भारतीय विश्वविद्यालयों में तत्काल टीकाकरण की आवश्यकता, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने दिया सुझाव

Urgent Immunization Needed in Indian Universities
भारतीय विश्वविद्यालयों में तत्काल टीकाकरण की आवश्यकता, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने दिया सुझाव
भारतीय विश्वविद्यालयों में तत्काल टीकाकरण की आवश्यकता, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने दिया सुझाव

डिजिटल डेस्क, भोपाल। देश भर के विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा संस्थान अब छात्रों और अध्यापकों को कैंपस में वापस लाने की तैयारी कर रहे हैं। दूसरी तरफ देश भर में कोविड-19 मामलों में हो रही तेज वृद्धि चिंता का विषय है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, प्रति सप्ताह होने वाले नए संक्रमणों की गिनती इस सप्ताह पहली बार एक लाख का आंकड़ा पार कर गई है। अब पहले की तुलना में अधिक लोग संक्रमित हो रहे हैं और वह भी पहले से भी तेज दर से। स्थिति को सामान्य करने के लिए चुने गए समूहों को लक्षित करने वाले टीकाकरण रोलआउट रणनीतियों को सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयासों के साथ तेजी से विस्तारित किया जाना चाहिए। 

प्रधानमंत्री को लिखे हाल ही के एक पत्र में, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सुझाव दिया है कि 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों के लिए टीकाकरण की अनुमति दी जानी चाहिए। भारत में कैंसर, मधुमेह और तपेदिक सहित कोमोर्बिडिटी वाले युवाओं का सबसे अधिक अनुपात है। भारत में कोविड -19 से होने वाली मौतों का एक बड़ा हिस्सा कोमोर्बिडिटी के कारण हुआ है, इसलिए विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों में युवा लोगों को टीकाकरण में प्राथमिकता देने पर जोर देना चाहिए।

उच्च शिक्षा संस्थानों में सामूहिक टीकाकरण में छात्रों, फैकल्टी और कर्मचारियों को शामिल किए जाने का मामला वरीयता के बगैर संभव नहीं है। अमेरिका स्थित कॉर्नेल विश्वविद्यालय का लक्ष्य कैम्पस में लौटने वाले छात्रों के लिए टीकाकरण की आवश्यकता पर जोर देना है, जो न केवल अकादमिक निरंतरता को बहाल करने पर सीधा सकारात्मक प्रभाव डालता है, बल्कि कई मामलों में सुपर स्प्रेडर्स के रूप में उच्च जोखिम वाले लक्षणहीन संचरण को भी रोकता है। कई छात्रों के लिए विश्वविद्यालय का जीवन औपचारिक शैक्षणिक यात्रा का अंतिम पड़ाव होता है, लेकिन अभी 15 से 25 वर्ष के लगभग 20 करोड़ युवा भारतीयों को भविष्य के लिए तैयार करना चुनौतीपूर्ण और अनिश्चित है। ऑन-कैंपस लनिर्ंग पारंपरिक अनुभवजन्य पठन पाठन और सह-पाठ्येतर गतिविधियों की बदौलत श्रेष्ठतर अनुभव है जिसे वर्चुअली दोहराना असंभव है। कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए इनमें से कुछ कैंपस गतिविधियों को फिर से डिजाइन करना होगा।

2020 में हालांकि कुछ उच्च शिक्षा संस्थानों ने अकादमिक निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल सुधारों की शुरूआत की, लेकिन कई संस्थानों को मोटे तौर पर दो प्रमुख बाधाओं के बीच मौजूदा चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

सीमित इंफ्रास्ट्रक्चर
उच्च स्तरीय सार्वजनिक और निजी उच्च शिक्षा संस्थान कई पहलों के माध्यम से शिक्षा मंत्रालय द्वारा समर्थित अकादमिक निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल परिवर्तन के लिए गवर्नेंस और इंफ्रास्ट्रक्च र क्षमता का निर्माण करने में सक्षम थे। इस संबंध में स्वयम का यहां विशेष रूप से उल्लेख करना जरूरी है। हालांकि, कम इंटरनेट पैठ और सीमित ऊर्जा और टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्च र ने खासकर ग्रामीण भारत में विश्वविद्यालयों और छात्रों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। भारत में डिजिटल विभाजन वास्तविक और पर्याप्त है और 5 से 24 वर्ष की आयु के व्यक्तियों वाले 90 प्रतिशत घरों में इंटरनेट के साथ कंप्यूटर की पहुंच नहीं होना नकारात्मक प्रभाव डालता है।

