UP Assembly elections 2022: विपक्षी दलों की एक दूसरे के कोर वोटबैंक पर नजर, ना कोई तालमेल ना कोई गठबंधन   

UP Assembly elections 2022: The opposition has an eye on core vote bank with no coordination, no alliance
UP Assembly elections 2022: विपक्षी दलों की एक दूसरे के कोर वोटबैंक पर नजर, ना कोई तालमेल ना कोई गठबंधन   
UP Assembly elections 2022: विपक्षी दलों की एक दूसरे के कोर वोटबैंक पर नजर, ना कोई तालमेल ना कोई गठबंधन   

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के चुनावी दंगल में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार से दो-दो हाथ करने लिए विपक्षी दलों के बीच ना तो कोई सियासी तालमेल है और ना ही कोई गठबंधन। ऐसे में खुद को इस दंगल का सबसे बड़ा सियासी पहलवान साबित करने की होड़ मची है। सपा, बसपा और कांग्रेस सभी एक दूसरे के कोर वोटबैंक अपने पाले में लाने में जुटे है। 

  • अखिलेश की नजर मायावती के दलित वोटों पर
  • कांग्रेस की नजर अखिलेश के मुस्लिम वोटों पर
  • मायावती की नजर सपा के ओबीसी वोटों पर 

अखिलेश की नजर मायावती के दलित वोटों पर
दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है कुछ ऐसा ही हाल अखिलेश यादव का है। 2019 में बसपा का साथ लेकर सपा को जो नुकसान हुआ था। उसके बाद अखिलेश 2022 के लिए छोटे दलों से गठबंधन कर रहे हैं। अखिलेश की नजर बसपा के उन नेताओं पर भी है, जो पार्टी हाईकमान से असंतुष्ट हैं। सपा की कोशिश बसपा के कोर वोट बैंक दलित समाज (गैर जाटव) वोटों को भी साधने की कोशिश कर रहे हैं।मायावती के साथ गठबंधन टूटने के बाद से ही अखिलेश सूबे के दलित वोटरों को अपने पाले में लाने की कोशिश में जुटे है। सपा बसपा के दलित नेताओं को तोड़ने का प्रयास कर रही है, इनमें वो नेता है जिन्होंने कांशीराम के साथ मिलकर बसपा को खड़ा करने का काम किया। इन नेताओं का अपने क्षेत्र में अपना खुद का सियासी वजूद है। इनमें इंद्रजीत सरोज से लेकर आरके चौधरी जैसे दर्जन भर नेता है।

सपा गठित कर रही है बाबा साहेब वाहिनी
दलित वोट बैंक को साधने के लिए अखिलेश बसपा के महापुरुषों को भी अपना रहे हैं। सपा के अनुषांगिक संगठन लोहिया वाहिनी की तर्ज पर बाबा साहेब वाहिनी का गठन कर रही है। इतना ही नहीं सपा के कार्यकर्ताओं ने अंबेडकर जयंती के रुप में दलित दिवाली मनाई। अब तो सपा के पोस्टरों पर भी लोहिया, मुलायम के साथ साथ बाबा साहब अंबेडकर की भी फोटो लगाई जा रही है ताकि दलितों के दिलों में जगह बनाई जा सके। 

मायावती के दलित वोट पर भीम आर्मी की नजर
उत्तर प्रदेश के 2012-2017 विधानसभा और 2014-2019 के लोकसभा में बसपा की हुए बुरे हाल के बाद यह लगने लगा है कि मायावती का दलित वोटबैंक पर से एकाधिकार खत्म हो गया है। उत्तर प्रदेश में 22 फीसदी दलित समाज के वोट है, जिनमें से 12 फीसदी गैर-जाटव है। जाटव बसपा का हार्डकोर वोटबैंक है, भीमआर्मी के चन्द्रशेखर आजाद की जिस पर पहले से ही नजर है। गैर-जाटव दलित समुदाय में 50 से 60 जातियां और उपजातियां और इन्हीं जातियों पर अखिलेश की नजर है जिससे 2022 में मुस्लिम-यादव गठजोड़ के साथ दलितों को भी जोड़ा जा सके। यूपी में 11 फीसदी यादव और 20 फीसदी मुस्लिम है अगर इनमें 5 फीसदी गैर-जाटव दलित वोट मिल जाये तो अखिलेश को सत्ता में वापसी की उम्मीद नजर आती है।

कांग्रेस की नजर अखिलेश के मुस्लिम वोटों पर
कांग्रेस पिछले तीन दशकों से सूबे की सत्ता से बाहर है। अब कांग्रेस को दोबारा खड़ा कर सूबे की सत्ता में लाने की जिम्मेदारी प्रियंका गांधी के कंधो पर है। कांग्रेस की अखिलेश के मुस्लिम वोटबैंक और बसपा के दलित वोटबैंक पर नजर है। प्रियंका गांधी ने यूपी की सियासत को समझते हुये दलितों को साधने के लिये सूबे में प्रदेश अध्यक्ष अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले अजय कुमार लल्लू को बनाया है। तो दूसरी तरफ कांग्रेस का मुस्लिम मोर्चा मुसलमानों को साधने की हर संभव कोशिश कर रही हैं। सूबे में करीब 20 फीसदी मुसलमान हैं जो कभी कांग्रेस के हार्डकोर वोटर रहे हैं लेकिन, 1990 के बाद से मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद सपा और दूसरी पसंद बसपा है। अब कांग्रेस सूबे में मुस्लिम मतदाताओं को दुबारा से अपने पाले में लाने के लिये जतन कर रही है। प्रदेश का मुस्लिम मोर्चा मौलानाओं, उलेमाओं और मुसलमानों की अलग अलग जातियों से वार्ता कर रहा है और उनको समझाने की कोशिश कर रहे है कि सपा ने यादवों का और बसपा ने सिर्फ जाटवों का विकास किया है। कांग्रेस मुस्लिमों को यह भी समझाने की कोशिश कर रही है कि एनआरसी और सीएए के मुद्दे पर सपा और बसपा शांत रही थी। अगर कोई सड़कों पर उतरा था तो वो सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस थी। कांग्रेस मुस्लिमों को ज्यादा से ज्यादा टिकट देने का भरोसा भी दे रही है। और साथ के साथ उनके मुद्दों को घोषणा पत्र में भी रखने की बात कर रही है। 

मायावती की नजर सपा के ओबीसी वोटों पर
उत्तर प्रदेश की सियासत में मायावती की राजनीति 2012 के बाद से चुनाव दर चुनाव फिसलती जा रही है। बसपा की राजनीतिक यात्रा का सबसे खराब प्रदर्शन मायावती के नेतृत्व में 2017 के विधानसभा चुनाव में हुआ था। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा की 10 सीटें आई थी और वह दूसरे नम्बर पर रही थी। 2022 के चुनाव के लिए उनकी नजर ओबीसी वोटरों पर है। और इसके लिए मायावती ने जिले के कोर्डिनेटरों से जिले की कम से कम दो विधानसभाओं से दो ओबीसी उम्मीदवारों का नाम भेजने को कहा है। इसके अलावा 2017 की तर्ज पर 2022 में भी मुस्लिमों को टिकट देने की योजना बनाई है। मायावती के निशाने पर इन दिनों बीजेपी और योगी आदित्यनाथ कम कांग्रेस और सपा ज्यादा रहती है।

Created On :   17 July 2021 6:14 PM IST

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