, गांव मेडीगड्डा बैरेज के निचले हिस्से में बसे हुए हैं। सभी गांवों को डर है कि अगर भविष्य में कोई भी अनहोनी हुई तो मेडीगड्डा बैरेज उन्हें एक बार में ही 'निगल' सकता है। यह गांव मंथनी, और भूपालपल्ली विधानसभा क्षेत्र में आते हैं।
चुनाव हो रहा है पर बात करना मना है : मेडीगड्डा बैरेज के खंभों में दरारें आने की खबर सुनकर गांवों के हजारों लोगों की रातों की नींद हराम हो गई है। इस बारे में बात करने पर लोग बड़ी मुश्किल से तैयार हो रहे हैं। हमारे साथी जो दुभाषी के तौर पर हमारे साथ हैं, को एक किसान ने तेलुगू में बताया कि मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) के लोगों ने मेडीगड्डा परियोजना पर बात नहीं करने की धमकी दी है। सुरारम गांव के रमेश रेड्डी, मुलकल मैल्यया, बागुला बाप रेड्डी, सला रेड्डी, मानी गुडसेला इन किसानों ने हिम्मत करके बताया कि सुंदिला, अन्नारम, और मेडीगड्डा बैरेज के कारण किसानों के खेत जलमग्न हो रहे हैं। कुछ किसानों ने सीधे सरकार को जमीन देने का विरोध किया तो बिचौलियों के माध्यम से उन्हें खरीदा गया। गांवों में इस बात पर चर्चा हो रही है कि भविष्य में कोई भी अनहोनी होने पर निचले हिस्से में बसे गांवों को खतरा हो सकता है। नियमित खेत जलमग्न होने के कारण उन्हें अपनी भूमि पर खेती करना चुनौतीपूर्ण लगता है। दूसरी ओर तेलंगाना सरकार इस परियोजना से सिंचित क्षेत्र कैसे बढ़ा, इसे पोस्टरों के माध्यम से बता रही है।
7 हजार हेक्टेयर जमीन जलमग्न : महाराष्ट्र सीमा पर बसे गांवों में 1400 हेक्टेयर जमीन मेडीगड्डा सिंचाई परियोजना के बैकवाटर के कारण प्रभावित हुई है। पिछले वर्ष 7 हजार हेक्टेयर जमीन को नुकसान पहुंचा था। किसानों को नुकसान भरपाई देने के लिए सरकार के पास प्रस्ताव भेजा गया है। लेकिन अभी तक राशि नहीं मिली है। -जीतेंद्र शिकतोडे, तहसीलदार, सिंरोचा
Created On :   24 Nov 2023 9:08 AM GMT