दहशत कम करने के साथ ही नक्सलियों की कमर तोड़ने में सफल हुई जिला पुलिस

The district police succeeded in breaking the back of Naxalites along with reducing the terror
दहशत कम करने के साथ ही नक्सलियों की कमर तोड़ने में सफल हुई जिला पुलिस
गड़चिरोली दहशत कम करने के साथ ही नक्सलियों की कमर तोड़ने में सफल हुई जिला पुलिस

डिजिटल डेस्क, गड़चिरोली। समूचे देश में अति नक्सल प्रभावित और आदिवासी बहुल जिले के रूप में परिचित गड़चिरोली जिले के निर्माण को अब 40 वर्ष पूरे हो गए हंै। जिला निर्माण के इतने बरसों में नक्सलवाद के कारण ही जिले का विकास अवरुद्ध हुआ है। लेकिन पुलिस विभाग की सटीक योजना और कार्यबद्ध शैली के कारण अब जिले का नक्सलवाद सिमटता जा रहा है। पिछले 42 वर्षों से नक्सलवाद का दंश झेल रहे जिलावासियों को पुलिस विभाग ने विभिन्न योजनाओं का लाभ दिलाकर विकास कार्यों को गति देने का कार्य किया है। पुलिस "दादालोरा खिड़की योजना" के माध्यम से लोगों तक पहुंचकर उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ने और दूसरी कड़ी में नक्सलियों का डटकर मुकाबला करने से जिले का नक्सलवाद अब पूरी तरह बैकफुट पर चला गया है। फलस्वरूप अब सही मायने में जिले के ग्रामीण इलाकों में भी विकास की गंगा बहती दिखायी दे रही है। 

बता दें कि, पश्चिम बंगाल के नक्सलबारी गांव से 25 मई 1967 से नक्सलवाद का जन्म हुआ। पिपल्स वार ग्रुप और माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर नामक दो नक्सली संगठनों ने एक होकर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट) की स्थापना की। शुरुआती दौर में नक्सल आंदोलन के प्रणेता चारू मुजूमदार और उनके सहयोगी कानू सान्याल ने पूंजीवाद, साहूकारी के खिलाफ आवाज उठाते हुए स्थानीय किसानों और मजदूरों के न्याय के लिये आवाज उठायी। बरसों तक इन दोनों ने लोगों के लिये संघर्ष किया। मात्र इसके बाद नक्सल आंदोलन अपने लक्ष्य से भटक गया। धन उगाही समेत यात्रियों से भरी वाहनों को उड़ाने के साथ विध्वसंक घटनाओं को अंजाम देना आरंभ किया गया। छत्तीसगढ़ और तत्कालीन आंध्रप्रदेश के रास्ते सन् 1980 में नक्सलवाद ने गड़चिरोली जिले में प्रवेश किया। शुरुआती दिनों में नक्सली इतने हावी नहीं थे।

मात्र धीरे-धीरे अपनी जड़ंे मजबूत करते हुए लोगों में दहशत निर्माण करने का कार्य आरंभ किया गया। हर वर्ष नक्सल शहीद सप्ताह केे दौरान ग्रामीण अंचलों में शहीद नक्सल नेताओं के नाम पर स्मारकों का निर्माणकार्य कर विध्वसंक घटनाओं को अंजाम देना नक्सलियों का कार्य रहा है। गांवों में बंद का ऐलान कर लोगों में अपनी दशहत बनाकर प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाने के लिये भी नक्सलवाद ने कई बार ग्रामवासियों को मजबूर किया है।   नक्सलवाद पर काबू पाने और जिले के आदिवासी ग्रामीणों के दिलों में अपनी जगह बनाने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर विभिन्न प्रकार की कल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन किया है। जिला पुलिस अधीक्षक अंकित गोयल की संकल्पना से गत वर्ष जिले में पुलिस दादालोरा खिड़की योजना आरंभ की गयी। इस योजना के माध्यम से अब तक हजारों लोगों को विभिन्न योजनाओं का लाभ प्रदान किया गया। सुशिक्षित बेरोजगारों को सक्षम बनाने अनेक प्रकार के प्रशिक्षण दिये गये। इतना ही नहीं, बेरोजगार युवक और युवतियांे को भी अपने पैरों पर खड़ा किया गया। जनजागरण सम्मेलन, जनमैत्रेय सम्मेलन और ग्रामभेंट आदि उपक्रमों के चलते लोगों ने अब नक्सलियों का विरोध करना आरंभ कर दिया है।

 आदिवासी ग्रामीण अब खुले रूप से नक्सलवाद का विरोध करते हुए विकास कार्यों को बढ़ावा देने लगे हैं। नक्सलवाद के 42 वर्षों के इतिहास में नवंबर 2021 को पुलिस अधीक्षक अंकित गोयल की अगुवाई में जिला पुलिस को अब तक सबसे बड़ी सफलता मिली थी। गड़चिरोली के अपर पुलिस अधीक्षक (अभियान) सोमय मुंडे के नेतृत्व में धानोरा तहसील के मरदिनटोला जंगल परिसर में हुई भीषण गोलीबारी में सुरक्षाबलों ने एमएमसी प्रमुख और खुंखार नक्सली मिलिंद तेलतुंबड़े समेत 27 नक्सलियों को ढेर कर दिया था। इस घटना के बाद से नक्सलवाद पूरी तरह बैकफुट पर चला गया है।  हाल ही में जुलाई माह में संपन्न नक्सली शहीद सप्ताह के दौरान भी नक्सली जिले में किसी भी प्रकार की विध्वंसक घटनाओं को अंजाम नहीं दे पाये। कुल मिलाकर जिला निर्माण के 40 वर्ष और नक्सलवाद के कुल 42 वर्षों में अब सही मायने में जिला प्रगति पथ पर दौड़ने लगा है। आने वाले समय में भी विकास की यह गति बनी रहने की उम्मीद व्यक्त की जा रही है। 


  


 

Created On :   26 Aug 2022 4:36 PM IST

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