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विदर्भ की काशी ‘मार्कंडा देवस्थान’ उपेक्षा का शिकार
अयाज शेख | चामोर्शी (गड़चिरोली)। महाराष्ट्र राज्य के पूर्वी विदर्भ में काशी के रूप में परिचित चामोर्शी तहसील का मार्कंडा देवस्थान अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। केंद्र के पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर के जीर्णोद्धार का जिम्मा उठाया है। लेकिन वर्ष 2015 से जीर्णोद्धार का कार्य पूर्ण नहीं होने से समूचे प्रदेश से यहां पहुंच रहे श्रद्धालुओं को निराशा का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में राज्य के तत्कालीन ठाकरे सरकार ने राज्य के 8 प्राचीन मंदिरों के जतन, संवर्धन और पुनर्वसन करने का निर्णय लिया था। इस निर्णय के तहत मार्कंडा देवस्थान का चयन कर इस कार्य के लिए 99 करोड़ 11 लाख रुपए की निधि मंजूर की गयी थी। लेकिन एक वर्ष की समयावधि होने के बाद भी निधि मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए उपलब्ध नहीं हो पायी है। मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष गजानन भांडेकर और उनकी टीम इस मंदिर के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए वर्षों से संघर्ष कर रही है। बावजूद इसके पुरातन मार्कंडा देवस्थान के जीर्णोद्धार का मार्ग खुल नहीं पाया है।
उल्लेखनीय है कि, उत्तरप्रदेश के वाराणसी स्थित कांशी में उत्तर वाहिनी गंगा नदी है। ठीक उसी तरह चामोर्शी तहसील के मार्कंडा देवस्थान में भी उत्तर वाहिनी वैनगंगा नदी है। इसी कारण मार्कंडा देवस्थान को विदर्भ के काशी के रूप पहचाना जाता है। जानकारों के मुताबिक पुरातन काल से यहां मंदिर है। वर्तमान में मार्कंडा देवस्थान में कुल 18 मंदिर हैं, जिसमें प्रमुखता से मार्कंड ऋषि, मृकंड ऋषि, यम, शंकर, हनुमान आदि मंदिरों का समावेश है। चंद्रपुर के संशोधक जी. बी. देगलुरकर के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में हुआ है। भारतीय संस्कृति में नदियों को काफी महत्व है। इसी कारण इस तरह के पवित्र स्थलों को तीर्थक्षेत्र के रूप में भी पहचाना जाता है। मार्कंडा देवस्थान से सटकर उत्तर वाहिनी वैनगंगा नदी होने से इस मंदिर को काफी महत्व प्राप्त हुआ है। यह मंदिर ठीक खजुराहो मंदिर की तरह होने से यहां पर्यटक भी आकर्षित होते हंै। यह मंदिर काफी पुरातन होने के कारण वर्तमान में इसकी अवस्था जर्जर हाे गयी है। मुख्य मंदिर पर आकाशीय बिजली गिरने से छत को काफी नुकसान पहुंचा था। इस बात को गंभीरता से लेते हुए भारतीय पुरातत्व विभाग ने वर्ष 2015 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करने का फैसला लिया। शुरुआती 2 महीनों तक विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों ने यहां पहुंचकर मरम्मत का कार्य आरंभ किया।
विशिष्ट प्रकार के रसायन से मंदिर के पत्थरों को साफ कर मंदिर के टीले की मरम्मत की गयी। इसी दौरान पुरातत्व विभाग की अधीक्षक नंदिनी साहू का अन्य जगह तबादला हाेने से एकाएक मरम्मत का कार्य बंद कर दिया गया। करीब 2 वर्ष तक यह कार्य बंद रहने के बाद रायपुर के पुरातत्व विभाग के अधीक्षक पर मंदिर के जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी सौंपी गयी। लेकिन 7 वर्ष बाद भी जीर्णोद्धार का कार्य पूर्ण नहीं हो पाया। इस मंदिर में महािशवरात्रि के दौरान करीब 10 दिनों के विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। मंत्रोपचार के साथ भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चा की जाती है। साथ ही सावन मास के दौरान भी यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। सालभर में लाखों की संख्या में यहां श्रद्धालु पहुंचते हैं। लेकिन श्रद्घालुओं के लिए यहां किसी तरह की व्यवस्था नहीं है। मंदिर का जीर्णोद्धार का काम पूरा नहीं होने से श्रद्धालुओं को भी निराशा का सामना करना पड़ रहा है। पुरातन धरोहर को संजोने के लिए मार्कँंडा देवस्थान जैसे मंदिराें का जीर्णोद्धार करने की आवश्यकता महसूस होने लगी है।
ट्रस्ट निरंतर कर रहा संघर्ष
मार्कंडा देवस्थान मंदिर में ट्रस्ट का गठन किया गया है। इस ट्रस्ट में अध्यक्ष के रूप में गजानन भांडेकर कार्यरत है। मंदिर के जीर्णोद्धार की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग पर होने और यह कार्य पूरी तरह ठप होने के कारण भांडेकर ने पिछले 7 वर्ष की अवधि में मरम्मत कार्य के लिए अपना संघर्ष निरंतर रूप से जारी रखा है। उन्होंने अब तक इस कार्य के लिए राज्य के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी, केंद्रीय मंत्री कृष्णा रेड्डी, राज्य के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, सांसद अशोक नेते, विधायक डा. देवराव होली, वनमंत्री सुधीर मुनगंटीवार, पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री हंसराज अहिर से निरंतर पत्र व्यवहार किया है। बावजूद इसके उनके निवेदन पर अब तक गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया। फिर भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी मानकर गजानन भांडेकर मंदिर जीर्णोद्धार के लिए अपनी टीम के साथ लगातार संघर्ष कर रहे हैं।
बॉक्स के लिए..
Created On :   1 Nov 2022 3:19 PM IST