कर्म के मर्म को सही मायने में समझने की जरूरत

The need to truly understand the meaning of Karma
कर्म के मर्म को सही मायने में समझने की जरूरत
दैनिक भास्कर का उपक्रम : केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने की चर्चा कर्म के मर्म को सही मायने में समझने की जरूरत

डिजिटल डेस्क, नागपुर। व्यक्तिव विकास के लिए अध्ययनशीलता पर जोर देते हुए केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा है कि कर्म के मर्म को सही मायने में समझने की जरूरत है। व्यक्ति को निर्णायक नहीं, बल्कि वस्तुस्थिति का जानकार होना चाहिए। राजनीति, समाज, संवाद माध्यम सहित अन्य क्षेत्र में कार्यरत लोगों को विशेष तौर से सचेत रहना होगा। सार्वजनिक जीवन में जिम्मेदारी के एहसास को न भूलें। सोमवार काे राज्यपाल खान ने दैनिक भास्कर कार्यालय में संपादकीय सहयोगियों से चर्चा की।

परिवर्तन दु:खदायी नहीं
राज्यपाल ने कहा कि व्यक्ति की छवि ऐसी न हो कि लोग उसे अन्यायकारक मानें। समयकाल के अनुरूप आवश्यकताओं को स्वीकार करें। परिवर्तन दु:खदायी नहीं हाेता है। परिवर्तन को रोकने का प्रयास दु:ख पैदा करता है। सार्वजनिक तौर पर ज्ञान के अभाव में उचित शब्दों का प्रयोग नहीं हो पाता है। सही शब्दों का प्रभाव व्यक्ति और व्यक्तित्व को प्रभावी बनाता है। विविध स्तर पर सत्ता संघर्ष को लेकर उन्होंने कहा कि लंबे समय तक गुलाम रहने के कारण सत्ता के प्रति मोह अधिक होना स्वाभाविक है। अधिकार क्षेत्र से बाहर दखल देने से विवाद बढ़ते हैं। हर दौर में हर तरह के लोग रहे हैं। परिवर्तन के दौर में बेचैनी हो सकती है, लेकिन परिवर्तन को स्वीकार कर लेना दु:खदायी नहीं होता है। केरल की स्थिति, हिंदू व हिंदुत्व सहित अन्य विषयों पर भी राज्यपाल ने अनुभव व विचार साझा किए।

क्या भारत में सर्वधर्म सदभाव, सहिष्णुता और संवेदना लुप्त हुई है?- सुरेंद्र हरडे
इसका सीधा समाधान यही है कि हम अपने पारंपरिक मूल्यांें का ध्यान रखें। यही मूल्य हमें बताएंगे कि हम कहां गलत हैं। जैसे शरीर को स्नान आदि करके स्वस्थ रखना पड़ता है, वैसे ही मन को भी इन मूल्यों का स्मरण कराने की जरूरत पड़ती है। अगर कोई छोटी-मोटी समस्याएं आएं भी तो मेरी विरासत मुझे याद दिलाएगी कि मुझसे गलत हुआ है। इस जागरूकता के अलावा दूसरा कोई इलाज नहीं है।

क्या वाकई केरल में संविधान का पालन होता है? - विजय तिवारी
संविधान में वो भी प्रावधान है, जो बताते हैं कि पालन न हो तो क्या करना चाहिए।

आप कहते हैं कि आपको हिंदू कहा जाए, इसके पीछे क्या तर्क है?- समीर खान
मैंने ऐसा कभी नहीं कहा कि मुझे हिंदू कहा जाए। मैं अलीगढ़ का पढ़ा हूं। सर सैय्यद ने गुरदासपुर में एक भाषण में कहा था कि मैं हिंदू शब्द को धर्म से नहीं जोड़ता हूं। मेरा यह मानना है कि हिंदुस्तान में पैदा हुआ, पला बढ़ा, यहां का अनाज खाने, पानी पीने वाला व्यक्ति हिंदू है। मैंने उनका कथन दोहराया था। मेरे लिए वो अनुकरणीय हैं।