लाचार वर्चुअलाइजेशन
कई संस्थानों ने शैक्षणिक नवाचारों और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके वर्चुअल दुनिया में कैम्पसों के भौतिक अनुभव को रेप्लिकेट किया है। हालांकि, भारत के सभी विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन क्षेत्र में ऐसा करने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं हो सकते हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए डिजिटल डिवाइड को खत्म करने और सभी संस्थानों में एक समग्र शैक्षणिक अनुभव प्रदान करने की आवश्यकता है। हमारे सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयासों और टीकाकरण रणनीतियों को इस महत्वपूर्ण विषमता को पाटने में भारी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।

1 अप्रैल 2021 तक कोविन डैशबोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, सरकार के 400 मिलियन डोज के लक्ष्य की तुलना में, हमने उस आंकड़े का 20 प्रतिशत से भी कम हासिल किया है। इसके लिए बड़े लॉजिस्टिकल, परिचालन और मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं। इस स्तर पर, उन्नत बुनियादी ढांचे और कोविड-19 प्रोटोकॉल के साथ विश्वविद्यालय परिसरों को फिर से शुरू करने की संभावना पर विचार किया जा सकता है, लेकिन अत्यधिक जोखिम और लॉजिस्टिकल जटिलताओं के दो चिंताओं को ध्यान में रखना चाहिए।

सबसे पहले, विश्वविद्यालय में विभिन्न जनसांख्यिकीय समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों के सदस्यों की बड़ी संख्या होती है। चूंकि अधिकांश परिसरों का सार सामाजिक मेलजोल को बढ़ावा देना है, इसलिए उनके ‘सामान्य’ कामकाज से भी संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। हालांकि भिन्न संस्थानों में जोखिम का दायरा अलग-अलग है, पर डे स्कॉलरों और पूरी तरह से आवासीय परिसरों वाले परिसरों दोनो का परिचालन जोखिम से भरा है। इसलिए पूर्ण आवासीय परिसरों के टीकाकरण की रणनीति में उन बातों को शामिल किया जाना चाहिए, जो प्रसार को कम करने और उनके लनिर्ंग के अनुभव को फिर से जीवंत करने में मदद कर सकें।

दूसरा, कैम्पस को फिर से खोलने से कैम्पस में स्वास्थ्य और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जटिल लॉजिस्टिक कार्यान्वयन अपरिहार्य होगा। हालांकि, केवल कुछ संस्थान ही पिछले एक साल में बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के मामले में भाग्यशाली रहे हैं। इसके अलावा, सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क के मानदंडों को भी लागू किया जा सकता है, और सभी प्रोटोकॉल का पालन करने की कठोरता को बनाए रखना भी अनिवार्य होगा। कॉरपोरेट संगठनों की तुलना में जहां ऐसे मानदंडों और प्रोटोकॉल को लागू करना आसान है, हमें विश्वविद्यालयों में भी इन्हें लागू करने की चुनौतियों से सावधान रहना चाहिए।

आगे का रास्ता
ई सुप्रसिद्ध भारतीय विश्वविद्यालयों में फिजिकल कक्षाओं के शुरू होने पर कोविड-19 मामलों में हाल ही में हुई तीव्र वृद्धि, इन्हें फिर से खोलने से पहले टीकाकरण के महत्व को दर्शाता है। विश्वविद्यालय के संकाय और कर्मचारियों के साथ उच्च शिक्षा में नामांकित 37 मिलियन से अधिक छात्र, वह संख्या है जिसे विशेष टीकाकरण अभियान में शामिल करने की योजना बनायी जानी चाहिए और इसे निष्पादित किया जाना चाहिए। चूंकि दो खुराक के लिए कम से कम 3 महीने की आवश्यकता होती है और एक प्रभावी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए, सभी उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए इस तरह के कार्यक्रम का कार्यान्वयन इस वर्ष ऑन-कैम्पस लनिर्ंग के समय पर शुरू होने के लिए मई महीने में शुरू हो जाना चाहिए। राष्ट्र और युवाओं के उज्‍जवल भविष्य हेतु विश्वविद्यालयों का संपूर्ण टीकाकरण अपरिहार्य है।

Created On :   15 April 2021 12:14 AM IST

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