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नरभक्षी अविन को पकड़ने दूसरी बाघिन का यूरिन छिड़का, गंध से और आक्रामक हुई बाघिन
डिजिटल डेस्क, नागपुर। वन विभाग ने 13 लोगों पर हमला करने वाली आदमघोर अवनि बाघिन को गोली मार कर खत्म कर दिया था। जिसने एक राष्ट्रीय बहस और आलोचना को जन्म दिया। देशभर में बहुचर्चित इस मामले में शिकार करने वाले हैदराबाद के शिकारी शफत अली खान (63, हैदराबाद) व उनके बेटे असगर अली खान (40) ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में शपथ-पत्र दायर कर अपना पक्ष रखा है। इस शपथ-पत्र में कई चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं। इसमें कहा गया है कि अवनि को पकड़ने के इस ऑपरेशन में पशुचिकित्सकों ने एक बड़े षड्यंत्र को अंजाम दिया, जिसके कारण अवनि बाघिन की आक्रामकता चरम सीमा पर पहुंच गई थी, इससे पकड़ने गई टीम पर उसने हमला कर दिया और उसे गोली मारनी पड़ी। यह घटना 2 नवंबर 2018 को यवतमाल के पांढरकवड़ा में हुई थी।
वन विभाग को नहीं दी थी यूरिन छिड़कने की जानकारी, नहीं तो मामला कुछ और होता
शपथ-पत्र में आरोप है कि 2 नवंबर 2018 को घटना के पूर्व इस ऑपरेशन में शामिल डॉ.चेतन पटोनंद व डॉ.सुनील बावस्कर ने एक बड़ी साजिश रची। इन दोनों ने बगैर वन विभाग के अधिकारियों को जानकारी दिए नागपुर स्थित महाराजबाग प्राणी संग्रहालय से एक बाघिन का यूरिन लेकर पांढरकवड़ा क्षेत्र के बोराटी से वरूड मार्ग पर प्रेशर पंप की मदद से छिड़क दी। ऐसा करने के पहले या बाद में इन्होंने वन विभाग के अधिकारियों या मौके पर बाघिन से संघर्ष कर रही टीम के किसी सदस्य को भनक तक नहीं लगने दी। यूरिन का छिड़काव करके दोनों पशुचिकित्सक बेस कैंप से 20 किमी दूर भाग खड़े हुए।
अवनि को अपने क्षेत्र में दूसरी बाघिन की गंध मिली, जिससे वह असुरक्षित हो गई। अवनि को लगा कि इस नई बाघिन से उसे और उसके शावकों को खतरा है। अपने शावकों को बचाने के उद्देश्य से वह इसी मार्ग पर पहरा देनी लगी। वन विभाग की टीम को सूचना मिली कि बाघिन इसी क्षेत्र में मंडरा रही है। उस दिन शुक्रवार का साप्ताहिक बाजार था, ग्रामीणों का मार्ग से आना जाना लगा हुआ था। बाघिन को कुछ किसानों ने अपने खेत में देखा था, जिससे आस-पास के नागरिकों की जान पर खतरा उत्पन्न हो गया। वन विभाग और शूटरों की टीम इस पूरी बात से बेखबर थी। वन विभाग और शूटरों की टीम मौके पर पहुंची तो उन्होंने अवनि का सबसे उग्र रूप देखा।
अधिकारी के आदेश पर मारी गई गोली
शपथ-पत्र में कहा गया है कि यदि पशु चिकित्सकों ने यूरिन छिड़कने की योजना या छिड़काव के बाद भी वन विभाग को जानकारी दी होती, तो मौके पर मौजूद टीम ने कोई दूसरी योजना अपनाई होती। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम धारा 11 के तहत मुख्य वन संरक्षक को बाघिन को गोली मारने का आदेश जारी करने के अधिकार थे। इसी अधिकार के तहत आदेश जारी हुआ और उक्त परिस्थितियों में बाघिन को गोली मारी गई।
पशु-प्रेमियों ने दूसरा पक्ष नहीं देखा
खान का तर्क है कि इस शिकार के बाद सोशल मीडिया में एक वर्ग और पशु-प्रेमियों ने आलोचना करनी शुरू कर दी, जबकि वन विभाग द्वारा बाघिन को पकड़ने की 29 महीनों की मेहनत, बाघिन की समाप्ति के बाद गांव वालों को दहशत से मिलने वाली राहत पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। इसके बाद एनटीसीए ने मामले की जांच की, जिसमें खान का पूरा पक्ष नहीं आ सका। इसी जांच के आधार पर एनटीसीए ने एक नकारात्मक रिपोर्ट तैयार कर दी, जो बेबुनियाद है। रिपोर्ट तैयार करते वक्त चश्मदीद गवाहों व मौके पर उपस्थित टीम की बात पर गौर नहीं किया गया। इसके बाद एफडीसीएम ने भी मामले की जांच की। बाघिन के अव्यय, शिकार में इस्तेमाल बंदूकें व अन्य वस्तुओं की फॉरेंसिक जांच की गई, जिसमें उन्होंने कहा है कि शिकार में कोई अनियमितता नहीं हुई है। इस मामले में हाईकोर्ट ने एफडीसीएम को अपना उत्तर प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं। मामले में शफत अली खान (63, हैदराबाद) व उनके बेटे असगर अली खान की ओर से एड.आदिल मिर्जा, याचिकाकर्ता अर्थ ब्रिगेड फाउंडेशन की ओर से एड.श्रीरंग भंडारकर व एड.सेजल लाखानी रेणु कामकाज देख रहे हैं।
Created On :   10 Feb 2021 11:19 AM IST