केरल में विश्वविद्यालयों को लेकर आपका और सरकार का विवाद हल क्यों नहीं हो रहा?- दीपेश जैन
कोई विवाद नहीं है। विवाद तब होता है, जब आप दूसरों के कार्यक्षेत्र में अतिक्रमण करते हैं। राज्यपाल को कुलपति इसलिए बनाया गया है, ताकि विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता कायम रहे। सरकार उसमें दखलअंदाजी न करे। मैं विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता बचाने का प्रयास करता हूं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केरल में कुलपतियों की नियुक्ति प्रक्रिया को गलत बताया है। इस हिसाब से 13 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति सही नहीं है। यही विचार करने योग्य बात है।

धर्म निरपेक्षता का बोझ सिर्फ बहुसंख्यकों पर क्यों है? - राहुल सिंह
मैं बहुसंख्यक शब्द से सहमत नहीं हूं। अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक यह सब अंग्रेजों के जमाने की शब्दावली है। वो मानते थे कि यह देश एक राष्ट्र नहीं है, बल्कि विभिन्न समुदायों का समूह है। आज का हमारा भारतीय संविधान नागरिक को इकाई मानता है, समुदाय को नहीं। आज कोई स्वयं को अल्पसंख्यक कहे, तो यह एक प्रकार से स्वयं को कम आंकना है। भारत का संविधान सबको बराबर मानता है। मैं स्वयं 4 बार लोकसभा का चुनाव जीता हूं, वह भी ऐसे क्षेत्र में, जहां हिंदू आबादी ज्यादा थी।

इनकी प्रमुखता से रही उपस्थिति
दैनिक भास्कर के कार्यक्रम में जमाल सिद्दिकी, डॉ. उदय बोधनकर, दीपेन अग्रवाल, देवेंद्र दस्तूरे, तेजिंदर सिंह रेणु, डॉ. विंकी रुघवानी, प्रताप मोटवानी, विजय केवलरामानी, वेदप्रकाश आर्य, एस. पी. सिंह, मनीष सोनी, संजय पांडे, महेश बंग, संदेश सिंगलकर, बाल कुलकर्णी, विनोद जैस्वाल, रामकृष्ण गुप्ता, एम. ए. कादर, आशीष तायल, जे. पी. शर्मा, अतुल कोटेचा, जुल्फेश शाह, अशोक गोयल, किरण मुंदड़ा, साना खान, जुनैद खन्ना, रामप्रताप शुक्ला, डी. बी. सिंह, डॉ. मनोज कुमार, अखिलेश हलवे, अजय पांडे, संतोष दुबे, अविनाश बागडे, सुनील अग्रवाल, धर्मपाल अग्रवाल, वंदना सोलंकी, टीना चौरसिया आदि की विशेष उपस्थिति रही। 

गणमान्यों को भेंट किए मिट्टी के सकोरे
ग्रीष्मकाल में पक्षियों के पेयजल की व्यवस्था हाे सके, इसलिए हर वर्ष दैनिक भास्कर द्वारा "छोटी सी आशा' अभियान के तहत मिट्टी के सकोरों का वितरण किया जाता है। इस वर्ष राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के हाथों समाज के गणमान्य व्यक्तियों को सकोरा भेंट देकर इस उपक्रम की शुरुआत की गई। राज्यपाल के हाथों सिम्स अस्पताल के निदेशक डॉ. लोकेंद्र सिंह, वेद के पूर्व अध्यक्ष विलास काले, सेंटर प्वाइंट होटल संचालक मिक्की अरोरा, सीए कैलाश जोगानी, सोलार इंडस्ट्रीज के निदेशक सत्यनारायण नुवाल, ओलंपियाड स्कूल की नजिया खान और पूर्व विधायक डॉ. गिरीश गांधी को सकोरा भेंट किया गया।
 

Created On :   18 April 2023 10:18 AM IST

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